बहुत सी चीजों में सुधार हुआ है नरेंद्र मोदी के दौर में। सड़कें तेजी से बनती हैं आज। पुराने दौर में कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि इतनी तेजी से कभी भारत में हाईवे बन सकेंगे। हवाईअड्डों को देख कर लगता है कि भारत अभी से विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है। हमारे महानगरों के कुछ हिस्सों में ऊंची-चमकती इमारतें हैरान कर देती हैं। देहातों में सुबह-शाम खुले में शौच करते हुए लोग अब नहीं दिखते हैं, लेकिन पिछले सप्ताह दो दर्दनाक घटनाओं ने याद दिलाया कि हमारे प्रशासनिक तौर-तरीके अभी वही पुराने और रद्दी किस्म के हैं।
पहली घटना बंगलुरु में देखने को मिली जब आइपीएल जीत कर इस शहर की क्रिकेट टीम लौटी अहमदाबाद से। मौका खुशी का था, लेकिन खुशी मनाते हुए ग्यारह बेकसूर लोग अपनी जान गंवा बैठे, सिर्फ प्रशासनिक नाकामियों के कारण। रायल चैलेंजर्स बंगलुरु ने पहली बार आइपीएल जीता, तो टीम के साथ खुशी मनाने लाखों की तादाद में टीम के समर्थक उस स्टेडियम में पहुंचे, जहां जीत का जश्न होने वाला था।
पहली प्रशासनिक गलती थी कि जश्न के सारे प्रबंध सोशल मीडिया पर अफवाहों के जरिए बताए गए। अफवाह फैली कि पहले पहुंचने वालों को स्टेडियम के अंदर जाने दिया जाएगा, चाहे उनके पास टिकट हो या नहीं। इस अफवाह के कारण लाखों में लोग स्टेडियम पहुंचे और जब बहुत ज्यादा भीड़ दिखी, तो प्रबंधकों ने स्टेडियम के गेट बंद कर दिए। भगदड़ मच गई। जब ऐसा हुआ, तो मालूम पड़ा कि न तो भीड़ को काबू करने के लिए पुलिसवाले काफी लगाए गए थे और न ही एंबुलेंस का इंतजाम था। बंदोबस्त होता तो शायद कुछ जानें बच जातीं।
‘कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के जवाब ने कर दिया शर्मिंदा’
सबसे ज्यादा शर्मिंदा इस बात ने किया कि जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से पूछा गया कि इंतजाम उनका इतना नाकाम क्यों था, तो अकड़ कर मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि इस कार्यक्रम को उनकी सरकार ने नहीं करवाया था। यानी दोष टीम के प्रबंधकों पर खिसकाने की कोशिश की गई, बिना संवेदना दिखाए।
बिना यह सोचे कि कार्यक्रम की इजाजत देना उनकी सरकार का काम था। इससे भी ज्यादा संवेदनहीन बयान उनके एक मंत्री ने दिया यह कह कर कि जश्न उस दिन मनाया नहीं जाता जीत का, तो क्या अगले साल मनाते। रही बात विपक्ष के प्रवक्ताओं की तो उन्होंने संवेदना जताने के बदले अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की।
दूसरी शर्मनाक घटना बिहार से है। यहां पटना के सरकारी अस्पताल के बाहर बुरी तरह जख्मी दस साल की बच्ची की मौत इसलिए हुई क्योंकि उसको घंटों अस्पताल के बाहर इंतजार करना पड़ा, क्योंकि अस्पताल के अंदर खाली बिस्तर नहीं थे। बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था और जिस दरिंदे ने उसके साथ यह बर्बरता की, उसने उसका गला भी काटने की कोशिश की थी। गंभीर हाल में आई थी बच्ची, लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उसका इलाज इमरजंसी तौर पर करने के बदले उसको घंटों तक बिना इलाज किए तड़पाया। बच्ची के इलाज में पहले ही काफी देर हो चुकी थी, क्योंकि उसको मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल से लाया गया था। कैसे लोग हैं हमारे अस्पतालों में जो इतना बेदर्द हो सकते हैं?
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पटना का यह अस्पताल बिहार का सबसे अच्छा अस्पताल है, लेकिन पिछले साल विधानसभा में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट के मुताबिक अस्पताल का हाल इतना खराब है कि आधे से ज्यादा आक्सीजन मशीनें काम नहीं कर रही थीं। पटना मेडिकल कालेज और अस्पताल सौ साल पुराना है। बिहार सरकार चाहती, तो इसको देश के सबसे अच्छे अस्पतालों की श्रेणी में ला सकती थी। कैग के मुताबिक अस्पताल की 94 फीसद से ज्यादा सुविधाएं खस्ताहाल हैं और डाक्टरों-नर्सों की नियुक्ति इतनी लापरवाही से की गई है कि करीब 36 फीसद की कमी है इन लोगों की अस्पताल में।
यह पहली बार नहीं है कि बिहार की नाकाम स्वास्थ्य सेवाओं का जिक्र हुआ है राष्ट्रीय स्तर पर। याद कीजिए 2019 की वह घटना जब 150 से ज्यादा बच्चे मर गए थे मुजफ्फरपुर जिले में इंसेफेलाइटिस से, सिर्फ इसलिए कि न अस्पतालों में दवा थी और न डाक्टर। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा था कि ऐसा कभी दोबारा नहीं होने दिया जाएगा। झूठा था उनका वादा, जैसे अक्सर झूठे होते हैं हमारे शासकों के वादे। जानते हैं ये लोग कि कुछ देर के लिए हल्ला मचाया जाएगा मीडिया में और उसके बाद लोग भूल जाएंगे। लोग भूलने पर मजबूर हैं।
मैंने कई विकसित देश देखे हैं, सो कहना चाहूंगी कि विकसित देशों में स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं पर उतना ही ध्यान दिया जाता है, जितना सीमाओं की रक्षा पर दिया जाता है। विकसित देशों में शासक जानते हैं कि जब तक आम लोगों को स्वस्थ और शिक्षित करने का काम ईमानदारी से नहीं होता है बाकी सेवाएं बेकार रहती हैं।
हमारे हवाईअड्डे, हमारे बंदरगाह चाहे जितने आधुनिक हो जाएं, उनका क्या फायदा, अगर आम लोगों की बुनियादी सुविधाओं का हाल इतना बुरा रहता है? शर्म आनी चाहिए हम सबको कि आजादी के इस ‘अमृतकाल’ में पीने के पानी को भारत के आम वासी तरसते हैं। शर्म आनी चाहिए हमें कि क्रिकेट स्टेडियम के बाहर लोग मरते हैं सिर्फ प्रशासन की नालायकी के कारण।
बहुत कुछ बदला है पिछले दशक में, लेकिन जहां बिल्कुल कोई परिवर्तन नहीं दिखता है वह है हमारे प्रशासनिक तौर-तरीकों में। भारत विकसित देशों की श्रेणी में बिल्कुल नहीं आ सकेगा, जब तक हम विकसित देशों के प्रशासनिक तरीके नहीं अपनाते हैं।