Madhya Pradesh Elections: 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश में 17 नवंबर (शुक्रवार) को मतदान होना है। आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था। सत्ता को बरकरार रखने के लिए बीजेपी ने जहां अपनी फौज उचार दी तो वहीं सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने कड़ी मेहनत की। राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है, लेकिन राज्य में ऐसे भी इलाके हैं जहां बुनियादी सेवाओं की सख्त जरूरत है। उन्हीं में से एक है मध्य प्रदेश का अलीराजपुर जिला, जो राज्य का दूसरा सबसे गरीब जिला है।
अलीराजपुर जिले के भावरा क्षेत्र में 17 साल के अनिल बेदिया अपने परिवार के साथ रहते हैं। अनिल बेदिया के सपने तो बड़े हैं, लेकिन उनके सपनों को पंख लगने के लिए क्षेत्र में बुनियादी सेवाओं की जरूरत है, जो उनके जैसे न जाने कितने होनहार युवाओं को नहीं मिल पा रही है। बेदिया के परिवार की सुबह मुर्गे की आवाज से होती है। इस सुबह के साथ उनके माता-पिता परिवार के साथ अलीराजपुर जिले के भावरा क्षेत्र में खेतों में काम करने के लिए चले जाते हैं तो अनिल बेदिया भी मवेशियों को चराने के लिए जंगल ओर निकल जाता है। जो इस परिवार की दिनचर्या बन चुका है।
अनिल बेदिया का सपना डॉक्टर बनने का है, लेकिन क्षेत्र में बिजली कटौती और अन्य समस्याओं की वजह से उनकी पढ़ाई सुचारू रूप से नहीं हो पाती। इसके लिए वो खिड़की से सूरज की रोशनी पाने के लिए अपनी स्टडी टेबल को लगातार बदलते रहते हैं।
अलीराजपुर में प्रतिभाशाली छात्रों के लिए जवाहर नवोदय स्कूल में पढ़ने वाले अनिल बेदिया कहते हैं, ‘मैं एक आर्थोपेडिक बनना चाहता हूं और अपने लोगों की सेवा करना चाहता हूं। वो कहते हैं कि इस क्षेत्र को कम से कम बुनियादी स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और सेवाओं की सख्त जरूरत है।’
अलीराजपुर मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में स्थिति है। जो 2008 में झाबुआ के आदिवासी जिले से बना है। गुजरात की सीमा से सटा, यह जिला अपने नूरजहां आमों, राजवाड़ा किले, ब्रिटिश काल के ‘विक्टोरिया ब्रिज’ के अवशेषों और स्वतंत्रता सेनानी और शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की जन्मस्थली होने के लिए प्रसिद्ध है।
अलीराजपुर की 90 प्रतिशत आबादी आदिवासी
अलीराजपुर में 90% आबादी लगभग आदिवासी है। यहां मुख्य रूप से भील जनजाति के लोग रहते हैं। यह राज्य की आर्थिक राजधानी इंदौर से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे नीति आयोग द्वारा बहुआयामी गरीबी सूचकांक में एमपी के दूसरे सबसे गरीब और सबसे वंचित जिले के रूप में स्थान दिया गया है। इसकी साक्षरता दर 37% है, जबकि राज्य की औसत 70.06% है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सबसे बड़े आदिवासी मिशन की घोषणा की है, लेकिन अलीराजपुर में अधिकांश लोगों के लिए योजनाओं तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है।
1984 में स्थापित अलीराजपुर के भील आदिवासियों के ट्रेड यूनियन खेदुत मजदूर चेतना संगठन (केएमसीएस) के सामाजिक कार्यकर्ता शंकर तडवाल कहते हैं कि जिला अब बुजुर्ग और युवाओं से भरा हुआ है।
आजीविका के लिए गुजरात पलायन करते युवा
