बहुजन समाज पार्टी ने वाराणसी सीट से बीजेपी उम्मीदवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अतहर जमाल लारी को मैदान में उतारा है। लारी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अपना दल के टिकट पर वाराणसी से चुनाव लड़ा था और लगभग 93,000 वोट हासिल किए थे। हालांकि बसपा ने पिछले दो चुनावों में वाराणसी से मोदी के खिलाफ कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था, लेकिन 2009 में उसने बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ इस सीट से मुख्तार अंसारी को मैदान में उतारा था। मुख्तार चुनाव हार गए थे। हालांकि वह करीब 1.8 लाख वोट हासिल किये थे। इसलिए लारी को पर्याप्त मुस्लिम वोट मिल सकते हैं। कांग्रेस ने यहां से अपने स्थानीय कद्दावर नेता अजय राय को मैदान में उतारा है।

समाजवादी पार्टी से बगावत कर पार्टी से बने उम्मीदवार

तीन बार विधानसभा और दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके 60 वर्षीय अतहर जमाल लारी 2022 में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये थे। इस बार उन्होंने सपा से बगावत कर बसपा का दामन थाम लिया है। वह सपा और बसपा के अलावा अपना दल, कौमी एकता दल जैसे छोटे राजनीतिक दलों में भी रह चुके हैं।

बीएसपी ने 11 मुस्लिम नेताओं को दिया टिकट

बसपा के अब तक घोषित नामों में से 11 मुस्लिम हैं, जो मुख्य रूप से पश्चिमी यूपी की अल्पसंख्यक बहुल सीटों जैसे सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा, आंवला, पीलीभीत से हैं। (इन सीटों में से कई में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान है।), साथ ही मध्य यूपी की कन्नौज और लखनऊ की सीटें भी शामिल हैं। यह उन 50 सीटों पर सपा द्वारा उतारे गए मुसलमानों की संख्या से कहीं अधिक है, जिनके लिए उसने नामों की घोषणा की है।

पार्टी ने जिन 11 मुसलमानों को मैदान में उतारा है, उनमें से एक गोरखपुर से जावेद सिमनानी भी हैं। बसपा ने हाल के दिनों में यहां से कभी भी किसी मुस्लिम को मैदान में नहीं उतारा था। उसने भाजपा की पारंपरिक सीट से किसी ब्राह्मण या निषाद उम्मीदवार को ही हमेशा आगे बढ़ाती रही है। 2019 में, उसने अपने तत्कालीन सहयोगी सपा के लिए निर्वाचन क्षेत्र छोड़ दिया था।

गोरखपुर में मुस्लिम और ओबीसी निषादों की अच्छी खासी संख्या है. भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने एक ब्राह्मण, रवि किशन को मैदान में उतारा है, और यह देखते हुए कि निषाद पार्टी उसके सहयोगियों में से एक है, वह निषाद समर्थन पर भरोसा कर रही है। बसपा की सिमनानी से सपा के मुस्लिम वोटों में कटौती की उम्मीद है, जिसे काजल निषाद को मैदान में उतारने से ओबीसी और निषादों के समर्थन से अलग होने की उम्मीद थी।