वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर आम आदमी आगे आए तो वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि, मृदा, प्रकाश, जल और अग्नि प्रदूषण से छुटकारा पाया जा सकता है। इनमें ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने की आदत डालना जरूरी है। दिल्ली की अपेक्षा मुंबई में वायु प्रदूषण कम होने की एक वजह वहां सार्वजनिक परिवहन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल प्रमुख है। गौरतलब है कि निजी वाहनों के ज्यादा इस्तेमाल से वायु मंडल में कार्बन मोनोआक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है।

वायु प्रदूषण से जहां अनेक नई-नई बीमारियां और दूसरी समस्याएं पैदा हो रही हैं, वहीं इसका असर उम्र पर भी पड़ रहा है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से भारतीयों की उम्र नौ साल तक कम हो रही है। शिकागो विश्वविद्यालय के ‘द एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट’ के मुताबिक भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण पर काबू पाना बहुत जरूरी है।

दुनिया भर के प्रदूषित शहरों की श्रेणीबद्धता में भारतीय शहरों की संख्या पिछले वर्षों में बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के दूसरे शहरों के मुकाबले उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर दस गुना ज्यादा खतरनाक है। इसकी वजहें कई हैं। ईट भट्ठे, बेतहाशा बढ़ते पेट्रोलियम वाहन, कल-कारखाने, फसलें जलाने और छोटे-छोटे तमाम दूसरे कारक इसमें शामिल हैं। अध्ययन बताता है कि पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण बढ़ते हुए पश्चिमी और मध्य भारत के महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में पहुंच गया है। इसकी वजह से इन प्रदेशों में लोगों की औसत आयु तीन साल कम हो गई है।

दिल्ली वायु प्रदूषण के मामले में भारतीय शहरों में अव्वल है। यहां वायु प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली सरकार की कोशिशें उतनी कारगर नहीं हुई हैं, जिससे नागरिकों को प्रदूषण से राहत मिलती। ‘द एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट’ की ओर से जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के लोगों को अगर अपनी औसत उम्र में दस साल की बढ़ोतरी करनी है, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश तुरंत लागू करने की जरूरत है। उसके अनुसार भारत के शहरों में सालाना हवा में मौजूद पीएम 2.5 कण (ये प्रदूषण की वजह बनने वाले सबसे बारीक कण हैं) दुनिया के दूसरे शहरों के मुकाबले सबसे ज्यादा ऊंचे स्तर पर हैं।

गौरतलब है कि दुनिया के पचास सबसे प्रदूषित शहरों में पैंतीस शहर भारत के हैं। ‘एनवायरमेंटल साइंस ऐंड टेक्नोलाजी’ पत्रिका के हाल में प्रकाशित रिपोर्ट, इन देशों में पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता के मुख्य चालकों के रूप में विभिन्न स्रोतों से वायुमंडल में सीधे उत्सर्जित होने वाले प्राथमिक आर्गेनिक्स-कार्बन कणों की पहचान करते हैं।

पीएम 2.5 सांस के साथ शरीर के अंदर जाने योग्य महीन कण हैं, जिनका व्यास आमतौर पर 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटा होता है। अध्ययन से पता चलता है कि 2019 में परिवेशी पीएम 2.5 के कारण दक्षिण एशिया में 10 लाख से अधिक मौतें मुख्य रूप से घरों में र्इंधन जलाने, उद्योग और बिजली उत्पादन से हुर्इं। अध्ययन में पाया गया कि ठोस जैव र्इंधन पीएम 2.5 के कारण होने वाली मृत्यु दर में योगदान देने वाला प्रमुख दहनशील र्इंधन है, इसके बाद कोयला, तेल और गैस का स्थान है।

एक दूसरे शोध में वायु प्रदूषण बढ़ने के ऐसे कारण भी बताए गए हैं, जो बेहद खतरनाक हैं। इन कारणों में बिजली घर, डीजल जलाने और जीवाश्म र्इंधन से निकलने वाली सल्फर और नाइट्रोजन आक्साइड हैं, जिन्हें नियंत्रण में लाने की जरूरत है। पिछले दो दशक में उत्सर्जन पर ग्यारह शोध हुए हैं। ये शोध लंदन, न्यूयार्क और बेजिंग में हुए। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारणों में रसायन वाले उत्पाद, घरों में पेंट करना और कोयला जलाना शामिल है।

