एक सांसद ने अफसोस के साथ कहा : कहां अमर जवान ज्योति, जिसे देख एक हम बड़े हुए और आज उसे ही खत्म कर दिया गया! हाय हाय हाय हाय! भाजपा प्रवक्ता बोला : खत्म कहां किया? शहीद स्मारक में उस ज्योति को विलय कर दिया गया! इस तरह हमने उसका ‘वि-उपनिवेशीकरण’ (डिकालोनाइजेशन) कर दिया! ज्योति को जार्ज पंचम की छतरी के नीचे से निकाल कर सही जगह ले जाया गया!

इसके साथ ही दूसरी घोषणा आई कि इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पत्थर की एक बड़ी मूर्ति लगाई जाएगी! इस एलान ने विपक्ष को फिर से पसोपेश में डाल दिया! फिर उसी शाम पीएम ने नेताजी की होलोग्राम मूर्ति का उद्घाटन भी कर दिया!

अमर जवान ज्योति को हटाने को लेकर एक कांग्रेसी प्रवक्ता ने फिर भी ताना दिया : तुम क्या क्या हटाओगे? इंडिया गेट को भी हटा दो। संसद भवन भी हटा दो… चैनलों में होड़ मची है। सब एक ही तरह के ओपिनयन पोल दे रहे हैं और सबका निशाना यूपी है! चैनल भी ओपिनियन के नाम पर अपना खेल करते हैं। उनकी लाइन रहती है : जीतने वाले को जिताओ, लेकिन हारने वाले को हारा मत बताओ! क्या पता आज हारने वाला ही कल जीत जाए!

इसलिए हर चैनल सावधान है। कोई ‘राष्ट्र का मूड’ दिखाता है, कोई पांच राज्यों का ओपिनयन पोल दिखाता है! एक चैनल दैनिक भाव से ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ बताता रहता है। उसका पोल मानें तो पिछले महीने से जो जीतता आ रहा है वही जीतता दिखता है!

हर चैनल जाति, धर्म आदि का आकलन करता रहता है और अगर कोई कहे कि आप तो जातिवाद या सांप्रदायिकता कर रहे हैं तो जवाब आता है कि यही तो राजनीतिक दल करते हैं, अगर हम करते हैं तो क्या गुनाह?

ऐसी ही चीख-पुकार के बाद भी न जीतता दिखता एक दल चुनाव आयोग से शिकायत कर बैठता है कि ये ओपिनियन पोल बंद किए जाएं, क्योंकि ये जनता को बरगलाते हैं… इस पर एक एंकर ‘पर्सनली’ ले लेता है और बिफर कर कह उठता है कि हमारे पोल को देखने के बाद ही बंद करने की मांग की गई है, लेकिन मैं कह दूं कि ओपिनियन पोल कराना मेरा पत्रकारीय अधिकार है और मैं उसे करके रहूंगा, देखता हूं कौन रोकता है मुझे…

इन दिनों ऐसा ही वीर रस हर चैनल पर बरसता है : नेता तो ताल ठोकू, प्रवक्ता तो ताल ठोकू, एंकर तो ताल ठोकू और दर्शक तो ताल ठोकू! पंजाब के चुनावी दृश्य सर्वाधिक आनंदकारी हैं! चाहे सिद्धू की प्रेस कान्फ्रेंस हो या चन्नी की या अमरिंदर की या आप के मान की, सबकी अपनी-अपनी खास बाइटें होती हैं। ऐसे में एक दिन अमरिंदर ने कह दिया कि इमरान ने फोन करके कहा था कि सिद्धू को मंत्री बनाएं। मैंने सोनिया गांधी को बताया था। लोगों ने पूछा कि अभी क्यों बताया?

चैनलों की खबरों की मानें, एंकरों की टिप्पणियों को मानें, तो कांग्रेस हर दिन बिखरती दिखती है : एक नेता एक दिन भाजपा में चला जाता है, दूसरा सपा में चला जाता है, तीसरा टीएमसी में चला जाता है! लेकिन कांग्रेस अपने पुराने ‘टकसाली चित्रों’ में ही टहलती दिखती रहती है! जब एक दिन कांग्रेस के स्टार प्रचारक आरपीएन सिंह भाजपा में चले गए तो कांग्रेस की एक प्रवक्ता ने कहा कि ऐसे ‘कायरों’ की कांग्रेस में जगह नहीं।

फिर एक नेत्री ने बताया कि कांग्रेस एक कठिन और विचारधारा की लड़ाई लड़ रही है, जिसके लिए बूता चाहिए। जो डरपोक हैं वे जा सकते हैं! हाय कैसी वीरमुद्रा!

फिर एक दिन पद्म सम्मानों ने हंगामा किया। सरकार ने इस बार कुछ बड़ा दिल दिखाया! विपक्षी कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और माकपा के बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म भूषण से नवाजा, तो दो तरह की प्रतिक्रियाएं आईं।

गुलाम नबी ने स्वीकार किया, तो उन्हीं के एक मित्र ने सम्मान को ना करने वाले भट्टाचार्य को ‘आजाद’ और स्वीकार करने वाले आजाद को ‘गुलाम’ कह कर ताना कसा, तो इस मित्र के मित्रों ने उसको जम के ठोका कि दूसरे लोग सम्मान करते हैं और अपने अपमान करते हैं!

भट्टाचार्य के पक्ष से तर्क रहे कि माकपा सरकारी सम्मान नहीं लेती! क्या बात है? सीएम बन कर सरकार चला सकते हैं, सरकारी दाना-पानी ले सकते हैं, लेकिन सम्मान नहीं लेंगे! इसे कहते हैं : गुड़ खाएं गुलगुलों से परहेज!

ऐसे ही आइएसआइ फंडित ‘इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउंसिल’ के वेबिनार में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद असांरी ने भारत को ‘बहुसंख्यकवादी’ और ‘फेथवादी’ (धर्मवादी) जनतंत्र कह कर अपनी संकीर्णता प्रकट कर अपनी ही बेहुरमती कराई!