इसके बाद आती है मुंबई के ‘श्रद्धा-आफताब’ के सहजीवन संबंध और श्रद्धा की नृशंस हत्या की कहानी, जिसे आफताब खुद पुलिस के आगे इस तरह कबूल करता है: चार-पांच साल से आजादी-पसंद श्रद्धा और आफताब की दोस्ती, श्रद्धा के माता-पिता को ऐतराज, मई के महीने में श्रद्धा-आफताब का उत्तराखंड और हिमाचल आना, फिर दिल्ली आना, मेहरौली में किराए का घर लेकर दोनों का रहने लगना, खर्चे को लेकर दोनों का झगड़ना, आफताब का श्रद्धा को मारना-पीटना, जलती सिगरेट से जलाना, फिर एक झगड़े के बाद मई के महीने में ही श्रद्धा की गला घोंट कर हत्या कर देना

फिर गांजा पीना, फिर खाना मंगाना और खाना, फिर उसी रात एक ‘चैट ऐप’ के जरिए एक और लड़की को बुलाना… फिर ‘ओटीटी’ पर फिल्म ‘डेक्स्टर’ देखना, लाश निपटाने के तरीके जानना और यह सब कुछ बेहद ठंडे तरीके से करना… शरीर को काटने के लिए आरी या ‘कुल्हाड़ी’ लाना, फिर उसके शरीर के पैंतीस टुकड़े करना, टुकड़ों को काले प्लास्टिक थैलों में बंद कर नए खरीदे फ्रिज में रखना और खून को बहाने के लिए देर रात पानी की मोटर चलाना, खून के ध्ब्बे मिटाने के लिए एसिड लाना, बदबू हटाने के लिए ब्लीच लाना और रात के दो बजे मेहरौली के डरावने घने जंगलों में थैलों में बंद टुकड़ों को फेंकने जाना, श्रद्धा के कटे सिर और चेहरे को जला देना, ताकि पहचाना न जा सके और फिर कहीं फेंकना और अंगूठों को और कहीं फेंकना, ताकि सबूत न मिले… मुंबई में रहते अपने माता-पिता को बाहर भेज देना… एकदम गजब की योजना!

श्रद्धा के माता-पिता को इस संबंध पर आपत्ति रही, लेकिन वह नहीं मानती थी। श्रद्धा के जिन मित्रों को इसकी खबर थी, उन्होंने संबंध तोड़ने को कहा, लेकिन वह नहीं तोड़ सकी, क्योंकि आफताब आत्महत्या की धमकी देकर उसे ‘ब्लैकमेल’ करता था। श्रद्धा के शरीर के पैंतीस टुकड़े करने के महीनों बाद तक वह बड़ी सहजता से श्रद्धा के दोस्तों से आनलाइन बात करता रहा, बताता रहा कि वही उसे छोड़ कर कहीं चली गई है…
इसके बाद, माता-पिता की शिकायत पर महाराष्ट्र पुलिस ने दिल्ली पुलिस को लिखा, तो दिल्ली पुलिस ने उसे पकड़ा। घर से ‘दस टुकड़े’ बरामद किए। फ्रिज बरामद किया, लेकिन जिस हथियार से हत्या की गई, वह नहीं मिला। हर विशेषज्ञ कहता रहा कि पक्के सबूत जुटाना मुश्किल है!

हर चैनल पर इस हत्या की भयानकता की रिपोर्टें और चर्चाएं रहीं, लेकिन कुछ ही देर में ‘राजनीति’ का ‘प्रवेश’ हो गया और देखते-देखते यह ‘लव जिहादी हत्या’ बरक्स एक ‘मनोरोगी’ द्वारा की गई ‘बर्बर हत्या’ की कहानी में बदल गई! कुछ कहते कि आफताब ‘मनोरोगी’ है, तो कुछ कहते वह ‘लव जिहादी’ है! एक वर्ग कहता कि जिस तरह से उसने उसे काटा और सबूत मिटाए, वह एक आदमी का काम नहीं हो सकता। इसके पीछे और लोग भी हो सकते हैं, तो दूसरा वर्ग कहता कि यह सिर्फ एक ‘मनोरोगी’ द्वारा की गई ‘बर्बर हत्या’ है।

इसी बीच गुरुवार को लखनऊ की ‘निधि’ को, उसके कथित प्रेमी ‘सूफियाना’ द्वारा चौथी मंजिल से फेंक कर मार देने की कहानी भी कुछ को ‘लव जिहाद’ जैसी नजर आई, लेकिन चैनलों ने श्रद्धा की कहानी को ही तरजीह दी! बाद में सूफियाना पकड़ा भी गया! बहरहाल, इस बात पर सब चर्चक सहमत रहे कि आफताब को जल्द से जल्द फांसी दी जानी चाहिए!

तभी एक चैनल पर एक चर्चक ने कहा कि जिस देश में राजीव गांधी के हत्यारे तक छूट जाते हों, उस देश में एक दिन यह भी छूट सकता है… इसी प्रसंग में इस सप्ताह की वह खबर याद आई, जो कहती थी कि ‘राजीव गांधी के हत्यारे छोड़ दिए गए!’ इस पर कई एंकर और चर्चक क्षुब्ध नजर आए कि यह कैसा न्याय है कि मारने वाला नायक और मरने वाला खल… हत्यारा ‘हीरो’ और ‘हत’ जीरो…‘पीएम’ को मारो और सजा से मुक्त हो जाओ… यह कैसी दारुण करुणा है प्रभु! ऐसी भयानक दया नृशंस आतंकियों पर भी बरसेगी क्या? तब तो हत्यारे ही पुजेंगे और मारा गया मनुष्य बार-बार मारा जाएगा!

सिर्फ ‘जी-20’ ने एक सकारात्मक खबर दी कि भारत को ‘जी-20’ की अध्यक्षता मिली! यहां हर फ्रेम में प्रधानमंत्री थे। एक चैनल ने लाइनें लगार्इं: बाइडेन, मैक्रों और ऋषि सुनक, सब भारत की ओर देख रहे हैं… भारत को एक उम्मीद की तरह देखा जाता है… हैरत कि प्रधानमंत्री की इतनी तारीफ, लेकिन विपक्ष ने एक गोला तक नहीं दागा!