JMM History: लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी विरोधी इंडिया गठबंधन को झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से बड़ा झटका लगा है। यह झटका केवल इंडिया गठबंधन को ही नहीं बल्कि, उनकी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) पार्टी के लिए भी किसी बडे़ घटनाक्रम से कम नहीं है। जिसने सोरेन के परिवार समेत उनकी पार्टी को हिलाकर रख दिया है। बता दें, जेएमएम ने झारखंड अलग मांग को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

पार्टी की वैचारिक नींव अविभाजित बिहार में झारखंड आंदोलन में निहित है। 1950 में गठित झारखंड फॉर्मेशन पार्टी (जेएचपी) ने सबसे पहले औपचारिक रूप से अलग झारखंड की मांग उठाई। अद्वितीय आदिवासी पहचान, सामुदायिक भूमि और अविभाजित बिहार के दक्षिणी हिस्सों में आने वाले जिलों में शोषण को समाप्त करने की मांग इसके केंद्र में थी।

प्रोफेसर अमित प्रकाश ने अपनी पुस्तक ‘द पॉलिटिक्स ऑफ डेवलपमेंट एंड आइडेंटिटी इन द झारखंड रीजन ऑफ बिहार (इंडिया), 1951-91 में लिखा है कि जेएचपी दक्षिण बिहार में “झारखंडी” के तहत आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को एकजुट करने वाली पहली राजनीतिक पार्टी थी।

जेएचपी ने 1952 में पहले आम चुनाव में 32 सीटें जीतीं और एक नए राज्य के निर्माण के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) को एक ज्ञापन सौंपा। हालांकि, उनके इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया। जिससे इसकी लोकप्रियता में गिरावट आ गई। अपने राजनीतिक स्थान पर पकड़ बनाए रखने के कोशिश में जेएचपी का 1963 में कांग्रेस में विलय हो गया। हालांकि, विलय से गुटबाजी और अन्य समस्याएं पैदा हुईं। लगभग उसी समय क्षेत्र के आदिवासी एक साथ आ रहे थे और क्षेत्र के पिछड़ेपन को उजागर करने के लिए छोटे आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे थे।

1973 में हुआ झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन

कुर्मी नेता बिनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज नामक एक सामाजिक सुधार संगठन चलाया। यह संगठन 1960 और 1970 के दशक में समुदाय के सदस्यों के लिए भूमि बहाली के लिए काम करता था। संगठन ने शिबू सोरेन के नेतृत्व वाले संथालों के साथ गठबंधन किया, जो भूमि अधिकारों के लिए भी लड़ रहे थे। यह गठबंधन औपचारिक रूप से 1973 में अस्तित्व में आया और इसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नाम से जाना गया। कम्युनिस्ट नेता एके रॉय की अध्यक्षता वाली मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) भी झामुमो के समर्थन में आ गयी।

शिबू सोरेन आंदोलन के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे

साथ में उन्होंने क्षेत्र में सामाजिक कार्यों में कदम रखा और दक्षिण बिहार में अपनी पकड़ बनाई। शिबू सोरेन आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में उभरे। उन्होंने अवैध खनन के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया और 1970 के दशक में देश के बाकी हिस्सों में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। झामुमो के लिए वामपंथी समर्थन तब समाप्त हो गया, जब पार्टी ने बिहार में 1980 के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन किया। यह आधिकारिक तौर पर 1984 में एक अलग राजनीतिक दल के रूप में लॉन्च हुआ। इसके तुरंत बाद झामुमो के भीतर मुद्दे उभरे। इन मुद्दों से अंतर्कलह पैदा हुई। जिससे सोरेन के नेतृत्व वाले गुट और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाले गुट बंट गए।

1987 में जेएमएम (सोरेन), जेएमएम (मरांडी), और अन्य छोटे संगठन झारखंड के लिए एक होकर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए झारखंड समन्वय समिति (जेसीसी) बनाने के लिए एक साथ आए। 1997 और 1998 के बीच इसने बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सरकार का समर्थन किया। यह रिश्ता आज भी जारी है। राजद के एक विधायक वर्तमान में झारखंड में गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं।

