हम सोचते रह गए, वे मार गए… हमने नौ और दस की सुबह फज्र की नमाज के बाद हमला करना तय किया था… इससे पहले हम कुछ कर पाते, भारत ने ‘ब्रह्मोस मिसाइल’ से हमला कर दिया… हमारे रावलपिंडी समेत कई हवाईअड्डे तबाह कर दिए..!’ शुक्रवार की सुबह एक चैनल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को बोलते हुए दिखा रहा है। वे खुद भारत के हमले के सबूत दे रहे हैं, लेकिन अपने कई विपक्षी नेता अपनी ही सरकार से सबूत मांग रहे हैं। एक चैनल कहता है- प्रधानमंत्री पाकिस्तान से लड़ते हैं, विपक्ष मोदी से लड़ता है।

पहले विदेश मंत्री ने कहा, फिर प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे और पाकिस्तान बीच किसी तीसरे की भूमिका स्वीकार नहीं, तो भी विपक्षी कहे जाते हैं कि ट्रंप ने क्यों कहा कि मैंने संघर्ष विराम कराया… प्रधानमंत्री ट्रंप को चुप क्यों नहीं करते! हालत यह है कि गुजरात में प्रधानमंत्री ‘रोड शो’ करें तो परेशानी और बिहार में करे तो परेशानी। एक रैली में पाकिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं कहता हूं सुधर जाइए… रोटी खाइए… चैन से रहिए नहीं तो मेरी गोली तो है ही..!

‘आपरेशन सिंदूर’ अब तक विपक्ष का ‘सिर दर्द’ बना हुआ है

एक विपक्षी नेता कहते हैं- कैमरों के आगे ही इनका (मोदी का) खून क्यों खौलता है… ये खोखले ‘डायलाग’ हैं। (माना कि ये ‘डायलाग’ हैं, लेकिन जनता यही पसंद करती है, इसीलिए इन पर ताली मारती है!) ‘आपरेशन सिंदूर’ अब तक विपक्ष का ‘सिर दर्द’ बना हुआ है। प्रधानमंत्री कहिन कि उनकी रगों मे सिंदूर दौड़ता है… कि सिंदूर बारूद बन गया… इस पर विपक्षी टूट पड़ते हैं कि पहलगाम के हत्यारे अब भी छुट्टे घूम रहे हैं… कि मोदी ‘सिंदूर बेचने वाले’ हैं..! कैसी अद्भुत स्थिति है कि मोदी अपना काम करते रहते हैं, विपक्ष मजाक उड़ाता रहता है! भारत सरकार आपरेशन सिंदूर’ के बारे में दुनिया के देशों को भारत का पक्ष बताने के लिए सर्वदलीय सांसदों की कई टीमें भेजती है, जिनमें विपक्ष के कई बड़े नेताओं समेत शशि थरूर भी शामिल हैं। अन्य नेताओं की तरह वे भी विदेश के नेताओं को भारत सरकार के ‘आपरेशन सिंदूर’ की बाबत बताते हैं। इस पर उनके दल के ही कुछ नेता उन पर निशाना साधने लगते हैं कि थरूर ‘भाजपा के प्रवक्ता’ बन गए हैं।

‘पढ़ाई हो या पराक्रम… देश को बेटियों पर अभूतपूर्व भरोसा’; 10 प्वाइंट में जानें पीएम मोदी के भाषण की बड़ी बातें

फिर आई बिहार से एक ‘कामिक कहानी’। एक बड़े राजनीतिक परिवार के ‘पिताश्री’ ने परिवार की ‘मर्यादा’ की रक्षा के लिए बड़े पुत्र को पार्टी और घर से छह साल के लिए निकाल दिया। तभी पुत्र के खिलाफ अदालत में तलाक की गुहार करने वाली पत्नी रोती-बिलखती चैनलों पर बोलीं कि ये चुनाव के पहले का नाटक है… परिवार में न उसे खाना दिया जाता था, न पानी… उसे कब न्याय मिलेगा..! पुत्र के साथ किन्हीं अन्य महिला के साथ वाली तस्वीरें दिखने लगी थीं। फिर एक चैनल किन्हीं अन्य के साथ पुत्र की ‘दोस्ती’ की संभावना के ‘छायाचित्र’ दिखाता रहा! कहानी में मोड़ ही मोड़ दिखे। सारी कहानी एक ओर, ‘निजता की छतरी’ दूसरी ओर। स्त्री के हक में न्याय की गुहार आगामी चुनाव पर ‘कहानी के प्रभाव के आकलन’ के बीच झूलती रही, लेकिन उसकी सुनने वाला कोई न था!

मोदी शासन के ग्यारह साल पूरे हुए तो कई चैनलों ने चर्चा चलाई। सत्ता-प्रवक्ताओं ने सरकार की उपलब्धियों को बताना शुरू किया कि दुनिया की कई एजंसियां मानने लगीं हैं कि आज भारत चौथे नंबर की यानी 4.2 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन चुका है। इसके बाद विपक्ष के कुछ नेता शुरू हो गए कि यह ‘अघोषित आपातकाल’ के ग्यारह साल हैं!

फिर आई जलते नोट, सुलगते सवाल मामले में जांच रपट की कहानी, जिसमें छेद ही छेद दिखे। सभी चर्चा में नामी वकील दिखे जो सुप्रीम कोर्ट की बनाई जांच समिति की रपट पर चर्चा करते कहते रहे कि कानून व्यवस्था की कानून के रखवालों द्वारा की जाती ऐसी बेहुरमती अभूतपूर्व है। कई नामचीन वकीलों ने सवाल उठाए कि जिन न्यायाधीश पर आरोप रहे, जिनके घर में और घर के बाहर कूड़े के ढेर में जलते हुए नोट देखे गए!
रपट बताती रही कि दमकल विभाग के अफसर समेत कोई डेढ़ दर्जन चश्मदीदों ने समिति को बताया कि उन्होंने उस ‘कोठी’ के ‘आउट हाउस’ में नोटों की गड्डियों को दीवारों के सहारे ऊंचे लगे हुए और जलते हुए देखा!

पुलिस आई, लेकिन न नोट बरामद किए, न कमरा ही सील किया। कई दिन बाद उसे बंद किया गया। सारी प्रतिक्रिया में इतने झोल कि बहुत से प्रमाण गायब। फिर इतने आरोपों के बाद भी आरोपी न्यायाधीश का इस्तीफा देने से इनकार करना और कहना कि उक्त नोटों के बारे में उन्हें कुछ नहीं मालूम। क्या ‘आउट हाउस’ कोठी का हिस्सा नहीं है? अगर कोई आम आदमी होता तो अब तक तिहाड़ में होता। सारी प्रकिया में इतनी लापरवाही क्यों… प्राथमिकी क्यों न हुई..! अब करते रहिए आरोपी न्यायाधीश के खिलाफ संसद में ‘महाभियोग’ चलाने और पारित होने का इंतजार!