नौकरशाहों द्वारा सरकारी नौकरी छोड़ या पूरी कर राजनीति में प्रवेश कोई नई बात नहींं है। पर, ऐसा करने वाले सभी कामयाब ही हों, ऐसा नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव मेंं भी कई नाैकरशाह किस्‍मत आजमाना चाह रहे हैं। कुछ को शुरुआती कामयाबी मिलने की उम्‍मीद दिख रही है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए अभी उम्‍मीद की किरण दिखाई नहीं दे रही।

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के ठीक दो रोज पहले गुप्तेश्वर पांडे जदयू मेंं शामिल हुए हैं। इससे करीब तीन दिन पहले ही उन्‍होंने डीजीपी के पद पर रहते हुए नौकरी से स्‍वैच्‍छिक सेवानिवृत्‍ति ले ली थी। माना जा रहा है कि उन्‍हें टिकट मिलना पक्‍का है। इसी उम्‍मीद में वह चुनावी मौसम में राजनीति में उतरे हैं। उनसे पहलेे इसी तरह जुलाई महीने में रिटायर हुए डीजी सुनील कुमार ने भी जदयू का दामन थामा है। इन दोनों के चुनाव लड़ने की चर्चा गर्म है। सुनील कुमार के गोपालगंज से तो पांडे के बक्सर या शाहपुर से चुनाव लड़ने की अपुष्‍ट खबरेें आ रही हैंं।

दूसरी तरफ डीजीपी पद से बीते साल रिटायर हुए केएस द्विवेदी को लेकर धर्म संकट बना हुआ है। द्विवेेेदी भी चुनाव लड़ने के इच्‍‍‍‍‍छुक हैंं। लेकिन, जदयू मुस्‍लिम मतदाताओं के नाराज होने की आशंका से इनको ऑफर देने से घबरा रही है। बीजेपी में भागलपुर से इन्‍हें उम्‍मीदवार बनाने की संभावनाओं पर विचार हो सकता है, पर अभी इसके कोई ठोस संकेत नहीं हैं। द्विवेदी भागलपुर में 1989 के दंगे के समय बतौर एसपी तैनात थे। तब लोगों ने उनकी भूमिका की काफी तारीफ की थी और सरकार ने अशांत माहौल के बीच ही उनका तबादला कर दिया था। बड़ी संख्‍या मेंं नागरिकों ने इस तबादले का भी विरोध किया था। पर उन दिनों को याद करते हुए बीजेपी इन पर दावं खेलना चाहेगी, यह निश्‍चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। फिर, अभी यह भी साफ नहीं है कि सीट बंटवारे में भागलपुर बीजेपी के खाते में आएगा या जदयू के।

वैसे, भागलपुर के एक और चर्चित एसपी विशुन दयाल राम झारखंड के पलामू से दूसरी दफा भाजपा टिकट पर सांसद बने हैं। राम तब भागलपुर के एसपी हुआ करते थे, जब यहां अंखफोड़वा कांड हुआ था।यह 1980 की बात है।

आईपीएस ललित विजय सिंह ने जनता दल के टिकट पर बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ा और जीते। बाद में केंद्रीय राज्यमंत्री भी बने। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.सत्येंद्र नारायण सिंह के बेटे आईपीएस निखिल कुमार भी औरंगाबाद से चुनाव लड़े और जीते। बाद में राज्यपाल बने। ये दिल्ली पुलिस के आयुक्त रह चुके हैंं।

देश के कैबिनेट सचिव रहे सीनियर आईएएस आरके सिंह रिटायर होने के बाद आरा संसदीय क्षेत्र से दो दफा भाजपा टिकट पर चनाव लड़े और जीते। वह केंद्र में दोनों दफा मंत्री बने। पूूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार भी आईएफएस अधिकारी रहींं। इन्होंने भी नौकरी छोड़ राजनीति का दामन थामा। सासाराम और बिजनौर की सांसद बन केंद्र में मंत्री और देश की पहली महिला लोकसभा की स्पीकर बनी।

मगर सबकी किस्मत ऐसी नहीं है। वरीय आईएएस और भागलपुर के डीएम रह चुके केपी रमैय्या वीआरएस लेकर जदयू टिकट से सासाराम लोकसभा सीट पर चुनाव लड़े थे। मगर इनके हिस्से पराजय आई।

आईएएस पंचम लाल और कन्हैया सिंह भी अपना भाग्य चुनावी अखाड़े में आजमा चुके हैंं। मगर कामयाबी नहीं मिली। भागलपुर के डीएम रहे गोरेलाल यादव भी विधानसभा चुनाव बेगूसराय ज़िले से हारे हैंं।

बिहार के पुलिस महानिदेशक पद पर रहे आरआर प्रसाद तो पंचायत चुनाव में ही शिकस्त खा गए थे। इसके बाद इन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया। पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा कांग्रेस टिकट पर नालंदा संसदीय सीट से 2014 का चुनाव लड़े। मगर इनको हार का सामना करना पड़ा।

डीजीपी पद पर रहे डीपी ओझा ने भी अपनी किस्मत का दांव खेला था। लोकसभा चुनाव में सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार बने और हारे।

डीजी स्तर के आईपीएस अधिकारी अशोक कुमार गुप्ता ने भी 2019 संसदीय चुनाव में पटना साहिब से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़े । मगर विजयश्री नहीं मिल सकी। अब इस विधानसभा चुनाव में उतरने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारियों के साथ क्‍या होता है, यह आने वाला वक्‍त बताएगा।