शिक्षाविद् संजय कुमार और प्रवीण राय ने 2009 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में लिखा था, इस समर्थन को “राजद द्वारा पुरस्कृत” किया गया था। राजद सरकार ने 1997 में केंद्र सरकार को एक अलग राज्य झारखंड के निर्माण की सिफारिश करने वाला एक प्रस्ताव अडॉप्ट किया। तीन साल बाद नवंबर 2000 में झारखंड का निर्माण हुआ।

बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने

भाजपा के नेतृत्व में राज्य का पहला सत्तारूढ़ गठबंधन 2000 के बिहार चुनाव के आधार पर बनाया गया था। बाबूलाल मरांडी (जो इस समय तक भाजपा में थे) नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने और 2003 तक सत्ता में रहे। इस दौरान उन्हें विश्वास मत का सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

झारखंड आंदोलन के चेहरे के रूप में और शिबू सोरेन जैसे कद के नेता के साथ झामुमो को नए राज्य में चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस, राजद और सीपीआई के गठबंधन ने 14 लोकसभा सीटों में से 13 पर जीत हासिल की।
इसके अगले साल नए राज्य में पहले विधानसभा चुनावों में झामुमो, जिसने फिर से कांग्रेस के साथ भागीदारी की, लेकिन हार गई। इसने जिन 49 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से वह केवल 17 सीटें जीतने में सफल रही और उसे 14.3% वोट मिले। कुल मिलाकर गठबंधन को 81 विधानसभा क्षेत्रों में से 26 पर जीत हासिल हुई। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के आधे के आंकड़े तक पहुंचने के साथ राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और वह अपना बहुमत साबित करने के बाद राज्य के तीसरे सीएम बन गए।

झारखंड में 2000 के बाद छह सीएम बने और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा

2000 के बाद से झारखंड ने छह मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन देखा है। पिछले चार चुनावों में 81 सदस्यीय सदन में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, जिससे गठबंधन पर ही सरकार बनती रही और कोई स्थिर सरकार नहीं बन सकी। 2009 में झामुमो भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई, जिसमें हेमंत सोरेन ने डिप्टी सीएम के रूप में कार्य किया।

चार साल बाद हेमंत राज्य के सबसे युवा सीएम बने, लेकिन अगले वर्ष भाजपा से हार गए। वह 2019 में राज्य सरकार में वापस आ गए। वर्तमान में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 48 विधायक हैं, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 29 विधायक हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल राकांपा के अजित पवार गुट के पास एक विधायक है और दो निर्दलीय हैं।

अपनी विरासत के बावजूद झामुमो कभी भी झारखंडी हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली केंद्रीय पार्टी के रूप में उभर नहीं पाई। 2009 के चुनाव आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए संजय कुमार और प्रवीण राय ने लिखा कि विधानसभा स्तर पर झामुमो के चुनावी प्रदर्शन ने संकेत दिया कि पार्टी का समर्थन आधार व्यापक नहीं दिखता है, क्योंकि पार्टी कभी भी 25% से अधिक वोट नहीं जुटा सकी। 2009 के विधानसभा चुनावों में उसे 15.2%, 2014 में 20.4% और 2019 में 18.7% वोट मिले।

उस समय कुमार और राय ने तर्क दिया कि 1991 से शुरू हुए संसदीय चुनावों में झामुमो का शुरुआती प्रदर्शन जीती गई और सीटों के प्रतिशत के मामले में थोड़ा बेहतर था। शिबू सोरेन राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाते रहे। उन पर और लोकसभा में झामुमो के पांच अन्य सांसदों पर 1993 में पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए “अवैध रिश्वत” लेने का आरोप लगाया गया था। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सांसदों को सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के खिलाफ संविधान के तहत छूट प्राप्त है।

पिछले तीन लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्टर से सिमट गई झामुमो

लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों में झामुमो का राष्ट्रीय स्तर भी सिमट गया, क्योंकि भाजपा ने राज्य की अधिकांश संसदीय सीटें जीत ली हैं। 2014 की तरह, 2019 में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने दो लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को 12 सीटें मिलीं।