नए साल का पहला दिन मेरे लिए वह दिन होता है, जब याद करती हूं कि गुजरे साल में क्या खोया है, क्या पाया है देश ने राजनीतिक तौर पर। इसलिए कि साल के पहले दिन खुश रहना चाहिए, मायूस नहीं, मैं शुरू करती हूं अच्छी चीजों को याद करके।

मेरी सूची में सबसे बड़ी सफलता देश की रही है कि उस महामारी को हमने नियंत्रण में रखा है, जिसने 2021 में इतना दुख दिया था देश को। काबू इतना पाया है अब कि वह डरावना डेल्टा दौर हम तकरीबन भुला चुके हैं, जब ऐसा लगा था कुछ दिनों के लिए कि कोविड को हम कभी नहीं रोक पाएंगे।

पिछले साल के आखिरी दिनों में स्वास्थ्य मंत्री ने राहुल गांधी को पत्र लिख कर सावधान किया कि अगर कोविड नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है, तो भारत जोड़ो यात्रा को रोक दिया जाएगा। अजीब सावधानी थी यह, इसलिए कि इशारा देश को नहीं दिया गया था, बल्कि विपक्ष के उस राजनेता को, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि अगले साल आने वाले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ी चुनौती दे सकते हैं।

इस इशारे ने देश के आम लोगों को बिल्कुल डराया नहीं, लेकिन मोदी सरकार ने इशारा जरूर किया कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ काफी सफल रही है, अधमरी कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने के वास्ते। सावधानी आई थी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के बाद, तो ऐसा लगा कि प्रधानमंत्री खुद थोड़ा-बहुत चिंतित हुए हैं राहुल गांधी की बदलती छवि को देख कर।

लोकतंत्र बिना विपक्ष के चल नहीं सकता और पिछले आठ वर्षों में कई राजनीतिक पंडितों ने सोच-समझ कर अनुमान लगाया बार-बार कि 2024 में मोदी को कोई नहीं चुनौती दे सकता है। और ‘पप्पू’ राहुल तो बिलकुल नहीं। अब ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की उस दुखती नब्ज पर हाथ रख दिया है, जो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।

राहुल के शब्दों में, ‘नफरत के बाजार में मैंने मुहब्बत की दुकान खोली है’। भगवान करे कि मुहब्बत की यह दुकान फले-फूले, क्योंकि यह वह साल रहा है, जिसमें इतनी नफरत फैलाई है मोदी के समर्थकों ने कि कुछ ऐसे दिन गुजरे हैं, जिनमें लगा कि इस नफरत को काबू में रखना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है।

नफरत फैलाने के लिए अगर सिर्फ मोदी के अंधभक्त जुटे होते, तो कोई बात न होती। लेकिन जब उनके सांसद और मंत्री शामिल होते हैं नफरत फैलाने में, तो देश के भविष्य पर काले बादल मंडराने लगते हैं।

ऐसा हुआ है बहुत बार पिछले साल। यहां तक कि जब भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता ने इस्लाम के पैगंबर का मजाक उड़ाया था टीवी की एक चर्चा में तो इतना क्रोध फैला इस्लामी मुल्कों में कि भारत सरकार को माफियां मांगनी पड़ीं।

ऐसा नहीं कि दोष सिर्फ हिंदुत्ववादियों को दिया जा सकता है। नूपुर शर्मा के उस बयान के बाद जिहादी इस्लामी संस्थाएं सक्रिय हुर्इं और सर तन से जुदा करने के नारे लगने लगे बाजारों और मस्जिदों में। इन नारों का परिणाम हुआ कि एक बेगुनाह दर्जी और डाक्टर के सर तन से जुदा करके दिखाया जिहादी हत्यारों ने। अलग से शुरू हुआ मुसलिम महिलाओं का हिजाब को लेकर अभियान।

ऐसे समय जब अफगानिस्तान में लड़कियों की पढ़ाई जबर्दस्ती रोकी जा रही है, और ईरान में महिलाएं बीच बाजार अपने हिजाब उतार कर जला रही हैं, हमारे देश में हिजाब पहनने के लिए मुसलिम लड़कियां जिद कर रही हैं। उनको समर्थन मिल रहा है वामपंथी राजनेताओं से, इस आधार पर कि भारतीय मुसलिम औरतें वही अधिकार मांग रही हैं, जो ईरान की औरतें मांग रही हैं।

बकवास है यह। ईरान की औरतें हिजाब को अपनी गुलामी का प्रतीक मानती हैं और भारत की मुसलिम महिलाएं हिजाब को अपनी आजादी का प्रतीक मान रही हैं। अपने भारत महान की एक और अजीब दास्तान।

दोष मुसलमानों का हो या हिंदुओं का, दुआ हमको यह करनी चाहिए इस नए साल के पहले दिन कि दोनों होश में आएं और जो उनके बीच दरारें पैदा हो चुकी हैं, उनको कम करने की कोशिश करें। समस्या यह है कि जिनका काम है सही रास्ता दिखाना, वही अगर बेकार की बातें करने लगेंगे तो मामला सुलझेगा कैसे?

पिछले हफ्ते जहां भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपने एक भाषण में हिंदुओं को कहा कि अपने घरों में उनको चाकू तेज करके रखने चाहिए लव जिहादियों को मारने के लिए, वहीं कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने कह डाला कि देश ‘टूटा हुआ है’।

रही बात आर्थिक सफलताओं और विफलताओं की, तो हमको कहते तो हैं भारत सरकार के प्रवक्ता कि दुनिया में भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन जमीनी तौर पर न वे दो करोड़ नौकरियों का वादा पूरा होते दिखता है और न ही आम आदमी के जीवन में कोई ऐसा चमत्कार, जिससे जीना थोड़ा आसान हो जाए।

बेरोजगारी और महंगाई के बोझ तले घिस रही है जनता, इसलिए शायद वे लोग गलत नहीं हैं, जो कहते हैं कि हिंदू-मुसलिम तनाव पैदा करने के पीछे मकसद है आम लोगों का ध्यान आर्थिक कठिनाइयों से भटकाना।

इस बात में थोड़ा भी अगर सच है तो कहना पड़ेगा कि असली ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कौन है। इल्जाम जो लगाते हैं जेएनयू पर और वामपंथी राजनेताओं पर उनके लिए अब वक्त है कि अपने गिरेबान में झांक कर देखें। नफरत जो भी फैला रहा है, वह इस देश का दुश्मन है और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए आने वाले साल में, इसलिए कि अमन-शांति के बिना आर्थिक ऊंचाइयों तक पहुंचने की कोई उम्मीद नहीं है। नव वर्ष की शुभकामनाएं। नया साल मुबारक।