एक कहिन कि कुर्सी छोड़ देंगे, लेकिन उनको कुर्सी छोड़े तब न! इसलिए न छोड़ी गई! लेकिन दिल्ली के बहादुर ने जो कहा, वह कर दिखाया: ‘दो दिन बाद कुर्सी छोड़ दूंगा’ कहा और छोड़ दी। कुर्सी पर बैठी नई मुख्यमंत्री ने संबोधित किया कि मन धन्यवादी, लेकिन दुखी..! कुछ ‘प्रो’ कहिन कि वे भरत की तरह ‘खड़ाऊं’ रखकर काम करेंगी, तो एक पत्रकार ने झटक दिया कि ऐसा कहना एक महिला मुख्यमंत्री का अपमान करना है। बहरहाल, पूर्व मुख्यमंत्री के नए पैंतरे से सारे चित्त! गजब का कौशल कि इतने दुश्मनों के बीच भी अपनी गोटी पार! अब रोते रहें कहने वाले कि सब उनके घरेलू नौकर हैं। लेकिन सर जी! नेता तो हर दल में एक ही होता है, बाकी सब तो वही होते हैं जो आप कहे हैं।
लपकू मीडिया ने सनसनी लपकी! विकास न लपका!
इसी ‘दुष्ट दिन’ ने मोदी जी के चौहत्तरवें जन्म दिन की खबर तक को ‘किनारे’ कर दिया! लपकू मीडिया ने सनसनी लपकी! विकास न लपका! यहीं कहीं भाजपा सांसद रवनीत बिटटू जी के उस बयान ने खबरों में ऐसी सुर्खियां बटोरीं कि बाकी खबरें किनारे और ‘नंबर वन आतंकवादी’ की बाइट शीर्ष पर! प्रतिक्रिया में दिल्ली समेत कई राजधनियों में ‘बिट्टू विरोध’ में प्रदर्शनों के दृश्य समेत खबरें रहीं। यों बीच में गणेशोत्सव पर भिंवडी से बारां तक हुए उपद्रवों की खबर, जो एकाध चैनलों में चर्चा में आ कर रह गईं।
फिर एक दिन एक बड़े ईरानी नेता ने टिप्पणी की कि इंडिया में मुसलिम अल्पसंख्यक सताए जाते हैं। जैसे ही ऐसे कुबोल आए, वैसे ही चैनलों ने ईरान को धर कूटा। विदेशमंत्री ने दो टूक लताड़ा कि पहले अपना ‘ट्रेक रिकार्ड’ तो देख लेते कि आप लोगों ने ‘मेहसा अमीनी’ जैसी महिलाओं के साथ क्या किया। एक मुसलिम विद्वान तक ने फटकारा कि ‘मेहसा’ पर हुए अत्याचारों को मैं ‘कंडेम’ करता हूं और एंकर से ‘थैंक्यू’ पाया। क्या एंकर भी ‘एक पार्टी’ होते हैं?
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर मायावती का समर्थन और सब चुप!
उसके बाद आया मोदी का ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का प्रस्ताव कि दो चरणों में चुनाव: पहले संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव, तीस दिन बाद निकायों के चुनाव। एक बहस में एक कहिन कि सरकार इसे पास तो करा सकती है, लेकिन विवाद नहीं थमेगा। फिर किसी ने प्रस्ताव के फायदे और नुकसान गिनाए, किसी ने नुकसान कि पैसे, संसाधनों में बचत… कि राष्ट्रपति प्रणाली लाने का चोर दरवाजा… कि बीच में सरकारें गिरीं तो क्या करेंगे..। इसी बीच मायावती का समर्थन और सब चुप!
इसी बीच हिजबुल्ला के पांच सौ पेजर में रिमोट विस्फोटों से कई लोग मरे, हजारों घायल और बहसों में हर विशेषज्ञ इजराइल का लोहा मानता हुआ कि क्या गजब तकनीकी योजना, फिर हिजबुल्ला के बदला लेने की तालठोंक धमकी और फिर चाकलेट बम की अफवाह से हडकंप… लेकिन इजराइल चुप! गजब के हत्यारे जमाने के कि बमबारी पर प्रति बमबारी और किसी को किसी पर रत्ती भर रहम नहीं!
फिर आया केरल के एक बड़े माकपा नेता का बयान कि राजनीतिक इस्लाम से इंडिया की एकता को खतरा है कि इस्लामिक आतंकवाद सहनीय नहीं। एक कहिन कि जब ऐसी बातें भाजपा कहती थी, तब चुप थे, अब जब अपने पर बीत रही है तो बोले हैं। बहरहाल, देर आयद दुरुस्त आयद, दूसरा कहिन कि वहां तो सभी ‘रेडिकल’ ही होते हैं। कि बहसें फिर अपनी-सी पर लौटीं। खड़गे जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, शिकायत की कि भाजपा वाले राहुल को आतंकवादी कहते हैं… कि उनकी जान को खतरा है। जवाब में नड्डा ने खड़गे को एक ‘प्रति पत्र’ लिख डाला कि राहुल देशविरोधी ताकतों के साथ खड़े हो जाते हैं।
एक एंकर बोला कि यह सारा मुकदमा तब शुरू हुआ जब राहुल ने अमेरिका में कह दिया कि इंडिया में सिख कड़ा, पगड़ी नहीं पहन सकते, गुरुद्वारे नहीं जा सकते, जो तथ्यत: सही नहीं था, न है! लेकिन हालत यह कि दोनों के दिल आहत और दोनों की एक दूसरे से शिकायत। यों तो यह लंबा मुकदमा अब हर जगह उपलब्ध है, शायद इसीलिए बहसों में सारे ‘सुभाषित कुभाषित’ कुछ इस तरह से दुहरे, कोई दर्शक चकित तक न हुआ। हजारों बार दुहरती आई ‘तू-तू मैं-मैं’ एक बार फिर दुहरी। फिर शिकायत इस पर आई कि प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का जवाब नड्डा जी ने क्यों भेजा!
फिर पाक के रक्षामंत्री के बोल गए कि हम ‘एनसी’ के 370 को वापस लाने का समर्थन करते हैं… और चूंकि राहुल उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए लपेटे में वे भी आ गए। फिर आया नायडू का बयान कि तिरुपति प्रसादम् के घी में चर्बी की मिलावट प्रयोगशाला ने प्रमाणित की। खबर के आते ही सनसनी और खबरों में लड्डू पर लड्डू दर्शन और बहसों में सवाल कि नमूने कब लिए… कि उनके जाने के तेरह दिन बाद ही लिए… कि ये सब हिंदू वोटों को पटाने की कोशिश… कि हाय हाय धर्म भ्रष्ट कर दिया… कि मुख्यमंत्री का वादा कि दोषियों को सजा मिलेगी। ऐसी धांय-धांय में बहुत-सी खबरें किनारे हुईं। जब सभी आहत हों, सबको शिकायत हो, तो कौन किसकी क्या सुने?