तडवाल कहते हैं, ‘गुजरात में सभी वयस्क आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसका नजारा आप अलीराजपुर बस स्टैंड से दक्षिण गुजरात (210 किमी से अधिक दूर) के लिए प्रस्थान करने वाली बसों में देख सकते हैं, जहां 56 सीटों वाली बस में 200 से अधिक सफर करते हैं।’
झाबुआ और अलीराजपुर तथा गुजरात की सीमा पर कम से कम 50 प्वाइंट हैं, जहां से हर घंटे बसें और अन्य वाहन गुजरात के विभिन्न शहरों के लिए निकलते हैं।
तडवाल वो शख्स हैं, जिन्होंने गुजरात में मध्य प्रदेश के श्रमिकों के शोषण का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। वो कहते हैं कि यहां बाल श्रम एक गंभीर मुद्दा है। स्कूल ड्रेस में बच्चों को गुजरात जाते हुए देखा जा सकता है, लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद हमारी सरकार मौन साधे हैं।’
अलीराजपुर में 2.22 लाख और जोबट में 2.6 लाख मतदाता
17 नवंबर को मतदान की तारीख के करीब है, ऐसे में अलीराजपुर की बड़ी प्रवासी आबादी कम मतदान की आशंकाओं को जन्म दे रही है। 2018 में जिले की दो विधानसभा सीटों अलीराजपुर और जोबट में केवल 52% मतदान हुआ। अलीराजपुर के जिला कलेक्टर अभय अरविंद बेडेकर कहते हैं, ‘प्रशासन प्रवासी मजदूरों को फोन कर रहा है और उन्हें वोट डालने के लिए आमंत्रित कर रहा है… हम मजदूरों के साथ-साथ उनके नियोक्ताओं को समझाने के लिए गुजरात में टीमें भी भेज रहे हैं।’ अलीराजपुर निर्वाचन क्षेत्र में 2.22 लाख और जोबट में लगभग 2.6 लाख पंजीकृत मतदाता हैं।
केएमसीएस द्वारा की गई स्टडी और इंदौर में आदिवासी अधिकार संगठन के कार्यकर्ता राहुल बनर्जी द्वारा लिखित एक स्टडी में पाया गया कि 3 लाख से अधिक घरों के परिवार के सदस्य हर साल लगभग चार से छह महीने के लिए अलीराजपुर से पलायन करते हैं, जिससे प्रति वर्ष लगभग कमाई में 40 करोड़ रुपये मिलते हैं।
कृषि एक अभिशाप
बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र से पलायन का एक बड़ा कारण कृषि से गिरता रिटर्न है, अलीराजपुर में औसत पारिवारिक भूमि जोत लगभग 0.25 हेक्टेयर है।
यह इंगित करते हुए कि “जनसंख्या का 95.7% हिस्सा कृषक या खेतिहर मजदूर हैं”, बनर्जी कहते हैं, “जमीन ज्यादातर निम्न गुणवत्ता की है, जबकि जंगलों को भारी रूप से नष्ट कर दिया गया है, जिससे लघु वन उपज और पशुपालन से पूरक आय कम हो गई है। विकास योजनाएं ठीक से लागू नहीं की जाती हैं और ज्यादातर भ्रष्टाचार से भरी होती हैं।”
सरकारी स्कूलों की स्थिति इसका प्रमाण है, जिनमें से कई अपनी आधी से भी कम क्षमता पर चल रहे हैं। बिलझर इलाके के मिडिल स्कूल के शिक्षक देवेन्द्र कुमार बैरागी कहते हैं, ”हम माता-पिता को फोन करते हैं और उनसे अनुरोध करते हैं कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें… हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को खेतों से निकालकर स्कूलों में लाना है।”
यहां तक कि जब शिक्षकों की बात आती है, तो अधिकांश अतिथि शिक्षक (गेस्ट टीचर) होते हैं। मध्य प्रदेश अतिथि संकाय पोर्टल के अनुसार, अलीराजपुर जिले में 14,045 शिक्षक पंजीकृत हैं, जिन्हें प्रति माह 5,000 रुपये पारिश्रमिक मिलता है। तलवाड़ कहते हैं कि क्या कोई व्यक्ति 5,000 रुपये पर जीवित रह सकता है? यदि इतनी ही कमाई हो तो क्या कोई शिक्षक अपने विद्यार्थियों में रुचि लेगा?”
