पिछले सप्ताह जब दिल्ली के नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह देख रही थी, मुझे स्वीकार करना पड़ा कि एक ही राजनीतिक दल है जो हारने के बाद अपनी गलतियां सुधारने का काम शुरू करता है और वह है भारतीय जनता पार्टी। लोकसभा चुनावों के बाद बेशक नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन पूर्ण बहुमत के बिना। उनके करीबी बताते हैं कि लोकसभा में साठ सीटें गंवाने के बाद उनके पांव जमीन पर इतनी जोर से पड़े कि उनका अहंकार टूट गया।
चुनाव से पहले अहंकार इतना था कि उन्होंने यहां तक कहा था कि उनको ‘परमात्मा ने भेजा है’ भारत को बचाने के लिए। यानी अपने आपको उन्होंने अवतारों की श्रेणी में रख दिया था। चुनाव के बाद इस तरह की बातें उनकी ओर से नहीं सुनाई दी हैं। रामलीला मैदान में जब रेखा गुप्ता ने मुख्यमंत्री की शपथ ली तो ‘मोदी, मोदी, मोदी’ का वह पुराना नारा कम सुनाई दिया और भारत माता की जयकार ज्यादा।
मंच पर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को दिखाकर शक्ति प्रदर्शन जरूर किया पार्टी ने, लेकिन मंच पर चंद्रबाबू नायडू भी दिखे, एकनाथ शिंदे और अजीत पवार भी और उनको पूरा सम्मान दिया गया। ऐसा लगा कि भाजपा के रणनीतिकारों ने लोकसभा चुनावों के बाद सीख ये ली है कि मतदाताओं को राजनेताओं में अहंकार अच्छा नहीं लगता है। शायद यही कारण है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली में पार्टी ने शानदार जीत हासिल की है। हाल में किया गया एक सर्वेक्षण बताता है कि लोकसभा चुनाव अगर आज किए जाते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को 281 सीटें मिल सकती हैं।
जो अहंकार भारतीय जनता पार्टी में दिखता था, अब कांग्रेस पार्टी में दिखने लगा है, इतना कि राहुल गांधी का बर्ताव ऐसे हो गया है जैसे अपने मन में प्रधानमंत्री बन गए हैं। माना कि उनको नेता प्रतिपक्ष बनने का अधिकार मिल गया है, अब लेकिन एक सर्वेक्षण के मुताबिक विपक्षी दलों में से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा, अगर आम चुनाव आज होते हैं। कांग्रेस की सीटें 100 से गिर कर 78 हो जाएंगी। कांग्रेस पार्टी में ईमानदारी से कभी आत्ममंथन होता नहीं है, लेकिन अगर होता तो इस नुकसान का कारण जरूर राहुल गांधी के नेतृत्व, या नेतृत्व का अभाव, साबित होता।
राहुल गांधी में इतना अहंकार दिखने लगा है कि लोकसभा के अंदर और लोकसभा के बाहर जब भी कुछ बोलते हैं तो निशाने पर रखते हैं प्रधानमंत्री को। राजनीतिक कमियां अगर गिनाते मोदी की, तब भी बात समझ में आती, लेकिन आरोप लगाते हैं सारे व्यक्तिगत किस्म के, जैसे मकसद हो प्रधानमंत्री की निजी छवि पर कीचड़ उछालना। अडाणी, अडाणी का मंत्र बार-बार जपते हैं, ताकि साबित हो कि नरेंद्र मोदी के साथ उनका कोई खास रिश्ता है। लोकसभा के बाहर कांग्रेस के सांसदों ने ‘मोदी-अडाणी भाई भाई’ के नारे लगाए और इसी नारे को अपनी कमीजों और झोलों पर भी छापा। इस नारे को इतनी बार सुन चुकी है जनता कि ऊब-सी गई है, लेकिन यह संदेश लगता है कि राहुल गांधी के कानों तक नहीं पहुंचा है।
इन दिनों वे सोशल मीडिया पर अपने इतने वीडियो डालते हैं कि रोज कोई नया वीडियो सामने आता है। पिछले सप्ताह दो वीडियो देखे मैंने, जिनको देखकर मैं हैरान रह गई। पहले वाले में वे किसी गाड़ी के इंजन खोलकर समझाते दिखे कुछ युवाओं को कि आधुनिक इंजन कैसे होते हैं गाड़ियों के। दूसरे वीडियो में दिखे एक ड्रोन को हाथ में लिए और उसके बारे में समझाते हैं कि इस छोटे-से औजार ने बड़ी-बड़ी बंदूकों और टैंकों को खत्म कर दिया है रणभूमि में। फिर याद दिलाते हैं कि यह ड्रोन चीन में बन रहे हैं, लेकिन भारत में नहीं। ऐसी ही कुछ बात उन्होंने लोकसभा में भी कहीं राष्ट्रपति के भाषण पर बोलते हुए।
क्या उनको अभी तक पता नहीं लगा है कि उनका यह सारा ज्ञान गूगल का बटन दबा कर बच्चे भी हासिल कर लेते हैं आजकल? ऊपर से जब उनके करीबी दोस्त और गुरु सैम पित्रोदा से सुनने को मिला पिछले हफ्ते कि उनकी नजरों में चीन इस देश का दुश्मन नहीं है तो क्यों न भारतीय जनता पार्टी को मसाला मिले, उनके ऊपर चीन के दलाल होने का इल्जाम लगाने के लिए? पित्रोदा कई बार कांग्रेस का नुकसान कर चुके हैं उल्टी-सीधी बातें अमेरिका से बक कर, लेकिन लगता है कि उनको चुप कराने की क्षमता नहीं है गांधी परिवार में।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी ने अपनी छवि इतनी सुधार ली थी कि भाजपा के प्रवक्ता उनको गंभीरता से लेने लग गए थे। आजकल उनको ‘पप्पू’ कहने वाले कम हो गए हैं, लेकिन राहुल अपनी छवि को खुद बिगाड़ने में माहिर हैं। कुछ न कुछ कह देते हैं, जिससे साबित आज भी होता है कि जब बोलते हैं, फायदा होता है नरेंद्र मोदी का। गांधी परिवार के अब तीन सदस्य हैं संसद में और ऐसे पेश आते हैं जैसे कि भारत पर राज करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। पिछले संसद सत्र के बाद जब सोनिया गांधी से पूछा गया राष्ट्रपति के भाषण के बारे में, तो उनका जवाब था कि इतना लंबा और उबाऊ था कि वे ‘बेचारी’ थक गई थीं पढ़ते-पढ़ते।
मोदी बेशक सीख गए हों कि इस देश के आम लोगों को राजनेताओं में अहंकार पसंद नहीं है, लेकिन गांधी परिवार लगता है अभी इस बात को समझा नहीं है। अहंकार ने इतने चुनाव हराए हैं कांग्रेस पार्टी को कि अब भारतीय जनता पार्टी चौदह राज्यों में सरकारें चला रही है। शायद इसलिए कि लोकसभा में साठ सीटें हारने के बाद पार्टी में असली आत्ममंथन हुआ।