उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने मद्रास उच्च न्यायालयों के आंदोलनरत वकीलों की तमिलनाडु की सभी अदालतों में तमिल भाषा को अनुमति दिए जाने की मांग का समर्थन किया।
काटजू ने मुख्यमंत्री जयललिता को लिखे पत्र में कहा, ‘‘गेंद अब पूरी तरह से आपके पाले में है। या तो दिए गए सुझाव के अनुसार, सरकारी भाषा अधिनियम के अनुच्छेद 348 (2) और धारा सात के तहत राष्ट्रपति से बात करें और राज्यपाल को सुझाव दें या फिर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें।’’
उन्होंने कहा कि अदालतों में तमिल भाषा के उपयोग की मंजूरी की वकीलों की मांग पूरी तरह न्याय संगत है क्योंकि इलाहाबाद, पटना, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चार उच्च न्यायालयों में हिंदी को भी अनुमति दी गयी है।
मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ में भी रह चुके काटजू ने कहा, ‘‘तमिल एक महान भाषा है जिसकी बेहद प्राचीन और समृद्ध साहित्यिक विरासत है, इसलिए तमिलों को अपनी भाषा पर गर्व है और अदालतों में इसके इस्तेमाल की अनुमति देने की उनकी मांग न्यायोचित है।’’
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 (2) में यह प्रावधान है कि यदि राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से आदेश करते हैं तो उच्च न्यायालय में कार्यवाही का संचालन स्थानीय भाषा में किया जा सकता है।
काटजू ने कहा, ‘‘मुझे हैरानी है कि अभी तक आपने (जयललिता) तमिलनाडु के राज्यपाल को इसकी सिफारिश नहीं की और राष्ट्रपति से बात नहीं की।’’
बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय के 15 वकीलों को निलंबित करने के फैसले को ‘‘मूर्खतापूर्ण’’ करार देते हुए काटजू ने कहा कि इससे निश्चित रूप से हालात बिगड़ेंगे और पूरे तमिलनाडु में वकीलों का आंदोलन फैलेगा और इसके परिणामस्वरूप सभी अदालतें ठप हो जाएंगी।