लोकतंत्र बचाना है, देश बचाना है, आजादी बचानी है… लोकतंत्र बचाना है तो ‘प्रतिबंध’ लगाना है। बजरंग दल पर ‘प्रतिबंध’ लगाना है…
बजरंग भक्त ‘बजरंग दल पर प्रतिबंध’ के एलान को ‘बजरंगबली पर प्रतिबंध’ की तरह पढ़ने लगते और ‘बजरंगबली की जय’ का नारा लगाते हुए पूछने लगते हैं कि क्या ‘बजरंगबली’ पर भी कोई ‘प्रतिबंध’ लगा सकता है?
मैं इंतजार करता रहा कि ऐसे मौके पर ‘दिनकर’ के ‘कुरुक्षेत्र’ से लाइन उद्धृत करते हुए कोई तो कहेगा ‘तू मुझे बांधने आया है जंजीर बड़ी क्या लाया है’, लेकिन किसी बहस में किसी भी बजरंगी द्वारा ‘दिनकर’ की ये लाइनें नहीं बोली जातीं। ‘बहसों’ में ‘कविता’ होती है, तो वे उतनी ‘कटु’ नहीं हो पातीं, जितनी कि आजकल होती हैं। शायद इसीलिए, अपनी बहसें अधिकाधिक ‘कपड़ाफाड़’ हुई जाती हैं, क्योंकि भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के अलावा किसी के पास कोई ‘कविता’ नहीं होती।
बहरहाल, ‘बजरंगबली की जय’ का नारा लगते ही, ‘बजरंग दल’ पर ‘प्रतिबंध’ का एलान करने वाले अचानक रक्षात्मक होकर ‘नुकसान की भरपाई’ करने में लग जाते हैं कि हमहूं ‘बजरंगबली’ के भक्त हैं। हम उनके जन्म-स्थान ‘अंजनाद्रि’ को तीर्थस्थल के रूप में विकसित करेंगे। हर जिले में मंदिर बनाएंगे। कई ‘प्रतिबंधवादी’ पहले ‘बजरंगबली जी’ के मंदिर जाते हैं, फिर वोट देने जाते हैं।
कर्नाटक में मतदान का दिन: सुबह सुबह कई चैनल ‘अति विशिष्टों’ को वोट डालते दिखाते हैं कि ये देखिए, इन साइबर सेठ जी ने सपत्नीक लाइन में लग कर वोट डाले, इस बूथ पर उस कन्नड हीरो ने लाइन में लगकर वोट डाला और यहां यहां कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने वोट डाला… चैनलों में कड़ी स्पर्धा है। सबके अपने-अपने दांव हैं, अपने-अपने झुकाव हैं, अपने-अपने ईश्वर हैं और अपने-अपने मतदान पश्चात सर्वेक्षण हैं। चैनल बताते हैं कि दोपहर तक इतना फीसद वोट पड़ा और शाम तक इतना! शाम के साढ़े छह बजते न बजते चैनलों को अपने-अपने ‘एक्जिट पोल’ देने की उतावली है और हर एक का दावा है कि उसका ‘सर्वेक्षण’ ही सबसे ‘सटीक’ है।
दस में से तीन सर्वेक्षण भाजपा को ‘एक्जिट’ करते दिखाते हैं। दो सर्वे कांग्रेस को ‘बहुमत न लाते हुए’ दिखाते हैं, फिर सारे नतीजों का ‘औसत’ देकर ‘जीत-हार’, ‘पाटा’ फेरा जाता है कि बहुमत किसी को नहीं मिलने वाला… ऐसे में सब कुछ उस ‘किंग मेकर’ के हाथ में हो सकता है, जिसको जनता ने ‘किंग’ बनने लायक नहीं समझा!
