SIR Debate in Parliament: जानती हूं कि जो बात आज कहने वाली हूं इस लेख में, उसको बहुत बार कह चुकी हूं, लेकिन क्या करूं? राहुल गांधी का लोकसभा में भाषण सुनने के बाद दोबारा कहने पर मजबूर हूं कि नेता प्रतिपक्ष अपने प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी शक्ति हैं। जब भी बोलते हैं, खासतौर पर संसद के अंदर, साबित करते हैं कि उनको गंभीरता से लेना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है। इस बार बहस का विषय उनके कहने पर तय हुआ था। एसआइआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) पर संसद में बहस करवाने के लिए महीनों से प्रदर्शन करते आए हैं कांग्रेसी सांसद संसद के परिसर में। ऐसे प्रदर्शन हुए हैं राहुल गांधी के कहने पर, इसलिए सोचा था मैंने कि इस बार उनकी तरफ से ऐसा भाषण सुनने को मिलेगा, जिसको याद किया जाएगा इतिहास के पन्नों में।

इस उम्मीद से मैंने उनका पूरा भाषण शुरू से अंत तक सुना, लेकिन शुरू जब उन्होंने खादी कपड़ा और कांजीवरम साड़ियों से किया, मैं हैरान हुई। फिर उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालयों के कुलपति आजकल चुने जाते हैं सिर्फ ऐसे लोग, जिनकी सोच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से मेल खाती है, तो सोचने लगी कि शायद विषय को भूल गए हैं। सभापति को भी अब तक ऐसा लगने लगा था, तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष को टोकते हुए याद दिलाया कि बहस किस विषय पर हो रही थी। तिलमिलाकर राहुल गांधी ने कहा कि उनको विषय याद है और उस पर ही आने वाले हैं।

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यहां उन्होंने याद दिलाया कि ब्राजील की एक महिला ने हरियाणा के चुनावों में बाईस बार वोट डाला था। इससे साबित होता है, उन्होंने आगे कहा, कि हरियाणा का चुनाव चोरी से भारतीय जनता पार्टी ने जीता है। ऐसा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी हुआ है उनके हिसाब से और हाल में बिहार में भी वोट चोरी करके भाजपा जीती है। फिर धमकी दी चुनाव आयुक्त को कि उनका जब समय आएगा सत्तापक्ष में बैठने का तो उनको ढूंढ़कर दंडित कराएंगे। उनके इस भाषण को सुनकर तय कर लिया मैंने कि राहुल गांधी को वास्तव में गंभीरता से लेना नामुमकिन है। बहस के अंत में जब गृहमंत्री ने तगड़ा जवाब दिया उनके आरोपों का, तो नेता प्रतिपक्ष अपने सांसदों को लेकर ‘वाकआउट’ कर गए। जाते-जाते गृहमंत्री को धमकी देते गए कि उनमें हिम्मत नहीं है उनके तीन ‘परमाणु बम वाली’ प्रेस वार्ताओं पर बहस करवाएं। अब खबर यह है कि संसद सत्र के बीच ही वह निकल गए हैं विदेश।

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इस बहस के बाद संयोग से मेरी मुलाकात हुई एक मोदी भक्त से, जिसने मुस्कराते हुए मुझे कहा, ‘2029 में भी मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ेगी भारतीय जनता पार्टी और मुझसे लिख कर ले लो कि मोदी चौथी बार प्रधानमंत्री बनने वाले हैं’। मैंने जब उनसे कहा कि ऐसा मैं नहीं मानती हूं इसलिए कि आम लोगों के जीवन में वह परिवर्तन नहीं आया है, जिसका वादा मोदी करते आए हैं पिछले ग्यारह वर्षों से। सरकारी स्कूल वैसे के वैसे रद्दी हैं आज भी। सरकारी अस्पतालों में कोई परिवर्तन नहीं दिखता है। गांवों में जो घर-घर नल का वादा था वह भी लटका हुआ है। रही भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात, तो यहां भी थोड़ा फर्क नहीं दिखता है आम मतदाताओं को। तो जीतेंगे कैसे चौथी बार? उस भक्त ने फिर से मुस्कराकर कहा, ‘जीतेंगे, जब तक उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी रहते हैं’। उनकी इस बात ने मुझे चुप करा दिया।

देश की समस्या यह है कि एक ताकतवर विपक्ष की हमको सख्त आवश्यकता है। उसके बिना न संसद के अंदर और न संसद के बाहर उन चीजों में सुधार आने वाले हैं, जिनकी जनता को जरूरत है। सरकारी सेवाओं में सुधार के अलावा हमको उन बुनियादी चीजों में परिवर्तन चाहिए, जिनके बिना जीना मुश्किल है अपने देश में। हमारे बेहाल शहरों में जीना छोड़ो, सांस लेना मुश्किल हो गया है। हाल में लौटी हूं न्यूयार्क से, जहां रोज एक्यूआइ जांचती थी और हैरान रह जाती थी कि दुनिया के इस सबसे बड़े महानगर में वायु प्रदूषण है ही नहीं। पानी इतना साफ है कि सीधा नल खोलकर लोग पीते हैं बिना इस चिंता के कि उनको टाइफाइड या पीलिया जैसी कोई बीमारी हो सकती है।

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अपने देश में हाल यह है कि तकरीबन सारी बीमारियां होती हैं गंदगी की वजह से। गंदगी के कारण 1000 में से 28 भारतीय बच्चे मर जाते हैं पांच साल तक पहुंचने से पहले और अक्सर ये मौतें होती हैं ऐसी बीमारियों से, जो लाइलाज नहीं हैं। अगर हमारे शासकों ने ध्यान दिया होता शहरों और गांवों में सफाई पर, तो न बच्चे मरते और न बीमारियां फैलतीं। हमसे गरीब देश हमसे साफ क्यों हैं, हमारे शासक कभी पूछते नहीं हैं। दूर जाने की जरूरत नहीं है, श्रीलंका ही चले जाइए और देखिए कि न शहरों की सड़कों पर कूड़ा दिखता है और न गांवों में गंदगी। पिछले साल मैंने सड़क के रास्ते कोलंबो से कैंडी तक यात्रा की और यकीन मानिए कि मैंने कहीं कूड़ा नहीं देखा।

कहने का मतलब है मेरा कि बहुत कुछ है करने को अपने देश में, लेकिन जब तक नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी रहेंगे, तब तक कोई उम्मीद नहीं है कि कुछ होने वाला है। अव्वल तो विदेश की यात्राएं उनकी कुछ ज्यादा होती हैं और जहां जाते हैं लोगों को कहना नहीं भूलते हैं कि भारत को बर्बाद किया है नरेंद्र मोदी ने सारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को समाप्त करके। इतना बुरा हाल है, तो आप देश में कुछ ज्यादा समय क्यों नहीं बिताते हैं? या फिर अपनी जगह किसी और को देते क्यों नहीं हैं? दूसरी तरफ मोदी और मोदी भक्त चैन से बैठे हुए हैं इस बात को याद करके कि जब तक राहुल गांधी हैं मोदी के सामने, तब तक ‘आएगा तो मोदी ही’।

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