2024 के लोकसभा चुनाव के तीनों चरणों में मतदान प्रतिशत काफी हद तक निराशाजनक रहा है। लेकिन बांग्लादेश की सीमा से सटे असम के एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र ने 7 मई को शानदार प्रदर्शन किया, जहां अनुमानित 92% तक वोटिंग हुई। ये अब तक हुए चुनाव में किसी एक सीट पर सबसे अधिक है।
असम की धुबरी लोकसभा सीट पर मुस्लिम बहुल सीट है। तीनों चरणों में अनुमानित सामान्य वोटिंग प्रतिशत पहले चरण में 66.1%, दूसरे चरण में 66.7% और तीसरे चरण में 65.58% रहा। असम (जहां सभी 14 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है) में 81.56% मतदान हुआ, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
धुबरी लोकसभा सीट के 11 विधानसभा क्षेत्रों में से दो (गौरीपुर और बिरसिंग-जरुआ) में 94% से थोड़ा ज़्यादा मतदान हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में, धुबरी में 90.66% मतदान हुआ, जबकि पूरे देश में 67.4% मतदान हुआ। भारत के सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में धुबरी का मतदान सबसे ज़्यादा रहा। AIUDF के बदरुद्दीन अजमल ने 718,764 वोट पाकर चुनाव जीत गए। कांग्रेस के अबू ताहिर बेपारी को 492,506 वोट मिले और AGP के ज़ाबेद इस्लाम को 399,733 वोट मिले।
2014 में भी मतदान प्रतिशत रहा था हाई
2014 के लोकसभा चुनाव में धुबरी में 88.48% मतदान हुआ था, जो राष्ट्रीय औसत 66.4% से 22 प्रतिशत अधिक था। बदरुद्दीन अजमल ने कांग्रेस उम्मीदवार वाजिद अली चौधरी को 2,29,730 वोटों के अंतर से हराया था। उन्हें कुल 43.27% वोट मिले। बदरुद्दीन को 5,92,569 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर रहे वाजिद अली चौधरी को 3,62,839 वोट मिले। तीसरे नंबर पर रहे भाजपा उम्मीदवार देबोमय सान्याल को 2,98,985 वोट मिले थे।
परिसीमन से धुबरी में कैसे बड़े बदलाव आए?
असम का सबसे पश्चिमी निर्वाचन क्षेत्र होने के कारण धुबरी में अल्पसंख्यक समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती है। इस सीट में पश्चिम में बांग्लादेश की सीमा से लगे इलाके शामिल हैं। परिसीमन के बाद पड़ोसी बारपेटा के कई मुस्लिम बहुल इलाके को धुबरी का हिस्सा बना दिया गया है।
85 फीसदी बंगाली भाषा मुसलमान
धुबरी लोकसभा सीट पर वर्तमान में 26 लाख से ज़्यादा मतदाता हैं, जो राज्य की सभी 14 लोकसभा सीटों में सबसे ज़्यादा है। कुल मतदाताओं में से 85% से ज़्यादा बंगाली भाषी मुसलमान हैं। धुबरी के बाद दूसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाला क्षेत्र दरांग-उदलगुरी है, जहां 21.87 लाख मतदाता हैं।
धुबरी लोकसभा सीट के अंतर्गत मनकाचर से एआईयूडीएफ विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा (जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है) कि पुराने बारपेटा से 7.84 लाख मतदाता धुबरी में आ गए हैं, जिनमें से 7 लाख से अधिक मुसलमान हैं।
बांग्लादेश से लगती है सीमा
धुबरी बांग्लादेश के साथ 141.9 किलोमीटर की सीमा साझा करता है और इसके 80% मतदाता बंगाली मूल के मुसलमान हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लोगों में नागरिकता की स्थिति को लेकर डर है, जो पिछले दो लोकसभा चुनावों से सबसे अधिक मतदान के कारणों में से एक हो सकता है।
डी वोटर भी रहते हैं धुबरी में
भारत के चुनाव आयोग के अनुसार 1997 में डी-वोटर (संदिग्ध मतदाता) की एक श्रेणी शुरू की गई थी। डी-वोटर वे लोग थे जिनकी नागरिकता संदिग्ध थी या विवाद में थी। दिसंबर 2023 तक नागरिकता को लेकर असम में 2.44 लाख से ज़्यादा डी-वोटर मामले विदेशी न्यायाधिकरणों को भेजे गए थे। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने फरवरी में असम विधानसभा को बताया कि राज्य में 96,987 डी-वोटर हैं।डेटा से पता चलता है कि धुबरी में 27,858 डी-वोटर हैं।
NRC से भी लोगों को डर
कई लोग नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) से भी डरते हैं, जो 2019 से ही स्थगित है। कुछ बंगाली भाषी मुस्लिम मतदाताओं को लगता है कि अगर वे वोट नहीं देंगे, तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एक विशेषज्ञ के हवाले से बताया गया है, “यह कम पढ़े-लिखे लोगों में काफी प्रचलित गलत धारणा है।”
धुबरी में AIUDF और कांग्रेस के बीच मुकाबला
धुबरी में मुकाबला तीन बार के सांसद बदरुद्दीन अजमल और असम कांग्रेस के प्रमुख नेता और सरूपथर से विधायक रकीबुल हुसैन के बीच है। भाजपा की सहयोगी असम गढ़ परिषद (एजीपी) के जाबेद इस्लाम भी मैदान में हैं।