अपने खबर चैनल तालिबान को ‘दुर्जेय आतंकी-जिहादी’ की तरह पेश करते हैं। वे दिन-रात उनका खौफ बेचते हैं। उनकी छवि दैत्याकार बन चली है।
दो चैनलों की लाइन है : ‘तालिबान’ में दुनिया भर के जिहादी और आतंकी शामिल हैं, जो कल तक जेलों में थे। वे घर-घर तलाशी ले रहे हैं, औरतों को उठा ले जा रहे हैं। ऊपर से कहते हैं, हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं, लेकिन करते उलटा हैं। उनका भरोसा नहीं किया जा सकता।

जिस रात अमेरिका का आखिरी सैनिक काबुल से भागता है, उसी रात तालिबान देर तक गोलियां चला कर अपनी जीत का जश्न मनाते हैं। उनकी हर तस्वीर, हर फ्रेम, उनके आतंक की दास्तान कहते हैं :- एक अफगानी चैनल का न्यूज रीडर न्यूज पढ़ रहा है और एक तालिबानी उसके पीछे बंदूक ताने खड़ा है। कुछ तालिबानों ने उड़ते ‘ब्लैक हॉक’ हेलीकॉप्टर से एक आदमी को रस्सी से बांध कर नीचे लटकाया हुआ है।

एक चैनल लाइन लगाता है : अफगानिस्तान दुनिया भर के जिहादियों का गढ़ है! इस्लामी ‘खिलाफत’ का केंद्र है। ‘अलकायदा’ कहता है : कश्मीर को आजाद कराना अगला लक्ष्य है।
एक बहस में एक अमेरिकी एक्सपर्ट कहता है : अमेरिका का युग गया। अमेरिकी शताब्दी खत्म। उसका रुतबा खत्म। अमेरिका से लोगों का भरोसा उठ गया! यह चीन की शताब्दी है।

एक हिंदी चैनल में पाकिस्तानी प्रवक्ता एक अफगानी शरणार्थी औरत तक को अपनी कटूक्तियों से देर तक रुलाता और खुश होता रहता है। ऐसे लोगों को ये चैनल क्यों बुला लेते हैं?


हर बहस तालिबानी खौफ से लबरेज है : एक बहस में एक इस्लाम एक्सपर्ट बताता है, उनका असली मकसद ‘गजवा-ए-हिंद’ करना है और ‘गजवा-ए-हिंद’ का पाठ देवबंद में पढ़ाया जाता है। और मूर्ख भारतीय सरकारें पहले ‘गजवा-ए-हिंद’ करने वालों को तैयार कराती हैं, फिर रोती रहती हैं! ऐसों का कोई क्या करे?

एक एंकर चेताता है : दरवाजे पर दुश्मन खड़ा है और सरकार इधर-उधर कर रही है। क्यों?
दो भक्त एंकर इन दिनों सरकार की तालिबान-नीति को बार-बार ठोकते हैं! उनकी लाइन है ‘स्टाप टेरर’। ‘स्टाप तालिबान’।

जो भक्त एंकर हर बात पर सरकार की चंपी करते थे, आजकल चपत लगाते चलते हैं और विपक्ष के प्रवक्ता सरकार से एक ही कटखना सवाल करते हैं कि ये बताइए, तालिबान आतंकी हैं कि नहीं?
उमर अब्दुला और औवेसी भी ताना मारते हैं, अगर आतंकी है तो बात क्यों और अगर नहीं तो बात क्यों नहीं?

इस दोहरी मार में सरकार बुरी तरह फंसी है : तालिबान को आतंकी कहती है, तो वहां फंसे भारतीयों का क्या होगा और अगर आतंकी नहीं कहती, तो पाक से बात क्यों नहीं?
प्रवक्ता सिर्फ इतना कह पाते हैं कि वहां फंसे भारतीयों को निकालना हमारी प्राथमिकता है, इसलिए जब तालिबान ने दोहा में चाय पर बुलाया तो गए, लेकिन बात करने का मतलब मान्यता देना नहीं है।

अमेरिकी एक्सपर्ट बुरी तरह विभाजित हैं। कुछ हैं जो बाइडेन के भक्त हैं, कुछ हैं जो आलोचक हैं। आलोचक कहते हैं कि अमेरिका की इस दगाबाजी ने दुनिया को संकट में झोंक दिया है! इतना हथियार छोड़े हैं, जितना दुनिया के पचासी फीसद देशों के पास नहीं।

दो अंग्रेजी चैनल ‘तालिबानी आतंकियों’ से ‘नो टाक’ की लाइन देते हैं। तीसरा तालिबान का हमदर्द है, लेकिन खुल कर कह नहीं पाता, जबकि चौथा बीच में लटका रहता है।
हिंदी चैनल दोटूक हैं। उनके लिए तालिबान जिहादी और आतंकी हैं। वे पंजशीर के शेरों की तारीफ करते हैं और पाकिस्तान को ठोकते-ठुकवाते हुए वीर रस से भरे रहते हैं।

वातावरण इतना कटखना हो चला है कि अभिनेता नसीरुद्दीन शाह जैसे ही एक वीडियो में कहते हैं कि भारत का इस्लाम दुनिया के इस्लाम से अलग है! तालिबानों की जीत फिक्र का बायस है। इन वहशियों की वापसी का जश्न मनाना ठीक नहीं, भारतीय मुसलमानों को सुधरा इस्लाम चाहिए… वैसे ही तालिबानपरस्त नसीर को ट्रोल करने लगते हैं। सेक्युलर दिखने वाली मुसलिम महिला पत्रकार नसीर को ‘इस्लामोफोबिक’ कह कर धिक्कारती है और बदले में एंकर उसे धिक्कारता है।

लेकिन इस तालिबानी घमासान में भी चैनल बारिश में दिल्ली के डूबने और टीवी सुपर स्टार सिद्धार्थ शुक्ला के आकस्मिक निधन को दिन भर दिखाते रहते हैं।