उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की खटपट निपटाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) आगे आ गया है।
बीजेपी नेतृत्व और पार्टी इकाई के बीच पनपे अंतर दूर करने के लिए वह अहम भूमिका निभा रहा है। तरह-तरह के जतन भी कर रहा है, जिसमें रात्रि-भोज और सामूहिक कार्यक्रम तक शामिल हैं। आरएसएस इनके जरिए भाजपा के कई धड़ों को एकजुट करने की कोशिश में लगा है। संघ की जोरदार सक्रियता तब देखने को मिली, जब आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले पिछले दो महीनों में तीन बार यूपी के दौरे पर रहे। कहा जा रहा है कि उन्हीं की पहल पर सीएम योगी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे थे। बैठक में 30 आरएसएस-बीजेपी के पदाधिकारी मौजूद रहे थे।
संघ के एक पदाधिकारी के हवाले से अंग्रेजी अखबार ‘TOI’ ने बताया, “उप-मुख्यमंत्री का घर सीएम आवास से कुछ ही दूर है, पर होसबोले और कृष्ण गोपाल (आरएसएस के संयुक्त महासचिव) ने सुनिश्चित किया कि ये दोनों नेता एक साथ बैठें और भोजन करें।”
संघ की यह सक्रियता ऐसे वक्त पर देखने को मिली है, जब सूबे में कोविड-प्रबंधन को लेकर योगी सरकार ने हाल के दिनों बड़े स्तर पर रोष का सामना किया। फिर चाहे अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की किल्लत का मामला हो या फिर विभिन्न इलाकों में गंगा और उसके किनारे के आसपास उतराते शवों का मुद्दा हो…योगी सरकार की इन चीजों पर जमकर आलोचना हुई थी।
यहां कि यूपी सरकार के कई मंत्री और बीजेपी नेताओं ने भी पस्त व्यवस्था को लेकर सीएम से गुहार लगाई थी। खुद डिप्टी सीएम मौर्य, मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक समेत कई बीजेपी नेताओं ने ऐसे बयान दिए थे, जिन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में विश्वास की कमी को दर्शाया था।
संघ के लिए यूपी अहम क्यों?: दरअसल, सूबे का अपना अलग ही एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। सीएए विरोधियों, “लव जिहाद” और अवैध बूचड़खाने आदि के मुद्दे पर सीएम योगी का रुख सख्त रहा है। ऐसे में विश्लेषकों और महीन राजनीतिक समझ रखने वालों के लिए आरएसएस की “विस्तार योजना” (हिंदुओं के बीच सामाजिक और धार्मिक लामबंदी के लिहाज से) के लिए यूपी अहम माना जाता है।

