आरएसएएस ने शुक्रवार (11 मार्च) को सरकार से विश्वविद्यालयों में लंबे समय से ‘‘देश विरोधी गतिविधियों’’ में शामिल ‘‘विध्वंसकारी’’ ताकतों पर अंकुश लगाने को कहा और सवाल उठाया कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगे देश को तोड़ने वाले नारों को आखिर कैसे सहन किया जा सकता है। संघ के शीर्ष अधिकारियों के शुक्रवार (11 मार्च) से शुरू हुए तीन दिवसीय विचार-विमर्श सत्र में आरएसएस ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें इस तरह के देश विरोधी और असामाजिक ताकतों से कड़ाई से निपटेंगी और हमारे शैक्षणिक संस्थाओं की पवित्रता एवं सांस्कृतिक माहौल सुनिश्चित करते हुए उन्हें राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र नहीं बनने देंगी।’’
अहम विधानसभा चुनावों से पहले जेएनयू विवाद, हैदराबाद में दलित छात्र आत्महत्या मामला, शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों और असहिष्णुता पर चर्चा जैसे मुद्दों से निपटने को लेकर आलोचना झेल रही नरेंद्र मोदी सरकार की पृष्ठभूमि में भाजपा की वैचारिक मार्गदर्शक रही संघ की यह बैठक अहम मानी जा रही है।
‘अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा’ की इस बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और इसके शीर्ष नेता सहित भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे। बैठक के दौरान पेश अपनी वार्षिक रिपोर्ट में संघ ने पठानकोट में आतंकी हमला पर चिंता जताई और सुरक्षा बलों की क्षमता, उनके साजो सामान और प्रभारी अधिकारी की समीक्षा और उनके अवैध प्रवास एवं पाकिस्तान से प्रेरित आतंकवाद पर अंकुश लगाने की बात कही गई।
रिपोर्ट में गुजरात और हरियाणा में हिंसक कोटा आंदोलनों को ना केवल प्रशासनिक तंत्र के लिए चुनौती करार दिया गया बल्कि इसे सामाजिक सौहार्द एवं विश्वास पर खतरा भी बताया गया। पश्चिम बंगाल के मालदा में भीड़ द्वारा एक पुलिस थाने को कथित तौर पर आग लगाने की घटना का जिक्र करते हुए संघ ने इन घटनाओं को ‘‘भय का माहौल’’ पैदा करने का प्रयास बताया और उसकी निंदा की। उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से अपनी ‘‘तुष्टीकरण की नीति’’ छोड़कर इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लेने को कहा।
संघ ने कहा कि निश्चित विश्वविद्यालयों में देश विरोधी गतिविधियों की सूचनाएं देशभक्त लोगों के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। संघ ने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश को खंडित करने वाले और उसे नष्ट करने वाले नारों को कैसे सहन किया जा सकता है और संसद पर हमले की साजिश रचने के दोषी को कैसे बतौर शहीद सम्मानित किया जा सकता है?’’
उन्होंने कहा कि जो भी इस तरह की बात करते हैं उनका संविधान, न्यायतंत्र और संसद में विश्वास नहीं है और इस तरह के विध्वंसकारी तत्वों ने इन विश्वविद्यालयों को लंबे समय से अपनी गतिविधियों का केंद्र बना रखा है। संघ ने कहा, ‘‘सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों की तबाही, लूटपाट और खासकर हिंदुओं के कारोबारी प्रतिष्ठानों को जलाने की घटनाएं हो रही हैं। राजनीतिक पार्टियां तुष्टीकरण की नीति अपना रही हैं। उन्हें इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए और कानून व्यवस्था बनाए रखने और शांति बहाल करने में सहयोग करना चाहिए।’’
भगवा संगठन ने कहा कि यह तभी संभव होगा जब पार्टियां ‘‘अपनी क्षुद्र और संकीर्ण राजनीतिक हितों को छोड़ेंगी।’’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘एक सक्षम एवं मजबूत सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह सुरक्षा को लेकर लोगों में आत्मविश्वास जगाए।’’ रिपोर्ट में कोटा आंदोलन के दौरान हुई हिंसा पर कहा गया, ‘‘किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए लेकिन समाज को सतर्क होना चाहिए और साजिशन देश विरोधी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों और संगठनों के प्रति प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।’’
मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश जैसे ‘‘संवेदनशील’’ मुद्दों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और इन्हें आंदोलन के बजाय बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए। इसके अनुसार, ‘‘कुछ अनुचित परंपराओं के कारण मंदिर में प्रवेश के सवाल पर आम सहमति नहीं बन पाई है। इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को चर्चा और बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए।’’
संघ ने कहा कि पुरुष एवं महिला दोनों को बिना किसी भेदभाव के मंदिरों में प्रवेश की इजाजत रही है और यहां तक कि महिलाएं वेदों का पाठ करती रही हैं एवं नैसर्गिक तरीके से मंदिरों में पुजारी का काम करती रही हैं। संघ ने कहा, ‘‘अवैध प्रवास रोकने, पाक-प्रेरित आतंकवाद और इस तरह की अन्य गतिविधियों को रोकने के लिए यह जरूरी है कि सीमावर्ती इलाकों को विकसित किया जाए और बुनियादी ढांचा सुविधाओं की समीक्षा की जाए।’’
संगठन ने कहा कि तीन दिवसीय सत्र के दौरान शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं एवं स्वास्थ्य और सामाजिक सौहार्द जैसे मुद्दों पर मंत्रणा की जाएगी। संघ के सह सर कार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा कि बैठक के दौरान यदि आरक्षण एवं राम मंदिर का मुद्दा उठा तो उस पर भी चर्चा की जाएगी। इस दौरान संघ के खास यूनीफॉर्म अथवा ‘गणवेष’ को बदलने पर भी चर्चा की जाएगी।
