BJP के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी फिर से राष्ट्रीय राजनीति में आ गए हैं। उन्होंने दिल्ली में यह हालिया एंट्री दिल्ली से वाया पटना होकर ली है। शनिवार (12 दिसंबर) को कुछ रोज पहले Rajya Sabha के लिए निर्वाचित हुए मोदी ने संसद के उच्च सदन के सदस्य के तौर पर शपथ ली। सभापति एम.वेंकैया नायडू ने उनके साथ इस दौरान भाजपा के अरुण सिंह और सीमा द्विवेदी को भी शपथ दिलाई, जो यूपी से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं।

करीब डेढ़ दशक तक बिहार के उप मुख्यमंत्री रहे मोदी पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए हैं। इस बार के बिहार विस चुनाव में NDA की जीत के बाद भाजपा नेतृत्व ने तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उप मुख्यमंत्री के लिए चुना, जबकि मोदी को राज्यसभा भेजने का फैसला हुआ। पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के देहांत के कारण बिहार से राज्यसभा की एक सीट के लिए उपचुनाव हुआ था, जिसमें मोदी निर्विरोध चुने गए।

‘गलती’ पर यादव ने मोदी को समझाया थाः सुशील मोदी तो राष्ट्रीय राजनीति में फिर वापसी कर गए, पर उन्हें पहली बार सत्ता का स्वाद चखाने वाले शरद यादव आज हाशिए पर हैं। किस्सा साल 2005 का है। बिहार चुनाव में NDA की सरकार बनी थी। नीतीश के नेतृत्व में। हालांकि, तब मोदी दिल्ली में थे। चूंकि, डिप्टी सीएम भाजपा से बनाया जाना था। पर इसके लिए मोदी के नाम की कोई चर्चा नहीं थी। इसी बीच, यादव ने मोदी को फोन किया। आगे के प्लान के बारे में पूछा। बिहार के उप मुख्यमंत्री पद को लेकर उनका मन टटोला। मोदी ने अनिच्छा जताई। यादव ने उन्हें इसी बात पर समझाया कि वह ये गलती न करें।

‘तो भाषण ही देते रह जाओगे…’: दिल्ली से बिहार खींच लाए थे। उन्होंने मोदी से दो-टूक कह दिया था, “विपक्ष में रहोगे, तो केवल भाषण ही देते रह जाओगे। सरकार में आओगे, तो कुछ करने का मौका मिलेगा।” ये बातें बहुत हद तक मोदी के दिमाग में घर कर गईं, जिसके बाद उन्होंने फौरन पार्टी के विधायकों से संवाद साधा। बताया जाता है कि तब अश्विनी कुमार चौबे और नंद किशोर यादव के नाम डिप्टी सीएम की रेस में थे, जबकि मोदी द्वारा इच्छा जताने के बाद सीन और दिलचस्प हो गया। बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिल्ली से पटना पहुंचे थे। उनके सामने मोदी के समर्थन में विधायकों ने राय दी, जिसके बाद उन्हें उप-मुख्यमंत्री का ताज सौंप दिया गया।

जानिए शरद यादव कोः एक जनवरी, 1947 को जन्में यादव लोकतांत्रिक जनता दल के नेता हैं। वह सात बार लोकसभा से चुने जा चुके हैं, जबकि तीन बार राज्यसभा जा चुके हैं। जेडीयू की ओर से। 2003 में जनता दल (यूनाइटेड) के बनने से 2016 तक वह इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपों के बाद उन्हें राज्यसभा से अयोग्य करार दे दिया गया, जबकि पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

बिहार चुनाव में बेटी को भी मिली हारः शरद यादव ने साल 2018 में नई पार्टी लॉन्च की थी, जिसका नाम- “Loktantrik Janata Dal” (LJD) था। अगले साल यानी वर्ष 2019 के आम चुनाव में वह महागठबंधन का हिस्सा रहे। मधेपुरा से चुनाव भी लड़े, मगर उनके हाथ मात आई। हालांकि, बिहार चुनाव में वह और उनकी पार्टी कुछ खास एक्टिव नहीं नजर आई। कारण- कमजोर स्वास्थ्य रहा। उनकी बेटी सुभाषिनी यादव को कांग्रेस ने टिकट दिया था, पर उन्हें जेडीयू के निरंजन कुमार मेहता से हार का सामना करना पड़ा था।