Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है, जबकि महागठबंधन को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव नतीजों पर नजर डालने से पता चलता है कि महागठबंधन के राजनीतिक दल यानी आरजेडी और कांग्रेस अपने पारंपरिक वोटर्स से अलग, एक नया वोट बैंक बनाने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं।

आरजेडी को उन सीटों पर भारी नुकसान हुआ, जहां उसने ईबीसी और गैर-यादव ओबीसी प्रत्याशियों को टिकट दिया था। इतना ही नहीं, कांग्रेस जो कि अगड़ा हिन्दू वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रही थी, उसे भी इन चुनाव नतीजों ने तगड़ा झटका दिया है।

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नीतीश कुमार के वोट बैंक को साधने की प्लानिंग फेल

तेजस्वी यादव की आरजेडी के पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों का प्रदर्शन सबसे ज्यादा खराब रहा है। उनकी हार का औसत सबसे ज्यादा यानी 27,506 वोट रहा है। आरजेडी ने इन प्रत्याशियों के जरिए उस अत्यंत पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश कर रही थी, जो कि परंपरागत तौर पर जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का माना जाता है।

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कैसा रहा महागठबंधन का प्रदर्शन

आरजेडी ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा और 25 पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा और छह पर जीत हासिल की। आरजेडी के 143 उम्मीदवारों की सूची में, 77 यानी लगभग 54% ओबीसी थे, जिनमें 50 यादव और 27 अन्य ओबीसी समूहों से थे। पार्टी के 15 उच्च जाति के और 12 अति पिछड़े उम्मीदवार थे। शेष अनुसूचित जाति (20), मुस्लिम (18) और आदिवासी (1) थे। कांग्रेस के 61 उम्मीदवारों में से 22 या लगभग 36% उच्च जातियों से थे, जिनमें 8-8 ब्राह्मण और भूमिहार उम्मीदवार, 5 राजपूत और 1 कायस्थ शामिल थे।

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RJD का बेहद ही खराब प्रदर्शन

आरजेडी ने चुनावी मैदान में 50 यादव उम्मीदवार उतार थे लेकिन केवल 11 ही जीते, जो उसके कुल 17.4% के स्ट्राइक रेट से ज़्यादा था। 40 यादव उम्मीदवारों की हार का औसत अंतर 19,265 वोटों का था। गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों में, 27 में से केवल तीन ही अपनी सीटें जीत पाए। 24 गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों की हार का औसत अंतर 19,125 वोटों का था।

आरजेडी ने 12 अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से केवल दो ही विजयी हुए। इसमें वारसलीगंज से अनीता देवी महतो 7,543 वोटों से और मोरवा से रणविजय साहू 8,671 वोटों से जीते। हारे हुए 10 उम्मीदवारों की हार का औसत अंतर 27,506 वोटों का था। राजद नेताओं ने इसके लिए मुकेश सहनी की वीआईपी के साथ गठबंधन के बावजूद महागठबंधन द्वारा अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मतदाताओं को लुभाने में विफलता को जिम्मेदार ठहराया।

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अगड़े और मुस्लिमों प्रत्याशी कितने जीते?

आरजेडी के 20 अनुसूचित जाति उम्मीदवारों में से चार (20%) सीटें जीतने में कामयाब रहे। सूबेदार दास (मखदुमपुर), कुमार सर्वजीत पासवान (बोधगया), सुरेंद्र राम (गरखा) और अभिनव मंगल (रानीगंज)। आरजेडी के 16 अनुसूचित जाति उम्मीदवारों की हार का औसत अंतर 18,909 वोटों का था। पार्टी के 15 अगड़े उम्मीदवारों में से केवल दो ही जाती। एक मटिहानी से बोगी सिंह और जहानाबाद से राहुल शर्मा रहे। बात मुस्लिम उम्मीदवारों के प्रदर्शन करें तो वो भी खराब ही रहा और उन्होंने जिन 18 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से केवल तीन (16.66%) ही जीत पाए। ढाका निर्वाचन क्षेत्र से फैसल रहमान, बिस्फी से आसिफ अहमद और रघुनाथपुर से ओसामा शहाब जीते।

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सवर्णों को साधने में फिर नाकाम कांग्रेस

कांग्रेस के सवर्ण उम्मीदवारों पर सबसे ज्यादा दांव लगाया था, लेकिन कोई भी सवर्ण नहीं जीत सका। इसके चलते ही सवाल उठने लगे बिहार में पार्टी नेताओं ने इतने सारे सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की ज़रूरत पर सवाल उठाए। बिहार कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि हम जानते हैं कि सवर्ण भाजपा के अलावा किसी और पार्टी को वोट नहीं देंगे। हमने उन्हें इतने सारे टिकट क्यों दिए, यह समझ से परे है।

कुछ कांग्रेस नेताओं ने कहा कि पार्टी के पास ओबीसी, ईबीसी और अनुसूचित जातियों के पर्याप्त नेता नहीं हैं इसलिए वह उच्च जाति के उम्मीदवारों पर निर्भर है। कांग्रेस के आठ ब्राह्मण उम्मीदवारों के लिए हार का औसत अंतर सबसे ज़्यादा 35,825 वोटों का था। उसके आठ भूमिहार उम्मीदवारों के लिए हार का औसत अंतर 24,157 वोटों का था, और पाँच राजपूत उम्मीदवारों के लिए यह 18,437 वोटों का था।

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पिछड़ी जाति में भी बुरा रहा हाल

12 ओबीसी उम्मीदवारों में से बनिया समुदाय के तीन उम्मीदवारों में से एक – चनपटिया से अभिषेक रंजन – 602 वोटों के मामूली अंतर से जीते। अन्य दो बनिया नेता औसतन 25,267 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। ओबीसी कुशवाहा समुदाय के सुरेंद्र प्रसाद वाल्मीकि नगर से 1,675 मतों से जीते। पार्टी ने पांच यादव (ओबीसी) उम्मीदवार उतारे थे और सभी अपनी सीटें हार गए। उसके पांच अति पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों में से केवल एक, फ़ोर्ब्सगंज से मनोज विश्वास जीते, बाकी सब हार गए। कांग्रेस के 11 दलित उम्मीदवारों का प्रदर्शन भी बेहद खराब रहा और वे एक भी सीट नहीं जीत पाए।

10 में से केवल दो मुस्लिम जीते

कांग्रेस की सूची में एकमात्र अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार मनोहर प्रसाद सिंह ने मनिहारी से पार्टी के लिए सबसे बड़े अंतर से जीत हासिल की। इसके अलावा 10 मुस्लिम उम्मीदवारों में से दो विजयी हुए। इसमें अररिया से अबीदुर रहमान और किशनगंज से मोहम्मद कमरुल होदा रहे।

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