प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को हरियाणा के फरीदाबाद में माता अमृतानंदमयी मठ द्वारा संचालित सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का उद्घाटन किया। अस्पताल का नाम ‘अमृता अस्पताल’ है। उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने माता अमृतानंदमयी के चरणों में झुककर आशीर्वाद लिया। अब यह चर्चा तेज हो गई है कि आखिर माता अमृतानंदमयी कौन हैं, जिनके पैर प्रधानमंत्री भी छू रहे हैं?

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कौन हैं माता अमृतानंदमयी?

अमृतानंदमयी का जन्म 1953 में दक्षिण भारत के केरल के एक सुदूर तटीय गांव में हुआ था। पत्रकार Jake Halpern ने न्यूयॉर्क टाइम्स की अपनी रिपोर्ट में अम्मा की जीवनी के हवाले से लिखा है कि वह एक गरीब परिवार में पैदा हुई थीं, जिसका ताल्लुक निम्न जाति से था। उनके घर में जो कीमती सामान हुआ करता था वह लोगों में बांट देती थीं। इसलिए उनके पिता ने उन्हें पेड़ से बांधकर पीटा था। वह कम उम्र से ही अजनबियों को गले लगाने लगी थीं। अंततः उन्होंने जंगल में रहने के लिए घर छोड़ दिया, जहां उन्होंने जिंदा रहने के लिए मानव मल से लेकर कांच के टुकड़े तक खाए। जीवनी के मुताबिक, बड़े होने पर उन्होंने चमत्कार करना शुरू कर दिया। जैसे- कोबरा को चूमना, आंधी को मोड़ना और एक छोटे से बर्तन से एक हजार से अधिक लोगों को खिलाना।

विश्वभर में ‘अम्मा’ के नाम से प्रसिद्ध अमृतानंदमयी देवी को उनके भक्त अम्मा, अम्माची और मां भी कहते हैं। अमृतानंदमयी की अनुयायी भारत समेत दुनिया भर फैले हुए हैं। अक्सर अमृतानंदमयी अपने सामाजिक कार्यों जैसे स्कूल खुलवाने, अस्पताल बनवाने आदि के लिए चर्चा में रहती हैं। उन्हें ‘हगिंग सेंट’ यानी गले लगाने वाली संत के नाम से भी जाना जाता है। वह अपने अनुयायियों को गले लगाकर अपना अनुराग प्रकट करती हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमृतानंदमयी देवी साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को गले लगा कर आशीर्वाद दे चुकी हैं।

अमृतानंदमयी देवी की वेबसाइट (www.amritapuri.org) पर लिखा है कि मातृत्व का अंतिम अर्थ बच्चा पैदा करने से नहीं है बल्कि प्यार, करुणा और निस्वार्थता से है। अमृतानंदमयी अपने विजन का जिक्र करते हुए कहती हैं,”मेरा सपना एक ऐसी दुनिया की है जहां महिलाएं और पुरुष एक साथ प्रगति करते हैं। एक ऐसी दुनिया जिसमें सभी पुरुष इस तथ्य का सम्मान करें कि एक पक्षी के दो पंखों की तरह महिला और पुरुष समान हैं।”

अब्दुल कलाम आजाद ने दिया दान

माता अमृतानंदमयी मठ (एमएएम) की धर्मार्थ गतिविधियों की संस्थापक, प्रेरणा और प्रबंधक अमृतानंदमयी देवी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 19 फरवरी, 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने एमएएम को धर्म खडगाम पुरस्कार दिया था। दरअसल अमृतानंदमयी देवी और उनके संगठन को सरकार से निराश लोगों को सहारा देने के लिए भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए साल 2004 में दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में आई सुनामी ने तबाही मचाई तो केरल की राज्य सरकार को केवल यह घोषणा करने में पाँच दिन लगे कि वह सहायता और राहत के माध्यम से क्या करेगी। लेकिन एमएएम ने कुछ ही घंटों के भीतर न सिर्फ प्रतिक्रिया दी, बल्कि हजारों लोगों के भोजन और रहने का इंतजाम किया।

साल 2003 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अम्मा के धर्मार्थ कार्यों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना लगभग पूरा वार्षिक वेतन उनके संगठन को दान कर दिया।

अम्मा का साम्राज्य

अमृतानंदमयी देवी के प्रयासों का भुगतान कैसे किया जाता है यह एक रहस्य बना हुआ है। 2013 में प्रकाशित न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक प्रवक्ता ने बताया था कि उनका संगठन दुनिया भर के स्रोतों से सालाना करीब 20 मिलियन डॉलर जुटाता है। हालांकि यह जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि संगठन भारत में किस तरह और कितना पैसा जुटाता है।

‘आम्मा’ का संगठन ‘एमए सेंटर’ अमेरिका में एक चर्च के रूप में पंजीकृत है, जो धर्मनिरपेक्ष कर-मुक्त समूहों की तरह अपने वित्त का खुलासा नहीं करने के लिए स्वतंत्र है। आश्रम के कोषाध्यक्ष स्वामी रामकृष्णानंद ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि संगठन के वित्त जनता के लिए खुले नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि भारत सरकार और आश्रम के अपने आंतरिक लेखा परीक्षकों द्वारा इसका सालाना लेखा-जोखा किया जाता है।