यह इस ‘होली’ की खबर है कि ‘डर’ की खबर है, जो ‘तनाव’ की खबर है। इस होली की बोली में सुरक्षा बलों की टोली है। चैनलों पर पंक्तियां सरकती दिखती हैं: ‘इस बार की होली ‘शुद्ध सनातनी’ होली… ‘हिंदुत्व’ की होली… लगता है कि इस बार ‘होली’ की परिभाषा भी सिकुड़ चली है। एक ओर जुमे की नमाज… दूसरी ओर होली का त्योहार..! कई संवाददाता बताते रहे कि संभल में मस्जिदें तिरपाल से ढकी हैं, उत्तर प्रदेश में ढकी हैं। एक चैनल लिखता है: ‘अपनेपन का त्योहार… धर्म पर क्यों तकरार… कि मस्जिदों पर तिरपाल… अजीब है हाल’! एक मौलाना कहते हैं कि यह पहली बार है कि मस्जिदें ढकी गई हैं… फिर एक चैनल पर लाइन कि ‘संभल, मुरादाबाद… नमाज ढाई बजे के बाद…’!
इतनी ‘डरी हुई’ होली कभी न दिखी
जुमे के दिन ‘संभल’ में होली आयोजन को लेकर एक पुलिस अधिकारी का यह आदेश कि ‘जो न खेलें, घर से न निकलें…’ बहसों में बना रहता है। इस बार पुरानी दिल्ली में भी पुलिस की गश्त दिखती है, ताकि कोई अवांछित घटना न हो। इतनी ‘डरी हुई’ होली कभी न दिखी। एक चैनल में पंक्तियां रेंगती हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश में और यूपी के बारह जिलों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम। कुछ पंक्तियां नेताओं के शुभ संदेश… कि ‘होली प्यार से मनाएं’, ‘भाईचारे से मनाएं’! फिर एक पंक्ति कहती है कि ‘प्यार से गले मिलें’। लेकिन ऐसे संदेशों को कौन माने? फिर भी सभी महामहिमों द्वारा होली की शुभकामनाएं… लेकिन इनमें ‘जनसाधरण’ की होली कहां? चैनलों में तो ‘डर’ है, ‘तनाव’ है!
एक चैनल की एक संवाददाता ‘बरसाने’ की ‘होली’ का सीधा प्रसारण दिखा रही है। रंगों के बीच ब्रजबालाओं के साथ नाचती-गाती, ‘लट्ठमार होली’ की खबर देती हुई वह भी होली की तरंग में लहराती दिखती है। जरा-सा घूंघट काढ़े खूब सजी-धजी तगड़ी-सी ब्रजबालाएं लाठी लिए दिखती हैं और कुछ देर में ‘लट्ठमार’ होली भी शुरू हो जाती है।
अबीर गुलाल की बौछार के बीच सिर पर पाग बांधे हुरिहारों के चेहरों पर इतने रंग हैं कि सब बेपहचान नजर आते हैं। एक हुरिहारा कहता है कि हम ‘बरसाने’ में आकर अपनी भाभियों के लिए गीत गाएंगे तो वे लाठी लेकर मारना शुरू कर देंगी। हम ढाल सिर पर रख बचते रहेंगे। पिटने पर भी कोई बुरा नहीं मानता। यही ‘लट्ठमार’ होली है।
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एक महिला जरा-सा घूंघट काढ़ कर खुश होकर संवाददाता से कहती है कि आज के दिन औरतें मर्दानी बन जाती हैं… मर्दों के सिर पर जोर से लट्ठ बजाती हैं! पहले ब्रज की औरतें राधा बनकर कान्हा को बुलाने ‘नंदगांव’ जाती और गाती हैं कि ‘कान्हा बरसाने में आइ जइयो बुलाय गई राधा प्यारी…’ फिर बहुत से लोग कान्हा का बाना धरण कर अपने सिरों पर पाग बांध और हाथ में ढाल लेकर ‘बरसाने’ आते हैं। जैसे ही वे हमें छेड़ते हैं, हम उन पर लट्ठ बरसाने लगती हैं और गाने लगती हैं कि कान्हा बरसाने में आ जइयो बुलाय रही राधा प्यारी… एक गोपी उछल-उछल कर लट्ठ मारती रहती है। फिर भाभी-देवर का गीत-संवाद होता है, फिर रंग और लट्ठ बरसते हैं… कैमरे सब तस्वीरें लेते रहते हैं। विदेशी भी रंगों में बेपहचान हो जाते हैं। एक चैनल पर एक हुरिहारा कहता है कि राधे रानी के ‘बरसाने’ में आकर सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
मस्ती के इन दृश्यों के बीच अचानक एक चैनल की कुछ पंक्तियां फिर डराने लगती हैं..! कहां गए वे एक से एक सुरीले फिल्मी गीत, जो होली के इस दिन खबर चैनलों में खासकर बजाए जाते थे। एक दिन एक विपक्षी नेता एक नामी अभिनेत्री को कमतर करने वाला बयान देकर विवाद पैदा कर देता है। अभिनेत्री के पक्षधर उस पर पिल पड़ते हैं और देर तक तू-तू मैं-मैं होती रहती है। खबर में आने का नया सूत्र है। जानी-मानी हस्तियों को अपमानित करो, खबर बनाओ। चैनल भी ऐसे लोगों को निराश नहीं करते। उनके लिए ‘बदतमीजी’ भी ‘एक संस्कृति’ है।
बीता सप्ताह एक दक्षिणी राज्य के एक मुख्यमंत्री के नाम रहा। पहले उन्होंने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ को कोसा, फिर ‘त्रिभाषा फार्मूले’ के बहाने ‘केंद्र’ पर ‘हिंदी’ थोपने का आरोप लगाया, फिर केंद्र द्वारा अपेक्षित धन न देने की शिकायत की, फिर ‘परिसीमन’ को लोकसभा की वर्तमान सीटों को कम करने वाला बताया, फिर उन्होंने दक्षिणी राज्यों को इकट्ठा कर ‘दक्षिण बरक्स उत्तर’ किया। केंद्र कहता रहा कि न कोई ‘हिंदी’ थोप रहा है, न सीटें कम हो रही हैं, लेकिन जब परस्पर ‘विश्वास की कमी’ हो तो कोई क्या करे..!
अंत में उन्हीं मुख्यमंत्री ने ‘रुपए के चिह्न’ को बदलकर ‘तमिल चिह्न’ घोषित कर दिया। एक चर्चा में ‘मुद्रा’ के ‘चिह्न विशेषज्ञ’ ने साफ किया कि ‘मुद्राचिह्न’ तय करने का अधिकार ‘रिजर्व बैंक’ का है। फिर रुपए के ‘स्वीकृत चिह्न’ को जिस कलाकार ने बनाया, वह तमिलनाडु के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री का स्नेह पात्र रहा। अब उन्हीं के सुपुत्र मुख्यमंत्री रुपए के उसी चिह्न को खारिज कर रहे हैं, लेकिन जब तक रिजर्व बैक ही खारिज न करे, वह खारिज नहीं हो सकता है! जय हो ‘खारिज संस्कृति’ की!