बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ राजग की तरफ से मतदाताओं को लुभाने के लिए ताबड़तोड़ मुफ्त उपहारों के एलान ने रेवड़ी बांटने की संस्कृति को फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा दी, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकार के साथ मिल कर और भी कई कार्यक्रम चालू करने का एलान कर दिया। हालांकि, अक्तूूबर 2022 में प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश में एक सभा में कहा था कि रेवड़ियां बांटना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। उन्होंने यह भी कहा था कि आबादी के एक बड़े हिस्से ने देश को रेवड़ी संस्कृति से मुक्त कराने का संकल्प लिया है। लेकिन तीन साल में ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में भाजपा ने रेवड़ियों के जरिए जीत को आसान बनाया। रेवड़ी राज पर सरोकार की निगाह।

लोकतंत्र में राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के संतुलन के लिए एक बड़ी चुनौती उभर कर आई है। यह चुनौती है, सत्तारूढ़ दलों द्वारा बड़े पैमाने पर रेवड़ी की घोषणा करना और उन्हें तुरंत लागू कर देना। जाहिर है किराज्य या केंद्र केस्तर पर सत्ताधारी दलों को विपक्ष की तुलना में चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार बांटने में महत्त्वपूर्ण बढ़त हासिल होती है। सत्ता पक्ष सार्वजनिक धन और सरकारी मशीनरी का उपयोग नए कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू करने या मौजूदा कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए कर सकता है और तुरंत लागू भी कर सकता है। इसका मुकाबला करना विपक्षी दलों के लिए कठिन हो जाता है।

कोई भी सत्तारूढ़ दल चुनाव से ठीक पहले राज्य के बजट के माध्यम से कल्याणकारी योजनाओं को रणनीतिक रूप से लागू कर सकता है। इन योजनाओं में अक्सर मुफ्त बिजली, नकद हस्तांतरण, कर्ज माफी और गैस सिलेंडर जैसी वस्तुओं पर सबसिडी शामिल होती है। उदाहरण के लिए, भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना, लाडली बहना योजना की मदद से 2023 में मध्य प्रदेश में प्रभावी जीत हासिल की। सत्ताधारी दल मौजूदा सरकारी ढांचे का इस्तेमाल लाभों की घोषणा और वितरण के लिए कर सकते हैं, जिससे उन्हें व्यापक पहुंच और दृश्यता मिलती है। कभी-कभी सकारात्मक सार्वजनिक छवि बनाने के लिए योजनाओं का बड़े पैमाने पर प्रचार किया जाता है। सत्ताधारी पार्टियां हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू कर सकती हैं। यह ऐसा पैमाना है, जिसे कोई विपक्षी दल वहन नहीं कर सकता या जिसका वादा भी नहीं कर सकता। महाराष्ट्र में, मौजूदा सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले नकद हस्तांतरण योजना के जरिए 18,525 करोड़ वितरित किए थे।

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बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच लाख स्नातकों के लिए मासिक 1,000 रुपए का भत्ता घोषित किया। कुल रेवड़ियों का अनुमान 7,500 करोड़ रुपए का है। हरियाणा में 5,000 करोड़, मध्य प्रदेश में 22,000 करोड़, और महाराष्ट्र में 36,000 करोड़ रुपए की योजनाएं घोषित की गईं । कुल मिलाकर, ये रेवड़ियां 70,000 करोड़ रुपए की हैं, जो इसरो के बजट (13,416 करोड़) से पांच गुना अधिक हैं।

ये घोषणाएं राजग सरकार द्वारा की गईं, लेकिन विपक्षी दल (जैसे आप, कांग्रेस) भी पंजाब, हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना आदि में इसी तरह की योजनाएं चला रहे हैं, जैसे मुफ्त बिजली या बस यात्रा। वैसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सत्ताधारी दलों ने भी रेवड़ियां बांटी, लेकिन वे जीत नहीं सके। मुफ्त उपहार बांटने कीयह प्रथा साल 2010 के दशक में राज्य स्तर पर तेज हुई। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मुफ्त लैपटाप या सोना बांटने की परंपरा रही है।

सत्ताधारी दल अपने चुनाव पूर्व खर्च को राज्य के संवैधानिक दायित्वों में निहित वैध कल्याणकारी उपायों के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे विपक्ष के लिए इसे चुनौती देना कठिन हो जाता है। इसके विपरीत, विपक्षी दल के समान वादों को अक्सर विशुद्ध रूप से लोकलुभावन मुफ्त उपहार करार दिया जाता है। विपक्षी दलों को निर्वाचन से जुड़े कानून के तहत मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए खर्च करने की सीमा तय करनी पड़ती है।

यह प्रतिबंध मौजूदा सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर कल्याणकारी योजनाओं के लिए सार्वजनिक धन के इस्तेमाल पर लागू नहीं होता है। मुफ्त चीजों का मुद्दा इस समय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष है। फरवरी 2025 में, न्यायालय ने मुफ्त चीजों के वितरण की आलोचना की थी और एक न्यायाधीश ने चेताया था कि इससे परजीवियों का एक वर्ग पैदा हो सकता है।

