अशोक तंवर, हरियाणा के प्रमुख दलित नेता, बीजेपी छोड़कर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कांग्रेस में शामिल हो गए। पहले तंवर ने बीजेपी और आम आदमी पार्टी का साथ भी देखा, लेकिन अब फिर कांग्रेस में लौट आए। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर लोकायुक्त ने प्लॉट आवंटन घोटाले में जांच शुरू की, जिससे उनकी मुश्किलें बढ़ गईं। महाराष्ट्र में शिंदे ही महायुति के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे, लेकिन अजित पवार को लेकर बीजेपी में असमंजस बना हुआ है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में बगावत से सबक लेते हुए बीजेपी ने महाराष्ट्र में सख्त टिकट नीति अपनाई है। प्रशांत किशोर ने ‘लोक सुराज अभियान’ को पार्टी में बदलते हुए बिहार में राजनीति का नया प्रयोग शुरू किया है।

हरियाणा में ‘आया शोकी, गया शोकी’ का नया मुहावरा

अशोक तंवर हरियाणा विधानसभा के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गांधी की मौजूदगी में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए। उसी दिन भाजपा की रैली को भी संबोधित किया था। हरियाणा का प्रमुख दलित चेहरा माने जाते हैं तंवर। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में आए थे। भाजपा ने सिरसा से लोकसभा उम्मीदवार भी बनाया था। पर कांग्रेस की सैलजा से बुरी तरह हार गए। लोकसभा हार कर भाजपा से विधानसभा टिकट की मांग की थी। नहीं मिलने से दुखी थे। उधर सैलजा ने हुड्डा की मनमानी के विरोध में नाराजगी जताते हुए चुनाव प्रचार से किनारा किया तो भाजपा को कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाने का मौका मिला था, पर रूठी सैलजा मान गईं। अशोक तंवर को कांग्रेस में सब कुछ मिला था। एनएसयूआइ, युवक कांग्रेस और हरियाणा प्रदेश कांगे्रस का अध्यक्ष तो बने ही, 2009 में सिरसा से लोकसभा के सदस्य भी बने। हुड्डा के प्रति नाराजगी जता उन्होंने 2021 में कांगे्रस छोड़ दी। पहले तृणमूल कांग्रेस, फिर आम आदमी पार्टी, फिर भाजपा और अब फिर अपनी मूल कांग्रेस पार्टी में वापसी। सूबे के विधायक गया लाल ने 57 साल पहले एक दिन में छह बार पार्टी बदलने का कीर्तिमान बनाकर आया राम गया राम की कहावत को जन्म दिया था। अब तंवर ने भी वही राह पकड़ी है तभी तो लोगों ने ‘आया शोकी, गया शोकी’ का नया मुहावरा गढ़ दिया।

संकट में सिद्धा

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मुसीबत में फंस गए हैं। लोेकायुक्त ने उनके खिलाफ मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) के प्लाट आबंटन घोटाले में जांच शुरू कर दी है। जांच की इजाजत लोकायुक्त को राज्यपाल थावरचंद गहलौत ने दी थी। सिद्धारमैया ने इसके खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उम्मीद थी कि हाईकोर्ट से राहत मिलेगी पर हाईकोर्ट ने कह दिया कि वे खुद लाभार्थी हैं। लिहाजा जांच होनी चाहिए। उसी दिन सिद्धारमैया ने नया दांव चल दिया। सीबीआइ से सूबे के किसी भी मामले की स्वत: जांच करने का अधिकार वापस ले लिया। सोचा होगा कि सीबीआइ की जांच से बच जाएंगे। पर भूल गए कि केंद्र के पास प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी है। ईडी ने उनके खिलाफ मामला दर्ज भी कर लिया है। देखना है कि मामला महज पद के दुरूपयोग तक सीमित है या फिर इसमें भी धनशोधन का आरोप सामने आ सकता है।