इग्लैंड की ‘द यूनिवर्सिटी आफ मैनचेस्टर’ की अगुआई में धातु के कार्बनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) नामक एक सामग्री विकसित की गई है। इसमें नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) को सोखने की क्षमता है। एनओ2 खासकर डीजल और जैव-र्इंधन के जलने से उत्पन्न होती है, जो एक जहरीली और प्रदूषक गैस है। एनओ2 को आसानी से नाइट्रिक में बदला जा सकता है, जो फसलों के लिए खेती में डाले जाने वाले उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। नाइट्रिक एसिड बहुत काम की है। इससे राकेट का र्इंधन और नायलान जैसी सामग्री भी बनाई जा सकती है।

एक और शोध के जरिए वायु प्रदूषण को कम करने में कामयाबी मिलने की आशा है। ‘ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी’ और ‘बर्कले नेशनल लेबोरेटरी’ के शोधकर्ताओं ने धातु के कार्बनिक फ्रेमवर्क यानी एमओएफ का परीक्षण किया। शोधकर्ताओं की टीम ने एमएफएम-520 में एनओ2 को सोखने के तंत्र का अध्ययन करने के लिए मैनचेस्टर में लेक्ट्रान पैरामैग्नेटिक रेजोनेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के लिए सरकारी सेवा का इस्तेमाल किया।

इस तकनीक से वायु प्रदूषण को काबू किया जा सकता है। इससे पर्यावरण पर नाइट्रोजन के बुरे असर को रोकने में मदद मिल सकती है। यह नया प्रयोग अगर पूरी तरह सफल रहा, तो वायु प्रदूषण की समस्या से काफी कुछ छुटकारा पाया जा सकता है। यहां तक कि वायुमंडल से ग्रीनहाउस और विषाक्त गैसों को सोखने के साथ-साथ इनको उपयोगी, मूल्यवान उत्पादों में बदला जा सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर आम आदमी आगे आए तो वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि, मृदा, प्रकाश, जल और अग्नि प्रदूषण से छुटकारा पाया जा सकता है। इनमें ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने की आदत डालना जरूरी है। दिल्ली की अपेक्षा मुंबई में वायु प्रदूषण कम होने की एक वजह वहां सार्वजनिक परिवहन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल प्रमुख है। ई-बस जैसी नई तकनीक से दिल्ली में इसका कुछ असर देखा जा सकता है। गौरतलब है कि निजी वाहनों के ज्यादा इस्तेमाल से वायु मंडल में कार्बन मोनोआक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है।

भारत में वायु प्रदूषण को कम करने और विदेश से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात की सबसे बड़ी वजह पेट्रोलियम वाहनों का इस्तेमाल करना है। ई-वाहनों के इस्तेमाल से जहां वायु प्रदूषण से निजात मिलेगी, वहीं पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर होने वाला खर्च भी बचेगा। ऐसी जीवनशैली अपनाने की जरूरत है, जो पर्यावरण की रक्षा में मददगार हो। इससे जहां बीमारियों से बचने में मदद मिलेगी, वहीं प्राकृतिक जीवन जीने की आदत भी पड़ेगी।

यह सलाह वैज्ञानिक भी दे रहे हैं और चिकित्सक भी। बाग लगाने से आक्सीजन की कमी को दूर किया जा सकता है। इससे चारों तरफ हरियाली बढ़ेगी वहीं फल, मेवे और लकड़ी का उत्पादन भी जरूरत के मुताबिक हो पाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक बिजली की खपत कम करके ऊर्जा की बचत बेहतर तरीके से की जा सकती है और बिजली के बल्बों और दूसरे उत्पादों से होने वाली गर्मी से भी बचा जा सकता है।

आम आदमी रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा करता है। बेहतर विकल्प होने के बावजूद आदत की वजह से प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल आदतन हम करते रहते हैं। गौरतलब है प्लास्टिक की थैलियां वायु प्रदूषण बढ़ाने की प्रमुख वजह हैं। ये थैलियां नदी, नाले और समुद्र में पहुंच कर उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी मौत का कारण बनती हैं। इसलिए प्लास्टिक की थैलियों से छुटकारा पाना जरूरी है। और सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर हम वायु प्रदूषण की समस्या को काफी कुछ कम कर सकते हैं। घरों में सौर पैनल लगाना बिजली का एक बेहतर विकल्प है।

वायु प्रदूषण को कम करने में हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हम बाजार से ऐसी चीजों को ही खरीदें जो बार-बार इस्तेमाल कर सकें। इसी तरह धूम्रपान वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। बीड़ी, सिगरेट और दूसरे तंबाकू के उत्पादों को इस्तेमाल न करें, तो हम वायु प्रदूषण को कम करने में मददगार हो सकते हैं। सबसे कारगर उपाय है, हम खुद जागरूक हों और दूसरों को भी जागरूक करें। इससे वायु प्रदूषण की समस्या से जल्द निजात पाया जा सकता है।