मतदान पश्चात सर्वे देख विपक्ष के नित्य क्षुब्ध दिखते कुछ चेहरे बरसों बाद खुश नजर आते हैं। एंकर कटाक्ष करते हैं कि ‘आज तो बहुत खुश होगे तुम’ और वे अपनी खुशी छिपाते भी नहीं। और, जब ‘एक्जिट पोलों’ की हार को देखकर भी निराश न दिखने वाले कुछ चेहरे जमे रहते हैं, तो एक एंकर पूछने लगता है कि क्या आपको अब भी उम्मीद है…? जवाब में एक भक्त प्रवक्ता कहती है कि ये ‘एक्जिट पोल’ एक बार फिर फेल होंगे, क्योंकि हम ‘हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा’ वाले लोग हैं।
इन दिनों हर बहस में कुछ विपक्षी प्रवक्ताओं का यह ‘तकिया कलाम’ हो चला है कि लोकतंत्र बचाना है। देश बचाना है। आजादी बचानी है। संविधान बचाना है। जैसे एक दिन बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की खबर आई थी वैसे ही एक दिन ‘बचाववादियों’ की ओर से खबर आती है कि आजादी बचानी है, तो फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर ‘प्रतिबंध’ लगाना है।…
और जैसे ही ‘द केरल स्टोरी’ रिलीज होती है, वैसे ही ‘प्रतिबंध’ लगा भी दिया जाता है, जैसे बंगाल में ‘प्रतिबंध’ और तमिलनाडु में ‘प्रतिबंध’!
मगर इस बार एकदम तीखा ‘आमना-सामना’ है: इधर ‘द केरल स्टोरी’ के प्रदर्शन पर ‘प्रतिबंध’ लगता है, उधर मानो जवाब में, एमपी और यूपी में ‘द केरल स्टोरी’ को ‘टैक्स फ्री’ कर दिया जाता है! एक पक्ष कहता है, ‘नहीं देख सकते’, तो दूसरा कहता है, ‘टैक्स फ्री देखो’ और ‘जरूर देखो’।
इन दिनों सर्वत्र ‘दो फाड़’ है।
‘द केरल स्टोरी’ कहती है कि ‘यही सच है’, इसलिए फिल्म की ‘आजादी बचाओ’, तो ‘प्रतिबंधवादी’ कहते हैं कि यह ‘नफरत फैलाने वाली’ है, इस पर ‘प्रतिबंध’ लगाओ.‘प्रतिबंधवादियों’ को डर है कि अगर ‘द केरल स्टोरी’ आजाद हुई, तो उनके समाजों की शांति व्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी, देश खतरे में पड़ जाएगा और आजादी खतरे में पड़ जाएगी… इसलिए ‘प्रतिबंध जिंदाबाद’! अपने लोकतंत्र को बचाने के लिए दूसरे के लोकतंत्र पर ‘बैन बैन’… तभी मिलेगा ‘चैन चैन…’!
एक व्यक्ति फिल्म की तारीफ कर देता है, तो उससे लोकतंत्र खतरे में आ जाता है और फिर प्रतिबंधवादी तत्त्व उस व्यक्ति की पिटाई कर देते हैं और इस तरह के ‘ठोकतंत्र’ के जरिए ‘लोकतंत्र’ को बचा लेते हैं। यानी, लोकतंत्र बचाना है तो देश बचाना है, देश बचाना है तो आजादी बचानी है, आजादी बचानी है तो संविधान बचाना है। तभी हम बच सकते हैं। अपने बचाने को बचाना है तो बाकी सब पर ‘प्रतिबंध’ लगाना है।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले: एक ने दिल्ली सरकार के वाजिब हकों को बहाल करके केजरीवाल सरकार को नया जीवनदान दिया और दूसरे फैसले ने उद्धव ठाकरे के ‘इस्तीफे’ को उनका ‘आत्मदंड’ बना दिया। उद्धव जी ‘नैतिकता’ की कितनी भी आड़ लें, उनका ‘इस्तीफा’ उनको जीवन भर कसकना है! और अंत में, पाकिस्तान और उसके पूर्व प्रधानमंत्री इमरान की ऐसी बेहुरमती! इमरान समर्थकों और सरकार के बीच हिंसक टकराव और कि ‘हाई कोर्ट इमरान को जीने नहीं देगा और सुप्रीम कोर्ट मरने नहीं देगा’ वाली कैफियत! लेकिन कहानी तो अभी बाकी है मेरे दोस्त!
