यह व्यापक धारणा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को ‘निरस्त’ करने के सरकार के कदम को सही ठहराया था। सरकार ने दावा किया कि ‘निरस्तीकरण’ को न्यायालय ने वैध ठहराया और कुछ विद्वानों ने इस दावे को सही मान लिया। यह गलत है, जैसा कि मैंने अपने एक आलेख (‘अंधेरगर्दी के भविष्य की ओर’, जनसत्ता, 17 दिसंबर, 2023) में बताया था। वास्तव में, सर्वोच्च न्यायालय ने ‘निरस्तीकरण’ के मुद्दे पर इसके विपरीत निर्णय दिया था।

निरस्तीकरण अवैध, लेकिन…

सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को तीन कदम उठाए:

– संविधान के व्याख्या खंड (अनुच्छेद 367) में खंड (4) जोड़ने के लिए अनुच्छेद 370(1) का उपयोग किया;

– विस्तारित व्याख्या खंड का उपयोग कर अनुच्छेद 370(3) के उपबंधों को ‘संशोधित’ करने का दावा किया;

– ‘संशोधित’ अनुच्छेद 370(3) और उसके उपबंधों का उपयोग करके अनुच्छेद 370 को ही ‘निरस्त’ कर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने इन तीनों कदमों को अस्वीकार्य और असंवैधानिक माना।

फिर भी, शीर्ष अदालत ने तर्क दिया कि संविधान के सभी प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए अनुच्छेद 370(1) के तहत शक्ति का प्रयोग वैध था और इसका अनुच्छेद 370 को ‘निरस्त’ करने के समान ही प्रभाव था।

कानूनी स्थिति पर स्पष्टता : अनुच्छेद 370 को तथाकथित रूप से निरस्त करने का काम बहुत ही चतुराई से आधी-अधूरी तैयारी के साथ किया गया था। इसे अस्वीकार्य माना गया, लेकिन अनुच्छेद 370(1) के तहत संविधान के सभी प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने या विस्तारित करने को सही ठहराया गया।

मामला खत्म नहीं हुआ

फिर भी, मान लेते हैं कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द कर दिया गया है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि विशेष दर्जा रद्द करने से जम्मू-कश्मीर के लोगों में नाराजगी है और केंद्र सरकार की मनमानी के खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ रहा है।

पी. चिदंबरम का कॉलम- दूसरी नजर।

अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के साथ ही मामला खत्म नहीं हुआ। पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर (जो अपने विलय के बाद से एक राज्य था) को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। क्या यह स्वीकार्य और वैध था?

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याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय से इस सवाल पर भी विचार करने का अनुरोध किया। न्यायालय ने इससे इनकार कर दिया, क्योंकि केंद्र सरकार ने दलील दी कि वह जम्मू-कश्मीर (लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश को छोड़कर) का राज्य का दर्जा बहाल करने और वहां चुनाव कराने का इरादा रखती है। इस दलील को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने इस सवाल के कानूनी पहलू को ‘खुला’ छोड़ दिया, लेकिन जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए 30 सितंबर, 2024 की समय-सीमा तय की। जम्मू-कश्मीर में सितंबर, 2024 में चुनाव हुए, लेकिन आज तक राज्य का दर्जा बहाल नहीं हुआ है। यह निस्संदेह केंद्र सरकार की ओर से वादाखिलाफी है।

जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने में टालमटोल के लिए भाजपा और राजग सरकार जिम्मेदार हैं। राजग में शामिल अन्य दल भी दोषी हैं, क्योंकि वे केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद में सहभागी हैं।

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नैशनल कांफ्रेंस (एनसी) ने चुनाव जीतने के बाद 16 अक्तूबर, 2024 को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई। स्वाभाविक है कि एनसी सरकार चलाना चाहती थी और लोगों को उनकी प्रतिनिधि सरकार देना चाहती थी, जो जून 2017 से नकार दी गई थी। संभवत:, रणनीतिक कारणों से नैशनल काफ्रेंस राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे को लेकर मुखर नहीं हो पाई।

यह मांग जोरदार तरीके से नहीं उठने पर केंद्र सरकार ने मान लिया कि राज्य का दर्जा बहाल होना जम्मू-कश्मीर के लोगों की प्राथमिकता नहीं है। जबकि, राज्य के दर्जे से वंचित होने की पीड़ा वहां के लोगों का प्रमुख मसला है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने पिछले दस माह में जो भी कार्य किए हों, पर वह लोगों का विश्वास नहीं जीत पाई है। पीछे मुड़कर देखने पर नैशनल कान्फ्रेंस को यह एहसास हो सकता है कि राज्य के दर्जे पर मुखर न होकर उसने एक रणनीतिक गलती की थी।

पहलगाम और राज्य का दर्जा

पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने सभी को झकझोर कर रख दिया। मेरा मानना है कि पाकिस्तान से घुसपैठ करने वाले आतंकियों के अलावा भारत में भी स्थानीय आतंकवादी मौजूद हैं। कौन कहां हमला करता है और दोनों समूह किसी हमले में सहयोग करते हैं या नहीं, यह घटना और अवसर पर निर्भर करता है। पहलगाम में एनआइए ने दो भारतीयों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने कथित तौर पर तीन पाकिस्तानी आतंकियों को पनाह दी थी।

आपरेशन सिंदूर के बाद और 28-29 जुलाई, 2025 को एक मुठभेड़ में तीन विदेशी आतंकवादियों को मार गिराने के उपरांत ऐसा लगता है कि सरकार ने पहलगाम की घटना पर से पर्दा हटा दिया है। गिरफ्तार किए गए दोनों लोगों को लेकर पूरी तरह से चुप्पी है। क्या वे अभी भी हिरासत में हैं या उन्हें रिहा कर दिया गया है और मामला बंद कर दिया गया है? यह एक रहस्य है।

मगर लोगों को याद है। उन्हें इस बात का स्मरण है कि राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा पूरा नहीं हुआ है। जब कुछ याचिकाकर्ताओं ने इस वादे को पूरा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, तो न्यायालय ने कुछ मौखिक टिप्पणियां कीं कि पहलगाम में जो हुआ, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन टिप्पणियों ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को और भी निराश कर दिया होगा। अगली सुनवाई लगभग आठ हफ्तों में निर्धारित की गई है।

मेरे विचार से, सर्वोच्च न्यायालय को इससे संबंधित कानूनी मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों के उतार-चढ़ाव से कानून के अनुसार न्याय प्रभावित नहीं होना चाहिए। कानूनी मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय ने इस मुद्दे पर निर्णय लेने से परहेज किया, जबकि यह मुद्दा अदालत में किए गए वादे पर ही आधारित है। यह वादा बीस महीनों में पूरा नहीं हुआ है। अब विकल्प यह है कि वादे को तुरंत पूरा करने का आदेश दिया जाए या व्यापक कानूनी मुद्दे पर फैसला सुनाया जाए। मेरा मानना है कि संवैधानिक न्यायालय न्याय करेगा।