Sharad Pawar Politics: नागालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन में शामिल होने के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के फैसले से महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के भीतर कुछ सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि एनसीपी ने नगालैंड में गठबंधन में शामिल होने का फैसला इसलिए लिया, क्योंकि एनसीपी के सात नवनिर्वाचित विधायकों में से अधिकांश नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली सरकार हिस्सा बनना चाहते हैं। रियो पांचवीं बार पूर्वोत्तर राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं।

एनसीपी के पूर्वोत्तर प्रभारी नरेंद्र वर्मा ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार को नागालैंड विधायक दल की भावनाओं से अवगत कराया। अगर पार्टी ने नागालैंड में विपक्ष में बैठने का फैसला किया होता, तो उसे विभाजन का डर था। एनसीपी सूत्रों ने बताया कि एनसीपी के सभी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की भी संभावना है। क्योंकि एक पुरानी कहावत है कि यदि आप उन्हें हरा नहीं सकते हैं तो उनके साथ शामिल हों। इसी के तहत शरद पवार ने अपनी पार्टी के विधायकों को गठबंधन में शामिल होने की अनुमति देने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें पता था कि बाद वाले को विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए राजी करना व्यर्थ होगा। पवार का छह दशक लंबा राजनीतिक करियर इस तरह के हथकंडों से भरा पड़ा है।

कांग्रेस ने एनसीपी को लेकर जताई निराशा

महाराष्ट्र में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर राकांपा से अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा, “राजनीति धारणा का जिक्र करते हुए कहा कि एनसीपी को नागालैंड जैसे छोटे राज्यों में अपनी वैचारिक स्थिति से समझौता करना पड़ता है, तो हम महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) से कैसे लड़ सकते हैं?

एनसीपी के फैसले के बाद कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के सदस्यों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, लेकिन कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के शीर्ष नेतृत्व ने अपने सदस्यों से इस समय सार्वजनिक रूप से शरद पवार के खिलाफ नहीं बोलने की अपील की है।

2014 में एनसीपी ने महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन दिया था

हालांकि, नागालैंड में बीजेपी के साथ शरद पवार का गठबंधन इस तरह का पहला उदाहरण नहीं है। 2014 में, एनसीपी ने महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन देने का वादा किया। राज्य विधान सभा की 288 सीटों में से 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा 23 सीटों से बहुमत से कम हो रही थी। भाजपा तब संभावित सहयोगी की तलाश में थी।

चूंकि भाजपा और तत्कालीन अविभाजित शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, इसलिए भगवा दलों में कटुता थी। शरद पवार भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने के लिए आगे आए। तब उन्होंने महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने के आधार पर अपने कदम को सही ठहराया था। लेकिन, आलोचकों ने कहा, इस उदार भाव के पीछे शिवसेना और भाजपा को विभाजित करने की बड़ी योजना थी। हालांकि, रणनीति काम नहीं आई क्योंकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना एक महीने बाद सरकार बनाने के लिए भाजपा में शामिल हो गई।

2019 में पवार ने भाजपा-राकांपा गठबंधन की संभावना पर कथित रूप से चर्चा करने के लिए दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक की थी। इस बार बीजेपी महाराष्ट्र में सत्ता बरकरार रखने के लिए एनसीपी के समर्थन पर निर्भर थी। मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री के रूप में अजीत पवार के साथ भाजपा-राकांपा गठबंधन ने शपथ ली, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ और एक सप्ताह से कम समय चला। वहीं पवार ने राकांपा, कांग्रेस और तत्कालीन अविभाजित शिवसेना को राज्य में तीन दलों की गठबंधन सरकार बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। एमवीए सरकार ने 2.5 साल शासन किया।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि फडणवीस और अजीत पवार का शपथ ग्रहण सीनियर पवार की सहमति के बिना संभव नहीं था। वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री तथ्यों का खुलासा करने से बचते रहे हैं। इसके बजाय, उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में यह तर्क देते हुए इसे खारिज कर दिया। इससे राष्ट्रपति शासन हटाने में मदद मिली और फिर उद्धव ठाकरे को एमवीए के सीएम के रूप में शपथ दिलाने में मदद मिली।” महाराष्ट्र एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल ने कहा, “कोई भी शरद पवार की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल नहीं उठा सकता है।”

एनडीए ने शरद पवार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया था

2001 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात भूकंप संकट से निपटने के लिए शरद पवार को चुना था। एनडीए ने शरद पवार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया था। शरद पवार को इसलिए चुना गया था, क्योंकि उन्होंने 1993 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में लातूर भूकंप को अच्छे से संभाला था।