पिछले पखवाड़े यानी 16 नवंबर, 2024 (जनसत्ता) को प्रकाशित मेरे स्तंभ का शीर्षक था- ‘महाराष्ट्र पुरस्कार है’। मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि भाजपा, शिवसेना और एनसीपी के गठबंधन महायुति ने निर्णायक रूप से पुरस्कार जीता है। महायुति ने 288 में से 230 सीटें जीती हैं।
चतुर संदेश
इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है कि महायुति की जीत का मुख्य कारण क्या था। अधिकतर लोग इस बात पर सहमत हैं कि इसका कारण ‘लाडली बहना योजना’ (एलबीवाई) थी। इस योजना के तहत, शिंदे सरकार ने वादा किया था- और 1 जुलाई, 2024 से- हर महिला को, जिसकी पारिवारिक आय ढाई लाख रुपए प्रति वर्ष से कम थी, डेढ़ हजार रुपए प्रति माह देने शुरू कर दिए थे। ऐसे लाभार्थियों की संख्या ढाई करोड़ थी। महायुति ने यह भी वादा किया कि अगर फिर से चुनाव जीते, तो यह राशि बढ़ाकर 2,100 रुपए प्रति माह कर दी जाएगी। कृषि संकट, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं में उच्च बेरोजगारी दर, स्थिर ग्रामीण मजदूरी और मुद्रास्फीति के कारण यह योजना सफल रही। मगर यह कोई नई योजना नहीं थी। यह योजना एक नकल थी, जिसे मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना में लागू किया गया था। इसके अलावा, मुख्य प्रतिद्वंद्वी महा विकास अघाड़ी ने भी सत्ता में आने पर हर गरीब महिला को तीन हजार रुपए की राशि देने का वादा किया था। संतुलित तर्कों के आधार पर देखें तो मुझे नहीं लगता कि चुनावों में एलबीवाई निर्णायक कारक था।
मेरे विचार में, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में नया कारक नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की तिकड़ी द्वारा महाराष्ट्र के मतदाताओं को दिया गया कपटी संदेश था, और उसे आरएसएस स्वयंसेवकों की सेना ने फैलाया था।
उन्होंने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ और ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे गढ़े, जो भ्रामक रूप से तटस्थ उपदेश थे, मगर वास्तव में वे एक विशेष समुदाय के सदस्यों को संबोधित थे। इस अभियान में ‘लव जिहाद’ और ‘वोट जिहाद’ पर अक्सर भड़काऊ भाषण दिए गए। ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ और ‘अर्बन नक्सल’ जैसे पुराने जंगी नारे फिर से उछाले गए। संदेश चतुराईपूर्ण, अच्छी तरह से निर्देशित था और वह अपने निशाने पर लगा। इसने मुझे लोकसभा चुनावों के दौरान उछाले गए जहरीले कटाक्षों की याद दिला दी: ‘अगर आपके पास दो भैंसें हैं, तो कांग्रेस एक ले जाएगी।… आपका मंगलसूत्र छीन लिया जाएगा। और यह सब उन लोगों को दिया जाएगा जो अधिक बच्चे पैदा करते हैं।’
महायुक्ति
इसमें कोई संदेह नहीं कि संदेश किस समुदाय को लक्षित थे। और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि लक्षित समुदाय के लिए तथाकथित खतरा कौन-सा समुदाय था। स्तंभकार आर. जगन्नाथन, जो आमतौर पर भाजपा के प्रति सहानुभूति रखते हैं, ने ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में लिखते हुए स्वीकार किया कि यह ‘हिंदू वोटों को एकजुट करने का एक शक्तिशाली नारा’ था। नए नारे इस साल विजयादशमी के दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भाषण की याद दिलाते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘दुनिया भर के हिंदू समुदाय को यह सबक सीखना चाहिए कि असंगठित और कमजोर होना दुष्टों द्वारा अत्याचार को आमंत्रित करने के समान है।’ नारे और भाषण, नफरत फैलाने वाले अभियान और ‘फूट डालो और जीत हासिल करो’ की चुनावी रणनीति का हिस्सा थे। वे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग थे। उन्होंने भारत के संविधान का अपमान किया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15, 16, 25, 26, 28(2), 28(3), 29 और 30 को रौंद दिया। यह अभियान महायुति द्वारा रची गई महायुक्ति (बड़ी चाल) थी।
हर देश में अल्पसंख्यक होते हैं। अल्पसंख्यक धार्मिक, भाषाई, जातीय या नस्लीय हो सकते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में अश्वेत और लातिनी लोग हैं। चीन में उइगर हैं। पाकिस्तान में शिया हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू हैं। श्रीलंका में तमिल और मुसलमान हैं। आस्ट्रेलिया में आदिवासी हैं। इजरायल में अरब हैं। कई यूरोपीय देशों में यहूदी और रोमा हैं। यूरोप की परिषद ने समानता को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान को संरक्षित और विकसित करने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए ‘फ्रेमवर्क कन्वेंशन, 1998’ को अपनाया है। मौलिक कानूनों में अमेरिका में नागरिक अधिकार अधिनियम, 1964 और आस्ट्रेलिया में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून हैं। दूरदर्शी डा. आंबेडकर ने भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों तक विस्तृत कर दिया।
पाखंड
भारतीय और भारत सरकार बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के अधिकारों को लेकर भावुक और मुखर रहते हैं। हम चिंतित हो जाते हैं जब विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय मूल के छात्रों को परेशान किया या मार दिया जाता है। जब विदेशों में हिंदू मंदिरों या सिख गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की जाती है, तो हम गुस्सा हो जाते हैं। लेकिन जब अन्य देश या मानवाधिकार संगठन अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर भारत से सवाल करते हैं, तो विदेश मंत्रालय उन्हें चेतावनी देने के लिए हरकत में आ जाता है कि ‘हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें’। पाखंड स्पष्ट है।
दुनिया भर में द्वेषपूर्ण भाषण और कार्यकलाप फैल रहे हैं। बांग्लादेश में एक हिंदू साधु को गिरफ्तार किया गया और वहां ‘इस्कान’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठ रही है। एक भारतीय मठ के प्रमुख ने कथित तौर पर कहा कि ‘मुसलमानों को मतदान के अधिकार से वंचित करें।’ (स्रोत: न्यूइंडियनएक्सप्रेसडाटकाम)। लोकतंत्र में दोनों ही अस्वीकार्य हैं।
अगर राजग अपना ‘फूट डालो और जीत हासिल करो’ का खेल जारी रखता है, तो अल्पसंख्यकों का मुद्दा भारत को परेशान करेगा। यह ‘फूट डालो और राज करो’ के भयावह ब्रिटिश खेल से अलग नहीं है।