पहले लोकसभा, फिर राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर एक से एक कटाक्ष किए। नीरज की कविता का नीरज की कविता से ही जवाब दिया। फिर आया बजट और दिल्ली का चुनाव। कइयों को ‘आप’ जाती दिखी और भाजपा आती। वित्तमंत्री ने जैसे ही कहा कि बारह लाख रुपए तक की आय पर ‘नो टैक्स’, वैसे ही दिल्ली का मध्यवर्ग बल्ले-बल्ले करता दिखा! हर चैनल में एक प्रसन्न मध्यवर्ग था। एक कहिन कि हम तो सोचते थे दस लाख तक ‘नो टैक्स’ हो जाए, लेकिन ये तो बारह लाख तक हो गया। बहुत दिनों की मुराद अब पूरी हुई।
कई चर्चक साफ कहे कि दिल्ली का चुनाव भाजपा की झोली में अब गिरा कि अब गिरा। कई भाजपा प्रवक्ता भी चहकते दिखे। विपक्ष ने भी कहा कि यह एक ‘चुनावी बजट’ है। सभी कहते कि मध्यवर्ग को निशाने पर रख लाया गया बजट है। एक चुनाव विशेषज्ञ कहिन कि लोग अपना मन बना चुके हैं। चुनाव पर इसका बहुत असर नहीं होने वाला। लेकिन जब सारा मध्यवर्ग मस्त दिखा तो वही कहने लगे कि बजट का असर साफ दिखने लगा है।
अब तक सारी बहसें रेवड़ियों के तुलनात्मक अध्ययन पर टिकी थीं। अब दिल्ली के मध्यवर्ग पर आ गर्इं। कई बताते कि दिल्ली मूलत: ‘मिडिल क्लास का महानगर’ है। कोई बताता कि दिल्ली की कुल आबादी का साठ फीसद ‘मिडिल क्लास’ है तो कोई बताता कि वह पचपन फीसद है और अगर आधे भी इधर-उधर हुए तो भाजपा की मौज। इतने में कुछ ‘सेफोलाजिस्ट’ हाजिर। एक फरमाए कि शीशमहल, भ्रष्टाचार के मुद्दों ने सरकार की छवि पहले ही खराब कर दी है। पांच बरस पहले उसकी लोकप्रियता साठ फीसद थी, आज सैंतालीस फीसद रह गई है।
इतने में एक विपक्षी नेता कहिन कि गंगा में ‘शव’ होने से पानी दूषित हो गया है। फिर एक अन्य विपक्षी नेता कहिन कि वहां हजारों लोग मरे हैं। फिर कहिन कि ये मेरा अंदाजा है। फिर एक विपक्षी नेता कहिन कि सरकार आंकड़े क्यों नहीं बता रही। एक और ने कहा कि हजारों मरे, बता दें… छिपाते क्यों हैं। एक ने तो यहां तक कह दिया कि लाशों को रातों-रात बुलडोजर से जमीन में गाड़ दिया गया। एक नेताजी यह भी कहिन कि (महाकुंभ के जरिए) धर्म का कारोबार किया जा रहा है। महाकुंभ प्रवक्ता कहते रहे कि जांच जारी है।
फिर आया दिल्ली में मतदान का दिन। हर महत्त्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र से चैनलों द्वारा सीधा प्रसारण। पल-पल की खबर। नौ बजे तक यहां इतना फीसद वोट पड़ा… ग्यारह तक इतना फीसद… शाम पांच बजे तक इतना पड़ा..! अगले दिन जब बताया गया कि पिछले बरस से दो फीसद नीचे मतदान रहा तो एक बार फिर विश्लेषकों की पूछ बढ़ती दिखी। बाल की खाल निकाली जाती रही। कितनी महिलाओं ने वोट डाला, कितने पुरुषों ने। फिर जातिगणना की जाने लगी कि इतने, इनको, उतने और शाम तक कुछ नामी उम्मीदवारों की देहभाषा खुद बताने लगी कि कौन जोश में है, कौन हताश है। इतने में एक नेताजी दूर की कौड़ी लाए कि ‘उनके सूत्रों’ ने खबर दी है कि मशीनों में गड़बड़ कर सकते हैं, इसलिए आप इतना वोट डालना कि पंद्रह फीसद अधिक हो जाए और पांच फीसद से हम जीत जाएं।
प्रकारांतर से यह सब भी चुनाव पर बजट के प्रभाव का स्वीकार ही था, लेकिन एकाध को छोड़ करीब सात-आठ ‘एक्जिट पोल’ ने साफ दिखाया कि इस बार दिल्ली में भाजपा को बहुमत मिलने जा रहा है। बरसों बाद वह पुराना गाना सुनाई दिया कि दिल्ली है दिलवालों की। इसे देख बहुत से प्रवक्ताओं के चेहरे उतरे से दिखे। इसके बाद आया यह आरोप कि ‘आपरेशन लोटस’ चालू है… हमारे ‘पंद्रह विधायकों’ को पंद्रह-पंद्रह करोड़ का प्रस्ताव दिया गया है। जब एक ने पूछा कि अभी तो कोई नया विधायक बना ही नहीं, तब कैसे मालूम कि किसे पेशकश की गई तो अगले रोज एक स्थानीय नेता का ‘फोनो’ दिखाया गया, जिसमें वह किसी ‘मिस काल’ की बात कहते थे। कुछ के लिए ‘मिसकाल’ भी प्रमाण है! फिर जैसे ही ‘वक्फ बिल’ की संसद में प्रस्तुति की खबरें आईं वैसे ही एक दल के एक नेताजी ‘चेतावनी’ सी देते दिखे कि हम वक्फ की एक इंच जमीन नहीं देंगे… कि अगर वक्फ बिल पास हुआ तो सामाजिक अस्थिरता होगी!
एक एंकर भी कहिन कि वक्फ की कोई बीस हजार करोड़ रुपए की वार्षिक आमदनी होगी, लेकिन दिखाते बहुत कम हैं। बाकी आय कहां जाती है। एक मुसलिम महिला बोली कि इतने पैसे से तो कौम के लिए बढ़िया स्कूल-कालेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल तक बनाए जा सकते हैं। एक अन्य महिला कहिन कि कुछ नेता तो सामाजिक हिंसा की बात कर रहे हैं… ये कहां तक संविधानसम्मत है! इस तरह की हिंसा का मानो जवाब देते हुए एक मौलाना ने एक चैनल पर कहा कि पहली बार मैंने भाजपा को वोट दिया है… मैं मुसलमानों के दिल से भाजपा के डर निकालना चाहता हूं… मुसलमान भी ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे..!’