Shahjahanpur Lok Sabha Election 2024 Date, Candidate Name: उत्तर प्रदेश की शाहजहांपुर लोकसभा सीट उन सीटों में शामिल है, जहां से बसपा का कभी खाता नहीं खुला। पिछले 35 साल से बसपा कभी अपने बूते तो कभी गठबंधन करके प्रदेश में चुनाव लड़ती रही है, लेकिन वह आज तक इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई। जबकि शाहजहांपुर में कांग्रेस, बीजेपी, जनता पार्टी और सपा उम्मीदवार जीत हासिल कर चुके हैं।

शाहजहांपुर लोकसभा सीट पर 2014 से लगातार दो बार से भाजपा काबिज है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती है। वहीं सपा अपनी खोई हुई सीट पर जद्दोजहद करती दिख रही है। यह पहला मौका होगा, जब इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने की वजह से कांग्रेस का प्रत्याशी शाहजहांपुर सीट से नहीं उतरेगा और कांग्रेस इस सीट से सपा प्रत्याशी का समर्थन करते दिखेगी।

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा में गठबंधन था। तब बसपा का उम्मीदवार शाहजहांपुर सीट से लड़ा था। उस वक्त जब दो पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तब भी भाजपा 2 लाख 68 हजार वोट से जीती थी।

शाहजहांपुर लोकसभा सीट का इतिहास-

शाहजहांपुर लोकसभा सीट पर पहली बार चुनाव साल 1962 में हुए थे। उस चुनाव में कांग्रेस के प्रेम कृष्ण खन्ना ने जीत दर्ज की थी। वे लगातार 10 साल तक इस सीट पर सांसद रहे। बीजेपी ने इस सीट पर 1989 में अपना खाता खोला था, जब पार्टी उम्मीदवार सत्यपाल सिंह यादव इस सीट से विजेता बने थे। वे भी दस साल तक इस सीट पर सांसद रहे।

साल 2008 में हुए परिसीमन के दौरान यह सीट रिजर्व घोषित कर दी गई थी। उसके बाद 2009 में सपा के मिथलेश कुमार, 2014 में बीजेपी के कृष्णा राज और 2019 में अरुण कुमार सागर विजयी रहे। बीजेपी ने इस बार भी अरुण कुमार सागर पर ही फिर से अपना दांव आजमाया है।

शाहजहांपुर लोकसभा सीट में कितनी असेंबली सीट-

शाहजहांपुर लोकसभा सीट में 6 असेंबली सीटें आती हैं। इनमें नाम कटरा, जलालाबाद, तिलहर, पौवायां (एससी), शाहजहांपुर और ददरौल हैं। इन सभी छह सीटों पर भाजपा का कब्जा है। वहीं सपा ने इस सीट से राजेश कश्यप को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने दोदराम वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है।

शाहजहांपुर लोकसभा सीट का जातीय समीकरण

शाहजहांपुर लोकसभा सीट में करीब 22 लाख मतदाता हैं। साल 2019 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक, इस सीट पर 80 फीसदी हिंदू और करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। यहां पर मौर्य, कुशवाहा, कश्यप, सैनी समेत अति पिछड़ी जातियों का वर्चस्व है। यही वजह है कि उम्मीदवारी की जंग भी इन्हीं जातियों में सिमटी रहती है। मुस्लिम वोटर अक्सर खामोश रहता है और आखिर में हवा का रुख देखने के बाद वोटिंग करता है। चुनाव में मुस्लिम वोट कई बार निर्णायक रहे हैं।