देश में कोरोनावायरस संकट और लॉकडाउन का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर ही पड़ा है। पहले देशभर में काम बंद होने के बाद रोजगार गंवा चुके श्रमिकों को लाखों की संख्या में सड़कों पर उतरकर पैदल ही गृह-राज्य लौटते देखा गया। फिर जब केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था कराई, तब भी प्रवासियों की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हालिया समय में तो मजदूरों ने ट्रेन में खाने-पीने का इंतजाम न होने के साथ उनकी लेटलतीफी तक की शिकायत की। हालांकि, अब इसमें एक और समस्या जुड़ गई है। कई ट्रेनें रास्ता भटककर दो दिन में पूरा होने वाला सफर नौ-नौ दिन में पूरा कर रही हैं। इसका असर यह है कि कई लोगों की जान भूख-प्यास और गर्मी से ही निकली जा रही है।
ताजा मामला ईद का है। महाराष्ट्र से आ रहे एक मजदूर को जब लोगों ने आरा स्टेशन पर उठाने की कोशिश की, तो पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है। व्यक्ति की पहचान 44 साल के नबी हसन के तौर पर की गई। इससे पहले गुजरात के सूरत से 16 मई को बिहार के सीवान आ रही दो ट्रेनें तो अपना रास्ता ही भटक गईं। एक ओडिशा के राउरकेला, तो दूसरी कर्नाटक के बेंगलुरू पहुंच गई। वाराणसी रेल मंडल ने जब छानबीन की तो पता चला कि इन ट्रेनों को 18 मई को सीवान पहुंच जाना था। लेकिन यह 9 दिन बाद सोमवार 25 मई तक सीवान पहुंच पाईं। इसके अलावा एक अन्य ट्रेन जयपुर-पटना-भागलपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन रास्ता भटककर पटना के बजाय गया जंक्शन पहुंच गई।
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बिहार में ही श्रमिक ट्रेनों में जा चुकी हैं कइयों की जान
बिहार में श्रमिक ट्रेनों से जाने वालों को काफी परेशानियां झेलनी पड़ी हैं। खाने-पीने की कमी और बेतहाशा गर्मी ने ट्रेन यात्रियों का सफर करना मुहाल कर दिया है। हाल ही में यहां मुजफ्फरपुर जंक्शन में एक 4 साल के बच्चे की ट्रेन में चढ़ने के दौरान ही मौत हो गई। इससे पहले सूरत से सासाराम पहुंची एक ट्रेन से उतरने के बाद एक महिला की अपने पति के सामने ही मौत हो गई। बरौनी में भी एक मुंबई के बांद्रा टर्मिनस से लौटे एक व्यक्ति की पानी लेने के दौरान स्टेशन पर जान चली गई। इसके अलावा राजकोट-भागलपुर श्रमिक ट्रेन से सीतामढ़ी जा रहे एक दंपति के बच्चे की कानपुर में मौत हुई। उसका शव गया में उतारा गया था।
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