Lok Sabha Elections 2024 West Bengal: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के दौरान पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर मुकाबला काफी दिलचस्प माना जा रहा है। जहां टीएमसी इंडिया गठबंधन से अलग अकेले चुनाव लड़ रही है वहीं कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ गठबंधन का हिस्सा हैं। वहीं बीजेपी की नज़रें इस चुनाव में लोकसभा चुनाव-2019 के प्रदर्शन को बेहतर करने पर हैं।

यहां त्रिकोणीय मुकाबले में सभी राजनीतिक दल राजनीतिक गणित को बेहतर करने के प्रयास में हैं लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट के लिए इण्डियन सेक्युलर फ्रंट–(अब्बास सिद्दीकी की पार्टी)–चुनौती बन सकता है।

क्यों कांग्रेस और लेफ्ट के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है आईएसएफ?

इंडियन सेक्युलर फ्रंट- ISF का गठन पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ नाम के एक दरगाह के एक प्रभावशाली मौलवी अब्बास सिद्दीकी ने दो साल पहले किया था। अब इंडियन सेक्युलर फ्रंट- ISF ने फैसला किया है कि वह कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन से अलग चुनाव लड़ेंगे और अपने मुद्दों को उठाएंगे। ISF का यह फैसला कांग्रेस-लेफ्ट के मुस्लिम वोट को बांट सकता है और इससे गठबंधन को खासा नुकसान हो सकता है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट लगभग 30 प्रतिशत हैं और अहम भूमिका रखता है। कश्मीर और असम के बाद पश्चिम बंगाल देश में मुस्लिम मतदाताओं की दूसरी सबसे बड़ी संख्या कही जाती है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल मुस्लिम वोटों को हासिल करने पर खास ज़ोर देते हैं।

ISF ने उतारे प्रत्याशी

इंडियन सेक्युलर फ्रंट- ISF ने मालदा-उत्तर, जॉयनगर, मुर्शिदाबाद, बारासात, बशीरहाट, मथुरापुर, झारग्राम और सेरामपुर सहित पूरे पश्चिम बंगाल की आठ सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है।

इससे पहले प्रदेश की 42 लोकसभा सीटों में से लेफ्ट ने कांग्रेस के लिए 12 सीटों के अलावा ISF के लिए छह सीटें छोड़ने पर सहमति दी थी। लेकिन अब यह सहमति टूटती नजर आ रही है। ISF ने डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से मजनू लस्कर को मैदान में उतारा है।

इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के विधायक नौशाद सिद्दीकी ने पश्चिम बंगाल में वाम-कांग्रेस और आईएसएफ के बीच गठबंधन की बातचीत टूटने के लिए कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदार ठहराया है।

राजनीतिक टिप्पणीकारों की मानें तो पश्चिम बंगाल में भाजपा रोकने के लिए मुस्लिम वोट टीएमसी पड़ने की संभावना ज़्यादा है। विश्लेषकों का मानना ​​है कि अल्पसंख्यक नेताओं के मुताबिक पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का झुकाव ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी की ओर है। जबकि लेफ्ट-गठबंधन से वह बहुत ज़्यादा प्रभावित नज़र नहीं आते हैं।