‘मोदी आपके वोट लेने के लिए कुछ भी कर सकता है। आप अगर उनको कहोगे कि आपके सामने नाचे, तो नाचने को भी तैयार हो जाएंगे।’ ऐसा कहा राहुल गांधी ने बिहार की एक आमसभा को संबोधित करते हुए पिछले सप्ताह। ऐसी बात देश के प्रधानमंत्री के लिए कहना बदतमीजी लगती है, लेकिन जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ऐसा कहते हैं किसी आमसभा में, तो कुछ ज्यादा गलत है।

मैंने उनका पूरा भाषण सुना यह जानने के लिए कि बिहार के लिए वे क्या कहना चाहेंगे, लेकिन उनका पूरा भाषण मोदी को बुरा-भला कहने में ही था। ऐसा लगा मुझे कि राहुल गांधी शायद भूल गए थे कि चुनाव हो रहे हैं देश के सबसे गरीब राज्य में और बेहतर होता अगर उन्होंने मतदाताओं के सामने वे बातें रखी होतीं जो साबित करतीं कि बिहार की शर्मनाक गुरबत, उसके पिछड़ेपन को देख कर राष्ट्रीय स्तर के एक राजनेता होने के नाते उनको कितना दुख होता है। बेहाल बिहार के लिए हर राजनीतिक को दुख होना चाहिए।

पिछले सप्ताह राहुल गांधी अकेले नहीं थे, जिन्होंने ऐसा भाषण दिया हो जिससे बिहार को कोई लाभ हो सके। गृहमंत्री भी गए थे बिहार प्रचार करने और उनका भाषण सुन कर मैं उतनी ही हैरान हुई, जितना राहुल के भाषण को सुन कर हुई थी। अमित शाह ने एक सभा में ललकारते हुए कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर नरेंद्र मोदी ने हिम्मत दिखाई है। ‘अनुच्छेद 370 हटाया जाना चाहिए था कि नहीं? कश्मीर हमारा है कि नहीं? जोर से बोलिए’। एक दूसरी आम सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने आश्वासन दिया कि ‘घुसपैठियों को चुन-चुन कर निकाल फेंकेंगे। भूल गए थे शायद कि बिहार में घुस कर कौन आने वाला है, जब बिहारी खुद दूसरे राज्यों में जाने पर मजबूर हैं, गरीबी और बेरोजगारी के कारण। भूल यह भी गए थे कि कश्मीर की बात बिहार में करने से कोई फायदा नहीं है।

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बिहार की बातें अगर कोई कर रहा है, तो तेजस्वी यादव कर रहे हैं, लेकिन उनकी बातों में दम इसलिए नहीं है क्योंकि जो खैरात बांटने की बातें करते हैं वह, एक अशिक्षित बिहारी मतदाता भी जानता होगा कि बेमतलब हैं। इतना पैसा होता अगर बिहार में खैरात और सरकारी नौकरियां बांटने के लिए, तो बिहार क्या देश का सबसे गरीब राज्य होता? लाखों बिहारी नौजवान बिहार छोड़ने पर मजबूर होते क्या? सच पूछिए तो इन चुनावों में राजनेताओं के भाषण सुन कर ऐसा लगने लगा है मुझे कि इनमें से किसी को जीतने का हक नहीं है। यह भी लगने लगा है मुझे कि देश के सबसे बड़े नेता जो प्रचार करने निकले हैं, उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता।

ऐसे नेता दृष्टि से विहीन न होते, तो जरूर उनको दिखते वे बेहाल गांव जहां सड़कें नहीं, कीचड़ की पटरियां हैं। शायद यह भी देख पाते कि कुछ गांव ऐसे हैं जहां पक्के घर ही नहीं दिखते हैं 2025 में और जिनकी शक्ल महानगरों की झुग्गी बस्तियां जैसी है। अंधे न होते तो शायद बिहार के स्कूलों की हालत देख कर उनके दिलों में थोड़ा बहुत दर्द जागता। अंधे न होते तो शायद बिहार के अस्पतालों की हालत देख कर उनकी आंखों में आंसू आते। कैसे हैं हमारे राजनेता जो इन चीजों को देख नहीं पाते हैं और ऐसी बातें करते हैं अपनी सभाओं में जो बिहार के मतदाताओं के साथ कोई वास्ता ही नहीं रखती हैं।

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इतना बुरा हाल है बिहार का कि लोग नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहते हैं सिर्फ इसलिए कि पिछले बीस वर्षों के उनके शासनकाल में कम से कम उस ‘जंगल राज’ को तो समाप्त करने का काम किया जो लालू यादव के दौर में हुआ करता था। इससे आगे लेकिन बढ़े ही नहीं हैं ‘सुशासन बाबू’। ऐसा लगता है कि उनको भी नहीं दिखता है कि बिहार कितना बेहाल है। आम बिहारी के लिए वह बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं जो देश के बाकी नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं। एक समय था जब ग्रामीण बिहार और ग्रामीण उत्तर प्रदेश में कोई खास अंतर नहीं था। मैं योगी आदित्यनाथ की कोई प्रशंसक नहीं हूं, लेकिन इतना कहने पर मजबूर हूं कि उत्तर प्रदेश में विकास इतना हुआ है उनके दौर में कि बिहार बहुत पीछे रह गया है।

राहुल गांधी ने जो प्रधानमंत्री का मखौल उड़ाते हुए कहा अपने भाषण में, वह बिहार में प्रचार करने वाले तमाम राजनेताओं के लिए कहा जा सकता है। बिहार की समस्याएं वे याद करना पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि समाधान उनके पास हैं ही नहीं। होता तो क्या कश्मीर की बातें और काल्पनिक घुसपैठियों की बातें करते? न ही चुनावी घूस देकर लोगों का दिल बहलाते। बिहार के भविष्य का नक्शा बना कर दिखाते मतदाताओं को।

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एक ही राजनेता है जो ऐसा कर रहे हैं और वह हैं प्रशांत किशोर। उनकी जन सुराज पार्टी इतनी नई है अभी कि अनुमान लगाया जा रहा है कि दोनों गठबंधनों को नुकसान जरूर कर सकते हैं, लेकिन जीतने की हालत में नहीं हैं अभी। बहुत अफसोस की बात होगी अगर यह सच निकला। इसलिए कि जिस पार्टी के नाम में ही ‘सुराज’ शब्द है उससे साबित होता है कि पार्टी का नेतृत्व करने वाले ने सोच-समझ कर यह नाम चुना है।

बिहार विकसित राज्य बन सकता है, लेकिन ऐसा होने के लिए उसको सबसे ज्यादा जरूरत है अगर किसी चीज की, तो वह है कोई ऐसा राजनेता जो उसके टूटे, भ्रष्ट शासन प्रणाली में सुधार लाने का काम करे। कभी उम्मीद थी कि ‘सुशासन बाबू’ ऐसा कर सकेंगे, लेकिन नीतीश कुमार अब कुछ थके-हारे से लग रहे हैं। दो दशकों में जो कर नहीं पाए, वह अब कैसे कर पाएंगे? बिहार के हाल पर रोना आता है मुझे जब भी वहां जाती हूं।