दस साल से दिल्ली पर बरसती आ रही है ‘आप-दा’! ‘आप-दा’ को बदल के रहेंगे..!’ ‘आप’ पर ‘आप-दा’ चिपक गई! जवाबी हमले में ‘आप’ कहिन कि दिल्ली वासियों को मुफ्त बिजली, पानी, यात्रा, तीर्थयात्रा, मुहल्ला क्लिनिक सब दिया। हर महिला को हजार रुपए… सत्ता में आए तो फिर इक्कीस सौ रुपए महीने देंगे! इन दिनों की चुनावी राजनीति इसी तरह ‘चिपकाने’ की राजनीति है। जिसने चिपका दिया, वही हावी!

फिर शुरू हुई ‘दानलीला’! एक दिन प्रधानमंत्री ने दिल्ली के 1675 गरीबों को फ्लैट दिए तो ‘आप’ वालों ने दिल्ली के पुजारियों और ग्रंथियों को अठारह हजार रुपए देने का एलान कर दिया! कई एंकरों और चर्चकों की नजर में ‘आप’ के इस नए दांव ने ‘आप’ को ‘नरम हिंदुत्ववादी’ बना दिया और ‘क्लासिकल हिंदुत्ववादी’ देखते रह गए, जबकि ‘चुनावी हिंदुत्व’ बाजी मारता दिखा! ‘दानलीला’ का जवाब ‘दानलीला’! ‘गरम हिंदुत्व’ का जवाब ‘नरम हिंदुत्व’! यानी ‘आप’ की नीति है कि ‘तू डाल डाल तो मैं पात पात!’ इस तरह ‘आप’ ने ‘आप-दा’ को ही ‘अवसर’ बना लिया!
दिल्ली के इस ‘चुनावी दंगल’ में हर दिन कोई न कोई नया ‘नैरेटिव’ चलाकर चैनल चर्चा में छा जाना चाहता है!

असली खेल चैनलों में छाने का है, ‘भले बुरे’ का नहीं! यह चुनाव जमीन से नहीं, चैनलों से लड़ा जा रहा है! एक दिन ‘सावरकर कालेज’ बनाने की घोषणा करके एक बार फिर ‘क्लासिकल हिंदुत्व’ के ‘नैरेटिव’ को चलाना चाहा, तो कुछ ने तुरंत ही ‘मनमोहन सिंह के नाम से कालेज क्यों नहीं बनाते’ कहकर ‘हिंदुत्व’ के नैरेटिव को बदलना चाहा। फिर भी चैनलों में सावरकर ही छाए रहे!

इस बीच बीजापुर में एक पत्रकार को एक माफिया द्वारा काटकर गटर में डाल देने की खबर जैसे ही टूटी, वैसे ही एक चैनल ने ‘छोटे इलाकों की पत्रकारिता’ की ‘जानलेवा चुनौतियों’ की ओर ध्यान खींचना चाहा, लेकिन जब चैनल ही इस तरह की पत्रकारिता की चिंता न करें तो एकाध के चिंता करने से क्या?

इसके बाद आई शुद्ध मर्दवादी ‘गाललीला’! एक दल के उम्मीदवार ने चुनावी हुलास में कह दिया कि हम अपने इलाके की सड़कों को फलां महिला नेता के गालों की तरह बनाएंगे, तो वही हुआ जो होना था। हर ओर से ऐसे ‘मर्दवादी स्त्रीद्वेषी’ बयान को धिक्कार मिला। इसकी लपेट में उस नेता के दल तक की ‘बीमार मर्दवादी मानसिकता’ को भी धिक्कारा गया, जिसके वे उम्मीदवार हैं। देखते-देखते चर्चा में विविध दलों के नेताओं के ऐसे ही अन्य बयानों की भी सूची दी जाने लगी, जिन्होंने इस नेता की तरह ही महिलाओं को अपने गर्हित सौंदर्यशास्त्र से नवाजा था। ऐसे बयानों में महिलाओं के गाल बार-बार ‘मर्दवादी यौन उपहास’ के पात्र बने। सब एक दूसरे के ‘मर्दवाद’ को खोलते रहे कि फलां नेता ने एक हीरोइन के गालों की तरह सड़कें बनाने की बात की थी।

एक और ने भी कुछ ऐसा ही कहा था और एक तो द्रौपदी की साड़ी तक भी पहुंच गया था। एक बार फिर उन्हीं नेता ने दिल्ली की मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने अपने पिता का नाम तक बदल दिया..! यह सब सचमुच इतना व्यथित करने वाला था कि शायद ही किसी को पसंद आया हो। वीडियो में मुख्यमंत्री भी रोती नजर आती थीं!

बहसों में पहले कई प्रवक्ता और चर्चक ऐसी बातों की निंदा करते हैं, लेकिन अगले ही पल कहने लगते कि उन्होंने उनके गालों को सड़क बनाया तो उन्होंने भी उनके गालों को सड़क बनाया और इस तरह हर बार गाल सिर्फ सड़क बनते रहे..! और इस पर भी विचित्र यह कि कई दलों के ऐसे ही नेता कहीं ‘प्यारी बहना’ योजना, कहीं ‘लाडली बहना’ योजना, कहीं ‘लाडकी लड़की’ योजना आदि के अंतर्गत अपने-अपने राज्यों में महिलाओं को हजार रुपए, इक्कीस सौ रुपए और पच्चीस सौ रुपए तक देने की बात कर धन्य होते दिखते रहे!

यह कौन सी ‘मानवीय दृष्टि’ है कि एक पल में महिला के गाल ‘सड़क’ हैं और अगले ही पल में वह ‘लाडली’ या ‘प्यारी बहना’ है। हमें तो लगता है कि ऐसे मर्दवादी नेताओं की नजर में स्त्री एक गाल मात्र है, सड़क मात्र है! तब और भी अजीब लगता है जब हम नेताओं के बीच महिलाओं को हर महीने कुछ हजार रुपए देने के कागज लेने के लिए लाइन लगाए देखते हैं! ऐसे में कहां गायब हो जाते हैं वे लोग जो माताओं-बहनों के प्रति ऐसे संबोधनों और इस तरह की चलती ‘दान लीलाओं’ में सक्रिय निहित मर्दवाद को ‘डिकंस्ट्रक्ट’ कर सकें और बता सकें कि आखिर इस भाषा में औरत का मतलब एक सड़क मात्र है।

इसके बाद दिखी दिल्ली की ‘शीशमहल लीला’ बरक्स ‘राजमहल लीला’! एक बताता कि ‘शीशमहल’ पर इतने-इतने करोड़ खर्च हुए तो दूसरा बताता कि ‘राजमहल’ पर इतने खर्च हुए। इसके बाद ‘देर तक होता रहा ‘शीशमहल’ बरक्स ‘राजमहल’! इसके बाद फिर ‘आप’ ने खड़ी कर दी केंद्र के आगे ‘नई आप-दा’ कि दिल्ली के ‘जाटों’ को दो आरक्षण!