हमारे बड़े भाग कि इस कोविड काल में भी ‘टाटा लिटफेस्ट मुंबई’ में दो अंग्रेज ज्ञानियों ने ‘भारतीय जनतंत्र’ को ‘खतरे’ में बताया और दो ने बताया कि जो खतरे की बात करते हैं वे ही सबसे बड़ा खतरा हैं। वह तो इस प्रस्तुति की ‘फारमेट’ इतनी शराफत छाप थी कि उसने आपसी भिड़ंतें नहीं होने दी, वरना हर बंदा एक-दूसरे को खतरा बता रहा होता।
उस दिन अमित शाह का तमिलनाडु का दौरा तमिलनाडु के राजनीतिक समीकरणों को बदलता-सा नजर आया। अमित शाह के सामने एआइडीएमके ने भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की बात जैसे ही कही, वैसे ही कई अंग्रेजी एंकरों के सुर बदल गए। जो एंकर कल तक हिंदी का जिक्र आते ही उसे तमिल के लिए ‘खतरनाक’ बताने के चक्कर में रहते थे, हिंदी को पुचकारते हुए चर्चा करा रहे थे।
लेकिन इस बीच अपने केरल कामरेडों ने जनता की इज्जत की कुछ ज्यादा ही चिंता कर डाली और पुलिस अधिनियम में एक संशोधन जारी कर पुलिस को हक दे दिया कि अगर मुख्य मीडिया समेत आनलाइन मीडिया में कोई किसी को ‘गाली’ देता है, ‘अपमानित’ करता है, तो उसे सीधे पांच साल की जेल और दस हजार का जुर्माना हो सकता है।
लेकिन जैसे ही मीडिया और विपक्ष ने सरकार की कुटाई की, वैसे ही अगले रोज अपने कामरेडों ने अपना ही थूका चाट लिया और अध्यादेश को लटकंत कर दिया! कैसी विडंबना है कि फासिज्म से लड़ते-लड़ते हमारे साथी खुद ही फासिज्म की राह पर दौड़ लिए और मार खाई!
इन दिनों सबसे अच्छी लगने वाली खबर सिर्फ टीकों की खबर है। हर चैनल पर ‘कोविड 19’ के टीकों की बहार है। हर चैनल अपने-अपने तरीके से टीकों के बाजार को गरम करने में लगा है। हर एक के पास दो-चार विशेषज्ञ हैं, एक जैसे टीके हैं और उनके रेट हैं!
सभी अपनी-अपनी डुगडुगी बजा कर ऐलान करते दिखते हैं कि ये लीजिए रूसी ‘स्पूतनिक’। सफलता दर बानबे प्रतिशत। दाम पांच डॉलर। और ये रहा ‘फाइजर’। सफलता दर पंचानबे प्रतिशत। दाम अड़तीस डॉलर। और ये रहा ‘एस्ट्राजेनिका’, सफलता दर चौरानबे प्रतिशत, दाम आठ डालर। और अंत में ये रहा अपना देसी ‘वोकल फॉर लोकल’ करने वाला कोविड शील्ड, कुल दो सौ पच्चीस रुपए में।
टीके की चर्चा करते वक्त हमारे एंकरों के चेहरे ऐसे खिल जाते हैं, जैसे टीके की खबर स्वयं टीका हो, जिसे वे लगवाके आए हों।
एक रामबाण टीके का इंतजार करती जनता को कभी-कभी अपने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी आश्वस्त कर जाते हैं कि टीके के आते ही हम सबसे पहले एक करोड़ कोविड योद्धओं को लगाएंगे और जुलाई तक तीस करोड़ को लगा देंगे…
आपके मुंह में घी शक्कर डॉक्टर साब! ऐसी दिलासाएं देते रहिए। नौ महीने आपके भरोसे डर-डर के काटे, अब दो तीन महीने और सही! मिर्जा गालिब पहले ही हमें समझा गए हैं:
‘तिरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना!
कि खुशी से मर न जाते गर ऐतिबार होता!!’
बस उम्मीद बनाए रखिए सर जी! उम्मीद पर दुनिया कायम है!
एक ओर आंध्र में चुंगी चुनाव है और दूसरी ओर भाजपा ने अपनी सारी बड़ी तोपें उतार दी हैं। एंकर चकित होकर पूछने लगते हैं कि सर जी कहां चुंगी का चुनाव और कहां आपकी इतनी बड़ी-बड़ी तोपें? जवाब आता है: हमारे लिए कोई चुनाव छोटा-बड़ा नहीं, सब बराबर हैं। एंकर की बांछें खिल जाती हैं। एक एंकर चुंगी से छलांग लगा कर सीधे बंगाल पहुंचता है और इन चुनावों को बंगाल के चुनावों से जोड़ देता है। इसी को कहते हैं ‘जन सिद्धांतिकी’!
लेकिन अपने योगी जी का जवाब नहीं। तू डाल डाल तो मैं पात पात! देखिए न! एक झटके में योगी जी ने ‘लव जिहाद’ पर ‘फुल स्टाप’ लगा दिया। अब करते रहो चिल्लपों कि ‘लव जिहाद’ में लव होता है कि जिहाद होता है!
इस बीच, कांग्रेस के ‘मुश्किलकुशा’ अहमद पटेल गुजर गए। इस झटके ने कांग्रेस के बड़े-बड़े सूरमाओं की ‘नूरा कुश्ती’ को कुछ दिनों के लिए शांत कर दिया!
दो महीने से अपने ‘अन्नदाता’ नाराज हैं। वे दो महीने से कह रहे हैं ‘दिल्ली चलो’, लेकिन हरियाणा पुलिस उनको दिल्ली की सीमाओं पर, कभी गैस गोले मार कर, कभी पानी की बौछार मार कर, कभी लाठी मार करके, रोके हुए है। उनके ‘दिल्ली चलो’ को लाइव कवर करते हुए कई एंकर उसे ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ की तरह दिखाते हैं और पूछते रहते हैं कि ‘इनको कौन भड़का रहा है’?
ये क्या बात हुई भाई! आपका कानून बनाएं तो धर्मनीति और उसका विरोध ‘राजनीति’! लेकिन किसान क्या करें? हमें तो कई एंकरों की राजनीतिक समझ किसान-विरोधी नजर आती है, यद्यपि वे उसे ‘अन्नदाता’ कहते नहीं अघाते!