उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपनी सहयोगी निषाद पार्टी के साथ मतभेद सुलझा लिए हैं, लेकिन बीते गुरुवार को बीजेपी के एक अन्य सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के साथ अपने संबंधों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए तेजी से कदम उठाने पड़े। जिसके वजह से सरकार को विपक्ष का मुकाबला करना पड़ा, जिसने प्रदेश में मंत्री ओम प्रकाश राजभर के साथ एकजुटता व्यक्त की थी। दरअसल बीते बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने राजभर के बयान के बाद उनके आवास पर प्रदर्शन और पथराव किया था।
दरअसल कैबिनेट मंत्री ने बाराबंकी में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा एक विश्वविद्यालय में प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज में एबीवीपी सदस्यों के घायल हो गए थे। इसी लाठीचार्ज को लेकर बयान दिया था। अपने बयान में राजभर ने संगठन के सदस्यों को गुंडा कहा था। जिसके बाद एबीवीपी ने उनके खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया।
राजभर के बयान के बाद शुरू हुआ था विरोध
योगी सरकार में मंत्री राजभर ने किसी यूट्यूबर से बात करते हुए कहा, ‘कानून-व्यवस्था को नियंत्रित करना पुलिस का काम है। अगर आप गुंडागर्दी करोगे, तो निश्चित पुलिस कार्रवाई करेगी।’ उन्होंने आगे कहा कि पुलिस पहले तो धीरे से समझाती है और फिर अगर लोग नहीं सुनते, तो ‘कानून का डंडा’ चलाती है। राजभर के इस बयान के बाद एबीवीपी भड़क गई और मंत्री के घर के बाहर इकट्ठा होकर उनका पुतला जलाया और उनके खिलाफ नारे लगाए।
हालांकि एसबीएसपी के राष्ट्रीय सचिव और ओपी राजभर के बेटे अरुण राजभर ने आरोप लगाया कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन के दौरान ‘अभद्र भाषा’ का इस्तेमाल किया और विरोध प्रदर्शन को ‘अति पिछड़ा’ पर हमला बताया। इसके साथ ही सरकार से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। दरअसल एसबीएसपी का मुख्य मतदाता राजभर समुदाय को माना जाता है जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आता है।
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अरुण राजभर ने अपने बयान में आगे कहा, ‘हम बाराबंकी के श्री रामस्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय के बाहर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज की निंदा करते हैं और विश्वविद्यालय पर लगे आरोपों की जांच की मांग करते हैं। एसबीएसपी हमेशा छात्रों के साथ खड़ी रही है। लेकिन लखनऊ में बुधवार रात में मंत्री के घर पर पथराव करने, उन्हें अपशब्द कहने और एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ मारपीट करने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। प्रदेश में कानून का राज है। इसे तोड़ने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। अपने ही मंत्रियों की सुरक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।’
सपा और कांग्रेस ने राजभर के विरोध को बनाया पिछड़ा का मुद्दा
वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस दोनों ने कहा कि वे राजभर के साथ खड़े हैं और दोनों दलों ने बीजेपी पर निशाना साधा। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बीजेपी को एक ‘शोषण करने वाली पार्टी’ करार देते हुए कहा कि उनके सहयोगियों को अब तक समझ आ जाना चाहिए था कि वह उनकी आर्थिक स्थिति तो सुधार सकती है, लेकिन उनका सम्मान कभी नहीं कर सकती क्योंकि वह ‘पहले इस्तेमाल करो, फिर नष्ट करो’ के सिद्धांत पर काम करती है। उन्होंने आगे कहा, ‘बीजेपी ने अपने सहयोगियों को राजनीतिक रूप से बर्बाद कर दिया है। उनके हाथ-पैर ठंडे पड़ गए हैं और उनके चेहरे पीले पड़ गए हैं।’
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कांग्रेस ने कहा कि उसे उम्मीद है कि यह घटना सहयोगियों को आत्मसम्मान के महत्व का एहसास कराएगी। ‘ओम प्रकाश राजभर पिछड़े समुदाय से आते हैं। वह एक मेहनती और ज़मीनी नेता हैं। कल रात भाजपा समर्थित गुंडों ने उनके घर पर पथराव किया। बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में पिछड़े समुदायों की यही स्थिति है।’
एसबीएसपी में कथित असंतोष पर विपक्ष के दबाव के बीच प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शाम को राजभर से मुलाकात की। सूत्रों के अनुसार एसबीएसपी प्रमुख ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी बात की। मौर्य से मुलाकात के बाद अरुण राजभर ने दावा किया कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं के बीच सपा के गुंडे छिपे होने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘हमने अनुरोध किया है कि इन लोगों की पहचान की जाए।’
गठबंधन बदलने में माहिर हैं राजभर
एसबीएसपी नेता ने यह भी कहा कि मंत्री ने बीजेपी के अन्य सीनियर नेताओं से बात की है और उन्हें बताया गया है कि बाराबंकी की घटना में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि तीन कांस्टेबल और एक सब-इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया है। एबीवीपी ने सरकार से संबंधित विश्वविद्यालय के अधिकारियों और लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है।
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वैसे राजभर का चुनाव से पहले पाला बदलने का इतिहास रहा है। बीजेपी और राजभर ने 2017 का चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन दो साल बाद, लोकसभा चुनाव से पहले, बीजेपी नेतृत्व की आलोचना करने के कारण राजभर को योगी मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था। एसबीएसपी ने वह चुनाव अकेले लड़ा था, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने सपा से हाथ मिला लिया और छह सीटें जीतीं। हालांकि विपक्ष बीजेपी को चुनाव नहीं हरा पाई। इसलिए चुनाव के बाद राजभर ने अपना रास्ता बदल लिया और जुलाई 2023 में औपचारिक रूप से एनडीए में फिर से शामिल हो गए। जिसके बाद राजभर को मार्च 2024 में आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
वहीं पिछले महीने दिल्ली में भाजपा के यूपी सहयोगियों की एक बैठक के दौरान, राजभर ने निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद के आरक्षण की मांग को लेकर यूपी विधानसभा का घेराव करने के आह्वान का समर्थन किया था।