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भारत के चुनाव आयोग ने पार्टियों से यह बताने के लिए कहकर इस मुद्दे का समाधान करने की कोशिश की है कि वे अपने चुनावी वादों के लिए धन कैसे जुटाएंगे। हालांकि, आयोग ने घोषणापत्र में किए गए वादों को विनियमित करने की अपनी सीमित शक्ति बताई है, जिन्हें नीतिगत निर्णय माना जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अत्यधिक मुफ्त योजनाओं से होने वाले राजकोषीय दबाव के प्रति आगाह किया है, और कहा है कि इससे घाटा और कर्ज-घाटा बढ़ सकता है। इसकी कीमत अंतत: करदाताओं को ज्यादा करों या दीर्घकालिक विकास पर कम खर्च से चुकानी पड़ती है।

बिहार अकेला ऐसा राज्य नहीं है, जिसने चुनाव से महीनों पहले कई मुफ्त योजनाओं की घोषणा की हो। नवंबर 2023 से कई सरकारें विधानसभा चुनावों से पहले अनेक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएं कर चुकी हैं। इन राज्यों में महाराष्ट्र, हरियाणा, तेलंगाना, दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओड़ीशा शामिल हैं।

मुफ्त उपहार चुनावों को कैसे प्रभावित करते हैं

मुफ्त उपहारों का चुनाव के समग्र नतीजों पर असर पड़ता है। महाराष्ट्र में माजी लाड़की बहन योजना महायुति गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित हुई। बडनेरा (अमरावती) से अजय बोस द्वारा प्राप्त आरटीआइ जानकारी के अनुसार, 12 नवंबर 2024 तक, राज्य सरकार ने इस योजना के तहत जुलाई और नवंबर 2024 के बीच 18,525 करोड़ वितरित किए थे। महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने बताया कि लाभ के लिए आवेदन करने वाली 2.63 करोड़ महिलाओं में से 2.47 करोड़ पात्र पाई गईं। प्रत्येक स्वीकृत लाभार्थी को पांच महीने की अवधि में प्रत्यक्ष बैंक हस्तांतरण के माध्यम से 1,500 प्रति माह प्राप्त हुए। महायुति गठबंधन ने इस राशि को 1,500 से बढ़ाकर 2,100 प्रति माह करने का संकल्प लिया।

महाराष्ट्र चुनाव में महिला मतदाताओं की लंबी कतारों से यह साफ था कि ये ग्रामीण क्षेत्रों में लाड़की बहन जैसी योजनाओं के समर्थन में भारी संख्या में मतदान करने आई थीं। विपक्षी एमवीए गठबंधन द्वारा महाराष्ट्र चुनाव में लाड़की बहन को 2100 प्रति माह के स्थान पर प्रत्येक महिला को 3000 नकद देने की घोषणा की गई। लेकिन विपक्ष के मुकाबले सत्ता पक्ष से तुरंत नगदी हस्तांतरण शुरू होने का एक अलग असर दिखाई दिया।

सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला…

किसी राज्य के राजकोषीय स्वास्थ्य के लिए मुफ्त सुविधाएं दीर्घकाल में अच्छी बात नहीं होतीं, हालांकि इससे मौजूदा सरकारों को सत्ता विरोधी भावना से निपटने में मदद मिलती है। वास्तव में, कुछ मामलों में, राज्यों में सत्ता-समर्थक लहर पैदा करने के लिए ये उपाय किए जाते हैं, जैसा कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में देखा गया है।

चुनावों से पहले मुफ्त उपहारों की घोषणा करने से आम तौर पर जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) का 1.7 फीसद खर्च होता है। जीएसडीपी एक प्रमुख आर्थिक संकेतक है जो किसी राज्य के कुल आर्थिक उत्पादन को मापता है, जिसमें किसी निश्चित अवधि में उसकी सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुएं और सेवाएं शामिल होती हैं। इसके परिणामस्वरूप, चुनाव वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे में पिछले वर्ष की तुलना में जीएसडीपी के एक फीसद की वृद्धि हुई है।

चुनाव से एक वर्ष पहले और चुनाव के एक वर्ष बाद प्रमुख राज्यों के राजकोषीय घाटे की तुलना से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वृद्धि हुई। ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ के अनुसार, राज्य में नवंबर 2023 में चुनाव होने थे। चुनाव से पहले के वर्ष में राजकोषीय घाटा एक फीसद दर्ज किया गया था, जो उसके बाद के वर्ष में बढ़कर 4.9 फीसद हो गया। ओड़ीशा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी राजकोषीय घाटे में 1.4-1.5 फीसद अंकों की वृद्धि देखी गई।

मुफ्त चीजें क्या हैं

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, मुफ्त उपहार वे लोक कल्याणकारी उपाय हैं जिनके जरिए जनसंख्या के विशिष्ट वर्गों को अल्पकालिक लाभ मिलता है। इसमें लैपटाप, टेलीविजन, साइकिल, बिजली और पानी जैसी वस्तुओं या सेवाओं का मुफ्त वितरण शामिल है।