सबूत चाहिए था अगर कि राजनीतिक बहस में जहर घुल गया है, तो पिछले सप्ताह मिला। नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के नहीं, देश के प्रधानमंत्री हैं। उनकी सुरक्षा में छेद जब दिखने लगते हैं तो ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि देश की सुरक्षा को खतरा है। यह बात बहुत कम राजनेताओं ने कही उस घटना के बाद, जो पंजाब में घटी और जिसकी तस्वीरें हम सबने बार-बार देखी होंगी हर समाचार चैनल पर।

तस्वीरों में प्रधानमंत्री के काफिले को देखा हमने एक ऊंचे पुल पर कई मिनट के लिए रुके हुए, जिस दौरान कुछ झंडे उठाए लोग प्रधानमंत्री की गाड़ी के बिलकुल पास खड़े हुए दिखाई दिए। किसने इनको इतने पास आने दिया? किसकी गलती थी कि ऐसा हुआ? इतनी देर तक क्यों ऐसी जगह पर रुका रहा प्रधानमंत्री का काफिला, जहां प्रधानमंत्री की जान को खतरा था? सवाल और भी हैं बहुत सारे, लेकिन इनको पूछने का समय ही नहीं था, इसलिए कि घटना घटने के क्षणों बाद जहरीली, शर्मिंदा करने वाली बहस शुरू हो गई थी।

शुरुआत प्रधानमंत्री ने की पंजाब सरकार पर ताना कसते हुए इस बयान से, ‘अपने मुख्यमंत्री को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा जिंदा पहुंच गया हूं’। उनका यह बयान क्या आया कि कांग्रेस पार्टी के कुछ आला नेताओं ने शर्मनाक ट्वीट किए। एक ट्वीट में पूछा गया प्रधानमंत्री से कि उनका ‘जोश’ कैसा है, तो कुछ ऐसे थे जिनमें इशारा किया गया कि पूरी घटना भारतीय जनता पार्टी द्वारा रचा गया तमाशा था, जो इस बात को छिपाने के लिए किया गया, क्योंकि जिस आमसभा को संबोधित करने जा रहे थे मोदी, वहां खाली कुर्सियों की कतारें थीं। ऐसी बातें ऐसे समय करना, जब देश के प्रधानमंत्री की जान को खतरा हो सकता था, शर्मनाक हैं। मगर इसके जवाब में भारत सरकार के आला मंत्रियों की प्रतिक्रिया उतनी ही लज्जाजनक थी।

मोदी के मंत्री वैसे भी अपनी भक्ति दिखाने के लिए होड़ लगाए रहते हैं, पर इस बार ऐसा लगा जैसे उनको ऊपर से आदेश आया था पंजाब कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाने का कि इस घटना के पीछे जो साजिश थी, उसमें पंजाब सरकार शामिल थी। ऐसे बयान भाजपा के अधिकारियों से आए होते तो आरोप इतना गंभीर नहीं होता, उसको राजनीतिक बयानबाजी वाले बस्ते में आसानी से डाल दिया जाता, लेकिन जब भारत सरकार के मंत्री ऐसे बयान देते हैं, तो गंभीरता से लेना अनिवार्य हो जाता है और इसके बाद उठते हैं कई सवाल। पहला यह कि इन मंत्रियों के पास क्या सबूत था कि पंजाब सरकार ने प्रधानमंत्री की जान को खतरे में सोच-समझ कर डाला? सबूत नहीं हैं, तो इस तरह के आरोप कैसे लगाए उन्होंने?

निजी तौर पर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ गृहमंत्री का वह बयान सुन कर, जिसमें उन्होंने जवाबदेही पंजाब सरकार की ठहराई। क्या गृहमंत्री जानते नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी एसपीजी की होती है, जो केंद्र सरकार के तहत काम करती है? इस स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप को स्थापित किया गया था इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, यह मान कर कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा आम पुलिस वालों के हवाले नहीं छोड़ी जानी चाहिए।

एसपीजी की स्पष्ट इजाजत के बिना यह भी नहीं तय हो सकता है कि प्रधानमंत्री अगर सड़क के रास्ते कहीं जा रहे हैं, तो वह रास्ता कौन-सा होगा।
नियम-कायदे जो बनाए गए हैं एसपीजी के लिए, उस ‘ब्लू बुक’ में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि जिस रास्ते पर प्रधानमंत्री का काफिला निकलने वाला है उस रास्ते को पहले एसपीजी के अपने लोग सुरक्षित करेंगे। जिन स्थानीय पुलिस वालों को उस मार्ग पर लगाया जाता है, उनको भी एसपीजी चुनती है। कहने का मतलब यह है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में पिछले हफ्ते जो खाईं जैसा छेद दिखा, उसके लिए भारत सरकार जिम्मेवार है। उसके बाद आती है जवाबदेही पंजाब सरकार की।

घटना इतनी गंभीर थी कि भारत सरकार और पंजाब सरकार को एक-दूसरे पर दोष डालने के बजाय साझी जांच करनी चाहिए। घटना पंजाब में हुई थी, इसको भूलना नहीं चाहिए कभी और यह भी याद रखना चाहिए कि एक दौर वह था जब पाकिस्तान का दखल इतना हुआ करता था पंजाब के शासन में कि कहना मुश्किल था कि पंजाब पुलिस के कौन-से अधिकारी पाकिस्तान के लिए काम कर रहे थे। उस दौर को समाप्त हुए तीन दशक हो गए हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि पाकिस्तान द्वारा पूरी कोशिश हो रही है खालिस्तान के उस बेवकूफ सपने को एक बार फिर जीवित करने की।

हर दूसरे दिन आती हैं खबरें ड्रोन द्वारा असलहा और प्रचार के पर्चे पंजाब के खेतों में गिराए जाने की। पंजाब की सीमा के आसपास गांवों में सुरक्षा की जिम्मेवारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के हवाले कर दी गई है, ऐसी हरकतों को रोकने के लिए। ऐसे हालात के चलते हुए जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर राजनीतिक खेल खेला जाता है, तो लाभ भारत को नहीं, हमारे दुश्मनों को होता है।

पंजाब के सबसे बुरे दिन देखने के नाते मैं अपनी तरफ से विनम्रता से अनुरोध करना चाहती हूं अपने देश के आला राजनेताओं से कि यह समय है देश को राजनीति से ऊपर रखने का। माना कि पंजाब में चुनावों की सरगर्मी है, लेकिन चुनाव जीत कर क्या हासिल होगा, अगर देश में फिर से मौका दिया जाता है ऐसी ताकतों को पनपने का, जिनको बड़ी मुश्किल से और कई जानें गंवा कर हमने पिछली बार कुचला था। जिस तरह के बयान हमने पिछले सप्ताह सुने देश के सबसे बड़े राजनेताओं से, उनसे लाभ भारत को नहीं, पाकिस्तान में बैठे भारत के सबसे बड़े दुश्मनों को हुआ है।