आदिवासी और योजनाएं: एक टूटा हुआ पुल
तडवाल सरकार पर जनजातीय संरक्षण के प्रति उदासीनता और अरुचि का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, ”आदिवासी अपनी पहचान और अपनी मूल उपज पर निर्भरता खो रहे हैं।” उनका आरोप है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले बीजों के बढ़ते चलन ने आदिवासियों को गरीब बना दिया है।’
केंद्रीय योजनाओं के बारे में तडवाल अशिक्षा और साधनों के अभाव के कारण जागरूकता की कमी के अलावा अन्य चुनौतियों की ओर भी इशारा करते हैं। वो कहते हैं, ’10 में से पांच किसानों के पास खेतों में, निर्माण स्थलों पर या घरेलू कामों में की गई कड़ी मेहनत के कारण पंजीकरण करने वाले अंगूठे के निशान नहीं हैं। वे अपने अंगूठे या उंगलियों के बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण में विफल होने के कारण कई योजनाओं से बाहर हो जाते हैं। फिर, अधिकांश को उनके नाम, उपनाम, पते और अन्य बुनियादी जानकारी में त्रुटियों के कारण लाभ से वंचित कर दिया जाता है।’
तडवाल कहते हैं कि सरकार को आदिवासियों के दरवाजे तक पहुंचने और आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने की जरूरत है। वो कहते हैं कि किसी भी गरीब और अशिक्षित नागरिक को लंबी कतारों में खड़ा नहीं होना चाहिए। जिन समस्याओं का वो सामना कर रहे हैं, उससे उनको निजात मिलनी चाहिए।
कलेक्टर बेडेकर मानते हैं कि यह प्रक्रिया कठिन है लेकिन “महत्वपूर्ण” भी है। वह कहते हैं, ”हम आदिवासियों तक पहुंचने और हर संभव तरीके से उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं।”
यहां की राजनीति क्या कहती है?
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अलीराजपुर और जोबट दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। उसके उम्मीदवार क्रमशः मुकेश रावत और कलावती भूरिया जीते थे। 2021 में कलावती के निधन के बाद जोबट सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी की सुलोचना रावत ने कांग्रेस के महेश रावत को 6,104 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी।
इस बार सुलोचना के बेटे विशाल रावत जोबट से भाजपा के उम्मीदवार हैं, जबकि भाजपा ने कांग्रेस के निवर्तमान विधायक मुकेश रावत के खिलाफ अलीराजपुर से चौहान नागर सिंह को फिर से मैदान में उतारा है।
विशाल रावत कहते हैं, ‘हमारे आदिवासियों के पास दूसरे हिस्सों की तुलना में पर्याप्त जमीन नहीं है। वे अपनी जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर निर्भर रहते हैं। कोई उद्योग या रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन सरकार कई योजनाओं के माध्यम से इसे बदलने की पूरी कोशिश कर रही है।’
अलीराजपुर में मौजूदा कांग्रेस विधायक मुकेश रावत क्षेत्र में कृषि की कमी और बेरोजगारी को दो प्रमुख मुद्दों के रूप में पहचानते हैं।
वो कहते हैं, ‘अलीराजपुर पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। 18 वर्षों तक सत्ता में रहने वाली भाजपा सरकार ने इस क्षेत्र की उपेक्षा की है।’ मुकेश ने जल शक्ति मिशन का उदाहरण देते हुए कहा कि यह सिर्फ कागज पर है। लोग अभी भी पानी के लिए टैंकरों पर निर्भर हैं।