बगावत तो टिकट नहीं

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी में हुई नेताओं की भारी बगावत पार्टी को राजनीतिक रूप से असहज कर गई। इस हादसे से सबक लेते हुए भाजपा ने महाराष्टÑ में पहले से ही कमर कस ली है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राज्य के नेताओं को सचेत करते हुए कहा है कि जिस नेता के क्षेत्र में बगावत हुई, उसे किसी भी कीमत पर टिकट नहीं दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इस बार अधिक से अधिक वफादार कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाएगा। इसके अलावा बगावत रोकने के लिए केंद्रीय मंत्रियों को भी महाराष्टÑ में कार्य सौंपा जाएगा। इस चेतावनी के बाद टिकट दावेदारों की नजर हर उस ओर रहेगी जहां बगावत की आशंका है।

अनिश्चित भविष्य

महाराष्ट्र में महायुति की तरफ से विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, यह बात अब तकरीबन साफ हो चुकी है। भाजपा आलाकमान महाराष्ट्र में शिंदे को नाराज कर उद्धव ठाकरे की शिवसेना को मजबूत बनाने का जोखिम नहीं लेना चाहता। पर महायुति में अजित पवार को लेकर संशय खत्म नहीं हुआ है। फडणवीस कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार दो वजहों से हुई। एक तो भाजपा समर्थकों को अजित पवार का साथ आना भाया नहीं। दूसरे राकांपा का वोट वे महायुति को नहीं दिला पाए। आरएसएस भी अजित पवार को बोझ बता चुका है। भाजपा आलाकमान पवार पर मेहरबान है। तभी तो उनकी पार्टी के इकलौते लोकसभा सदस्य सुनील तटकरे को पेट्रोलियम व तेल जैसे अहम और मलाईदार मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति का अध्यक्ष बना दिया। तटकरे पहले महाराष्ट्र में सिंचाई मंत्री थे। वे अजित पवार के खासमखास माने जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजित पवार के महाविकास अघाडी में रहने के दौरान जिस सत्तर हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले का खुलासा किया था, वह पवार और तटकरे दोनों के कार्यकाल का ही था। तटकरे की बेटी अदिति इस समय महाराष्टÑ सरकार में मंत्री है। जाहिर है कि आलाकमान अजित पवार को इतनी अहमियत अपनी किसी भावी रणनीति के कारण ही दे रहा है। यानी विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह के रिमोट से ही चलेंगे अजित पवार।

पीके का प्रयोग

प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती पर ‘लोक सुराज अभियान’ को ‘लोक सुराज पार्टी’ में बदल दिया। एलान कर दिया कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में लोक सुराज पार्टी सूबे की सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। पीके 2014 में पेशेवर के रूप में सामने आए थे और भाजपा में चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभाला था। फिर तो कांगे्रस, जद (एकी), आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांगे्रस सभी के लिए वक्त-वक्त पर चुनावी रणनीति बनाते-बनाते पीके को भी राजनीति का चस्का लग गया। नौजवानों को शिक्षा और रोजगार मुहैया कराकर बिहार से पलायन रोकने और प्राचीनकाल वाला गौरवशाली बिहार बनाने का दावा किया है पीके ने। बिहार से शराबबंदी खत्म करने का भी वादा किया। मंडल के रंग में पूरी तरह रंग चुके बिहार में अब किसी ब्राह्मण के लिए संभावना पर सवाल है। पर पीके के अपने तर्क हैं। दिल्ली के प्रयोग ने उन्हें आस बंधाई है। जहां एक दशक से आम आदमी पार्टी छा गई है। पीके कह चुके हैं कि नीतीश को सूबे में बंपर सफलता 2010 में तब मिली थी जब उन्होंने सुशासन लाने का दावा किया था। बिहार अगर जात-पात तक सीमित होता तो पिछले चुनाव में सिर्फ 47 सीटों पर न सिमटते नीतीश।

(संकलन : मृणाल वल्लरी)