मैं तो बलि का बकरा हूं- वाजे ने कहा और चैनलों ने दिखाया : बकरे के पास एक से एक महंगी गाड़ी रही। एक दो नहीं, दर्जन से अधिक एक से एक ‘लग्जरी’ गाड़ियां। हाय! मुंबई वाला ये ‘बकरा’ है भी तो एकदम ‘क्लासी’। ‘स्टाक शॉट्स’ में वह बेफिक्र आता-जाता नजर आता है। जिस ‘राष्ट्र भाई’ को वह गिरफ्तार करने गया था, वह भाई जब वाजे को दिखाता है तो उसकी भाषा ‘पर्सनल इज पोलिटीकल’ बन जाती है, मानो कहता हो कि एक दिन तू मुझे अंदर ले गया था, अब देख तू अंदर गया। मेरा सच जीता और तेरा झूठ हारा!

इन दिनों गर्वीला ‘सच’ टीवी स्टूडियोज में अक्सर सूट-टाई पहन के बैठा करता है और प्राइम टाइम की बहसों में अपना हिसाब भी चुकता करता रहता है। इधर कोरोना दिन दूना रात चैगुना गदर मचाए है, उधर एंकर और डॉक्टर समझाए जाते हैं कि सावधानी बरतें, कोरोनोचित आचरण करें, मास्क लगाएं, दूरी रखें, हाथ साफ करें! लेकिन दिल्ली या मुंबई के बाजारों में पब्लिक अपने ढंग से जीती है।
आम जनता को प्यार से समझाने वाला सबसे बेहतरीन विज्ञापन दिल्ली के सीएम केजरीवाल का ही नजर आता है, जो बेहद पर्सनल तरीके से लोगों को टीका लगवाने और सही आचरण करने की सलाह देते हैं। अगर अन्य नेता भी ऐसे विनय भरे विज्ञापन दें तो बेहतर रहे! लोग प्यार से समझाओ तो सीखते हैं, एकतरफा आदेशों से नहीं सीखते।

एक दिन केंद्र का एक मंत्रालय ‘चुनिंदा इतिहास’ को ‘ठीक’ करने का ऐलान कर देता है और आश्चर्य कि इस बार कोई चूं तक नहीं करता! कहां गए सारे सेक्युलर साथी? अबोहर में भाजपा विधायक की पिटाई के सीन सब चैनल दिखाते हैं, लेकिन कोई जरा-सा अफसोस तक नहीं जताता। लगता है कि किसान आंदोलन अपने जिद्दीपने में खुन्नसवादी हो गया है!फिर एक दिन एक पचासी बरस की बुढ़िया, राजनीतिक हमले के एक महीने बाद मर कर, बड़ी खबर बनाती है। उसका चेहरा इस कदर घायल दिखता है कि आप उसे सह नहीं सकते। बहसें बहसों की तरह ही दुहरती हैं : एक आरोप लगाता है इसने मारा तो ‘इसने वाला’ आरोप लगाता है कि उसने मारा!
चुनाव का जादू सच को गायब कर देता है। बुढ़िया के साथ सच भी मर जाता है।

कई चैनलों की एक शाम ‘लव जिहाद’ के नाम रही और एक बहस देर तक इसी पर अटकी रही कि लव जिहाद है भी कि नहीं कि सबसे पहले इसे किसने बोला? एक ने कहा, केरल की अदालत ने कहा। दूसरे ने बोला कि दूसरे ने बताया कि सीपीएम के अच्युतानंदन ने हिंदू-ईसाई वोट पटाने के लिए बोला था।

हम हंसे या रोएं, लेकिन भाजपा ने मार-मार कर सारे विपक्षियों को उनके हिंदू होने की याद दिला दी है, इसीलिए इन दिनों हर कोई ‘गोत्र’ बताता फिर रहा है। एक चुनाव विशेषज्ञ ने इसका रहस्य खोला कि नंदीग्राम में तीस प्रतिशत मुसलिम हैं और सत्तर प्रतिशत हिंदू हैं। शायद इसीलिए ममता दीदी को अपना गोत्रा याद आया है और रैली को भी बताया कि जब एक मंदिर के पुजारी जी ने पूछा तो उन्होंने अपना गोत्र ‘शांडिल्य’ बताया। इसी तरह एक अंग्रेजी एंकर राहुल के बताए ‘दत्तात्रोय’ गोत्र को याद किया, लेकिन वह सही उच्चारण की जगह सिर्फ ‘दतत्रो’ बोल पाया।

सेक्युलर बंगाल में भी ‘हिंदू अखाड़ा’ खुल गया है! जीत-हार इसी अखाड़े में होनी है! तो भी, टीएमसी की एक सांसद सेक्युलराए बिना न रहीं और ट्वीट दीं कि एक चोटीवाला चोटीवाला है, दूसरा चोटीवाला राक्षस है। इसके जवाब में मोदी ने एक रैली में उनको ठोका कि ये लोग रोहिंग्या बांग्लादेश के घुसपैठियों को तो गले लगाते हैं और चोटीवालों को राक्षस बताते हैं…

क्या नंदीग्राम ममता का ‘वाटरलू’ बनेगा? वृहस्पति को दोपहर के बाद यह सवाल तब सबकी जुबान पर आया, जब ममता दीदी नंदीग्राम के गोकुलपुर के एक बूथ पर अपनी वील चेयर में दो घंटे तक अटकीं रहीं और मतदान को अटकाए रहीं। भाजपा के वोटर ‘जै श्रीराम’ के नारे लगा कर उनको चिढ़ाते रहे। वे क्षुब्ध मुद्रा में बोलती रहीं कि कुछ लोग वोट की ‘रिगिंग’ करा रहे हैं… चुनाव आयोग मिला हुआ है, लेकिन वह नब्बे फीसद वोट लेकर जीत रही हैं। एंकरों और चर्चकों ने जम के चुटकी ली कि जब आपको नब्बे फीसद वोट मिल रहे हैं तो फिर ‘रिगिंग’ कैसी? विरोधी शुभेंदु ने कहा : वे हार रही हैं इसीलिए ड्रामा कर रही हैं।

बुधवार को जैसे ही अदालत ने इशरत जहां मामले में फैसला दिया, तुरंत एक चैनल के एंकर ने अपनी पीठ ठोकी कि देखा, हमने तो पहले ही उसे ‘सुसाइड बांबर’ कहा था, आज उस पर अदालत ने मुहर लगा दी। दूसरे चैनल के एंकर ने भी अपनी पीठ ठोकी कि देखा, जो हमने कहा वह सही निकला! एक ने तो यह लाइन तक दी कि जिन्होंने इशरत मामले को ‘फेक एनकाउंटर’ बताया, उनकी जांच होनी चाहिए!