केंद्रीय कृषि नरेंद्र सिंह तोमर के जन्मदिन (12 जून को) पर एक बड़े हिंदी अखबार में उनका फुल पेज पर गुणगान किया गया। यहां तक कि उन्हें देश का कृषि मित्र, देवदूत और सर्वमान्य नेता तक बताया गया।
‘दैनिक भास्कर’ के भोपाल एडिशन में पेज नंबर-चार पर बैनर में लिखा गया, “सशक्त पंचायत समृद्ध किसान।” मंत्री के जन्मदिन विशेष को छपे इस पन्ने पर आठ स्टोरी थीं, जिनमें उनकी वाह-वाही की गई थी। लीड स्टोरी में कहा गया कि यह कृषि विकास का स्वर्णिम युग है। तोमर के नेतृत्व में मंत्रालय ने विकास की गाथा रच डाली। कृषि से जुड़े क्षेत्रों में नई व्यवस्था का सृजन हुआ। अखबार में तोमर के बारे में इस पेज पर जो कुछ भी छपा, वह विज्ञापन था या नहीं? यह फिलहाल साफ नहीं हो पाया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पेपर ने इस बात को लेकर पेज पर जिक्र नहीं किया।
वैसे, अखबार की खबरों में भले ही तोमर को कृषि मित्र और अन्य तमगे दिए गए हों, मगर जमीनी स्तर पर किसानों का मौजूदा आंदोलन, उनकी दशा और दिशा कुछ और ही हकीकत दर्शाती है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के लाए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान संघों ने शुक्रवार को ऐलान कर दिया कि वे अपने आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर 26 जून को देश भर में राज भवनों पर धरना देंगे। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि वे 26 जून को अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान काले झंडे दिखाएंगे और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन भेजेंगे। हालांकि, आठ जून को तोमर ने कहा था, “अगर किसान संगठन कृषि कानूनों को वापस लेने से इतर विकल्प पर बातचीत को तैयार हों, तो सरकार उनसे वार्ता के लिए राजी है।”
दरअसल, केंद्र के साथ कई दौर की बात के बाद भी कृषि कानूनों पर कुछ हल नहीं निकल पाया है। केंद्र और किसानों के बीच डेडलॉक (संवाद पर) बरकरार है। यही वजह है कि कोरोना के बीच भी किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे हैं। सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर से किसानों का जत्था नहीं हटा है। पंजाब, हरियाणा और यूपी के भी कई हिस्सों में किसानों ने हाल में अपने हितों को लेकर आवाज उठाना तेज कर दिया है। बीकेयू के प्रवक्ता और आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत भी साफ कर चुके हैं कि जब तक कानून वापसी नहीं होगी, तब वे वापस नहीं लौटेंगे।
निःसंदेह किसानों के मद्देनजर सरकार ने ढेर सारे कदम उठाए और योजनाएं शुरू कीं, पर यह भी सच है कि सिर्फ 2019 में 42 हजार 480 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या (एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक) कर ली थी। इससे पहले, तीन साल की देरी के बाद सरकार ने किसानों की खुदकुशी से जुड़े आंकड़े जारी किए थे। यही नहीं, किसान आंदोलन के दौरान और कोरोना काल में भी कई किसानों की जान गई।
कौन हैं तोमर?: म.प्र के ग्वालियर में जन्में तोमर को मुन्ना भैया के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम उन्हें बाबू लाल गौर ने दिया था। उन्होंने जीवाजी विवि से ग्रैजुएशन किया था। अपने शहर में बीजेपी युवा मोर्चा के चार साल तक अध्यक्ष (1980 से 1984) रहे। आगे धीमे-धीमे संगठन में कद बढ़ता गया और 1998 में विधानसभा पहुंचे। फिर 2003 में म.प्र सरकार में कबीना मंत्री, 2006 में सूबे के बीजेपी चीफ और 2009 में राज्यसभा सदस्य बने। 2014 और 2019 के आम चुनाव में जीते और दोनों ही बार कैबिनेट में जगह मिली। मौजूदा समय में वह ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का काम भी संभाल रहे हैं।