Guillain Barre Syndrome: महाराष्ट्र में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 225 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 197 की पुष्टि हुई है और 28 संदिग्ध हैं। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 12 लोगों की मौत हो चुकी है। जिनमें छह की पुष्टि हुई है और छह संदिग्ध मामले हैं। रिपोर्ट किए गए मामलों में से 179 मरीज ठीक हो गए हैं। उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. हालांकि, 24 व्यक्ति गहन देखभाल में हैं, जिनमें से 15 को वेंटिलेटर पर हैं। महाराष्ट्र में गुइलैन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का पहला केस 9 जनवरी को सामने आया था।
महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक ये सभी मामले पुणे नगर निगम, पुणे निगम के गांव, पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम, पुणे ग्रामीण और दूसरे जिलों से हैं। इन इलाकों से 7262 पानी के नमूने केमिकल और बायोलॉजिकल एनालिसिस के लिए लैब भेजे गए। 144 वाटर सोर्स में इन्फेक्शन की बात सामने आई है।
प्रशासन ने इन जिलों के 89,699 घरों की दौरा भी किया है। इनमें पुणे नगर निगम में 46,534, पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम (PCMC) के 29,209 और पुणे ग्रामीण में 13,956 घर शामिल हैं। प्राइवेट क्लिनिक को एडवाइजरी जारी की गई है कि GBS का कोई केस नजर आए तो सूचित करें।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) क्या है?
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम एक ऑटोइम्यून कंडीशन है। यह एक रेयर सिंड्रोम है। इससे न्यरोलॉजिकल डिसऑर्डर हो जाता है। हमारा इम्यून सिस्टम अपनी ही नर्वस पर अटैक कर देता है। इसके कारण हाथ-पैर अचानक कमजोर पड़ जाते हैं। उठना-बैठना तक मुश्किल हो जाता है। जीवीएस आमतौर पर मेडिकेसन कोर्स के ठीक हो जाता है। 2-3 हफ्ते में मरीज भीतर बिना सपोर्ट के चलने-फिरने लगता है। GBS के ज्यादातर मामलों में मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते है, लेकिन कुछ केस में शारीरिक कमजोरी बनी रहती है। बता दें, हर साल पूरी दुनिया में इसके लगभग एक लाख मामले सामने आते हैं। ज्यादातर मरीज पुरुष होते हैं।
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इलाज महंगा, एक इंजेक्शन 20 हजार का
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का इलाज महंगा है। डॉक्टरों के मुताबिक, मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन का कोर्स करना होता है। निजी अस्पताल में इसके एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है। पुणे के अस्पताल में भर्ती 68 साल के मरीज के परिजन ने बताया कि इलाज के दौरान उनके मरीज को 13 इंजेक्शन लगाने पड़े थे। डॉक्टरों ने मुताबिक GBS की चपेट में आए 80% मरीज अस्पताल से छुट्टी के बाद 6 महीने में बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने लगते हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज को एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है।
रैपिड एक्शन फोर्स तैनात
जिले में इस वायरस की स्थिति जानने की कोशिश जारी है। एक राज्य स्तरीय रैपिड एक्शन दल को तुरंत प्रभावित क्षेत्रों में दौरे पर भेजा गया है। पुणे नगर निगम (पीएमसी) और पुणे ग्रामीण के अधिकारियों को निगरानी गतिविधियों को मजबूत करने का निर्देश दिया गया है। जिले में पीने वाले पानी के नमूने लिए जा रहे है।
144 पानी के नमूने प्रदूषित
शहर के विभिन्न हिस्सों से 7,262 पानी के नमूने रासायनिक और जैविक विश्लेषण के लिए स्वास्थ्य प्रयोगशाला में भेजे गए हैं। अब तक 144 जल में प्रदूषण का पता चला है। इसे सही करने की कोशिश की जा रही है। सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए गहन स्वास्थ्य संवर्धन गतिविधियां शुरू की गई हैं। सरकार ने प्राइवेट डॉक्टरों से लोगों की मदद करने की अपील की है। साथ ही उनसे अपील की गई है कि वायरस की जानकारी मिलने पर तुरंत सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को सूचना दें।
90 हजार गांवों की जांच
मेडिकल टीम कई क्षेत्रों में घर-घर जा रही है। अब तक 90 हजार के करीब घरों की जांच की जा चुकी है। इसमें पुणे नगर निगम में 46,534, पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम (PCMC) में 29,209 और पुणे ग्रामीण में 13,956 घरों की जांच की की गई। इस बीच, एंटीगैंग्लियोसाइड एंटीबॉडी परीक्षण के लिए बेंगलुरु में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) को 82 सीरम नमूने भेजे गए हैं। जिससे इस बीमारी को समझने में मदद मिलेगी।
मेडिकल सेवा जरूरी होता है
स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि अधिकांश रोगी समय रहते मेडिकल सेवा मिलने पर ठीक हो जाते हैं। मगर गंभीर मामलों में लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने और वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता हो सकती है। राज्य सरकार ने निगरानी प्रयासों को तेज कर दिया है। प्रभावित रोगियों के लिए पर्याप्त उपचार और संसाधन सुनिश्चित करने के लिए अस्पतालों के साथ समन्वय कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने प्रकोप को रोकने और आगे प्रसार को रोकने के लिए कई उपाय लागू किए हैं।
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