अंशुमान शुक्ल
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच के संबंध और तल्ख हो सकते हैं। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश की 73 सीटें जीतने के बाद चारों तरफ से अखिलेश सरकार को घेरने की कोशिश में लगी भाजपा को मुख्यमंत्री ने हकीकत का बोध कराने की पहल की है ताकि सच बताकर उनके मुंह बंद किए जा सकें। उन्होंने प्रदेश के सभी विभागों के प्रमुखों को आदेश दिए हैं कि केंद्र सरकार की मदद से उत्तर प्रदेश में चल रही योजनाओं का पूरा ब्योरा प्रतिदिन जारी करें ताकि जनता को उत्तर प्रदेश के प्रति केंद्र सरकार के रवैये का अंदाजा हो सके।
उत्तर प्रदेश से सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा के 73 सांसद जीते थे। इस चुनाव परिणाम के आने के बाद प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि अच्छे दिन उनके मोहल्ले और शहर तक पहुंचेंगे जहां से भाजपा के सांसद को उन्होंने जिताया था। लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से अब तक प्रदेश की जनता के लिए केंद्र सरकार ने क्या खास किया, इस पर बहस जारी है। उत्तर प्रदेश इस वक्त अभूतपूर्व बिजली कटौती से बेजार है। जानकारों का कहना है कि बिजली की ऐसी किल्लत कभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश को नहीं झेलनी पड़ीं। हालांकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के दस साल के कार्यकाल में भी उत्तर प्रदेश को आबंटित किए गए बिजली के कोटे से कम बिजली मिलने की शिकायतें समय-समय पर केंद्र सरकार से की गर्इं। इतने के बाद भी उत्तर प्रदेश ने बिजली की ऐसी किल्लत का सामना कभी नहीं किया।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद केंद्र में बनी नरेंद्र मोदी की सरकार के कुछ दिन बीत जाने के बाद बिजली की भारी कटौती झेल रही प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें कुछ राहत मिलेगी। लेकिन प्रदेश के भाजपा नेता बिजली की भारी कटौती को लेकर अखिलेश यादव की सरकार को ही घेरने की कोशिशों में जुट गए। उनका ध्यान बिजली की कटौती का समाधान ढूंढने से ज्यादा जनता को यह समझाने पर केंद्रित रहा कि बिजली कटौती की कमी की असल जिम्मेदारी अखिलेश यादव और उनकी सरकार की थी। भाजपा की तरफ से उल्टे घेरे जाने की चाल को भांप कर अखिलेश यादव ने प्रदेश की जनता को यह बताने की कोशिशें शुरू कीं कि बिजली कटौती की असली वजह क्या है? शुरू में लोगों ने इसे सियासी चाल अधिक समझा लेकिन जब बातें तथ्यों को आधार बनाकर कही जाने लगीं तो उन्हें इस मामले के पीछे की वजह समझ आई। इसका बड़ा लाभ सपा को उपचुनावों में आठ विधानसभा सीटों और मैनपुरी लोकसभा सीट की शक्ल में मिला।
उपचुनावों में बिजली, कानून व्यवस्था और जनता से जुड़े तमाम मुद्दों पर घेरे जाने के बाद मिली कामयाबी ने अखिलेश यादव को उस रणनीति पर आगे भी कायम रहने का रास्ता दिखाया है जिसके भरोसे उपचुनाव में उन्हें भारी सफलता मिली। इसीलिए उन्होंने प्रदेश के सभी विभागों को रोजाना केंद्र की मदद से चलाई जा रही योजनाओं की प्रगति का ब्योरा सार्वजनिक करने को कहा है ताकि जनता को योजनाओं की अद्यतन जानकारी तो हो ही, खुद की घेरेबंदी की कोशिशों पर भी विराम लगाया जा सके।
उत्तर प्रदेश में ढाई साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं जिनपर सभी की नजर है। भाजपा हर हाल में इस बार में प्रदेश की सत्ता में वापसी चाहती है। हालांकि प्रदेश से जुड़े उसके सभी वरिष्ठ नेता इस वक्त आपसी विवादों में ज्यादा उलझे नजर आ रहे हैं। उपचुनाव परिणामों ने उनके आत्मविश्वास पर प्रतिकूल असर डाला है। वहीं बसपा भी अखिलेश यादव की सरकार को घेरने की हर संभव कोशिश में है। ऐसे में विभागों का रोजनामचा जारी कर अखिलेश यादव खुद को कठघरे में खड़ा करने की कोशिशों से बचना चाहते हैं। अपनी कोशिशों में वे कितना कामयाब होते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि उनकी इस पहल ने उनके विरोधियों के चेहरों की रंगत जरूर उड़ा दी है।
और तल्ख हो सकते हैं केंद्र व सपा सरकार के रिश्ते
अंशुमान शुक्ल लखनऊ। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच के संबंध और तल्ख हो सकते हैं। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश की 73 सीटें जीतने के बाद चारों तरफ से अखिलेश सरकार को घेरने की कोशिश में लगी भाजपा को मुख्यमंत्री ने हकीकत का […]
Written by जनसत्ताAakriti Arora

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First published on: 22-09-2014 at 10:33 IST