UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों पोस्टर वार देखने को मिल रहा है। जिसके जरिए यूपी की राजनीति को साधने की कोशिश की जा रही है। समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से पोस्टर जारी किया है। इसमें उन्होंने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नाम दिया है। समाजवादी पार्टी के इस पोस्टर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो काटेंगे’ बयान पर पलटवार के रूप में देखा जा रहा है। अखिलेश यादव के ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ के पोस्टरों को राजधानी लखनऊ की सड़कों पर लगाया गया है।

बता दें, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों आगरा की जनसभा में ‘बंटेंगे तो काटेंगे’ का नारा दिया था। इसके बाद विपक्ष ने सीएम योगी के इस नारे की जमकर आलोचना की तो वहीं मथुरा की बैठक में आरएसएस ने सीएम योगी के इस बयान का समर्थन किया। वहीं दीवाली के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक जनसभा के दौरान कहा कि ‘एक हैं तो सेफ हैं’। इसे भी बंटेंगे तो कटेंगे के विस्तार के तौर पर देखा जा रहा है।

आरएसएस की मथुरा बैठक के दौरान मीडिया को संबोधित करते हुए वरिष्ठ आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि हिंदू एकता सभी की भलाई के लिए आवश्यक है और धर्म, जाति और विचारधारा के नाम पर बांटने वाली ताकतों से सतर्क रहने की जरूरत है।

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होसबाले ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का एक तरह से पूरा समर्थन किया। होसबाले ने कहा कि यदि ‘हम (हिन्दू समाज) जाति, भाषा या प्रांत के भेद से बटेंगे, तो निश्चित रूप से कटेंगे, इसीलिए हिन्दू समाज में एकता आवश्यक है।’ होसबोले ने यह बात दीनदयाल उपाध्याय गौ विज्ञान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र परिसर में आयोजित संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की द्विदिवसीय बैठक के समापन पर मीडिया को संबोधित करते हुए कही थी।

इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीजेपी के ‘बंटेंगे तो काटेंगे’ वाले नारे को लेकर सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट के माध्यम से जमकर हमला बोला है। उन्होंने लिखा कि उनका ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है। जिनका नज़रिया जैसा, उनका नारा वैसा है। इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं अब वो भी खिसकने के कगार पर हैं, इसलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन ऐसा कुछ होने वाला नहीं।

नकारात्मक-नारे का असर भी होता हैअखिलेश

नकारात्मक-नारे का असर भी होता है

अखिलेश यादव ने यह भी पोस्ट में लिखा कि ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है। दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद, उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताकतवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमज़ोरी की ही बातें कर रहे हैं। जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है; ‘भय’ नहीं. ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा।

पोस्ट में उन्होंने यह भी लिखा कि देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा और उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आखिरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा.देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नज़र और नज़रिये के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए। ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा। एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें, साथ ही बांहों को भी, इसी में उनकी भलाई है। सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा।