यही सनी लियोनी का नया पावर डिस्कोर्स है, सत्तात्मक विमर्श है, जो स्त्री लेखन को उसकी समूची देह के साथ परिभाषित करता है और जो अपने वैसा होने पर गर्वित भी है। सनी का नाम जब भी आता है एक सेक्सी सरसराहट का अहसास कराता हुआ आता है। मर्दवादी समाज में उनका रिसेप्शन कुछ इसी तरह का होता आया है। जब उनने बिग बॉस में एंट्री ली तो पूरे देश ने उनको उसी तरह देखना चाहा जिस तरह से वे पोर्न को देखने के आदी रहे लेकिन बहुत बिग बॉस में सनी की उपस्थिति से दर्शकों को निराशा हुई क्योंकि उनको वे हॉट सीन देखने को नहीं मिले, जिनकी उनसे कल्पना की होगी।  

सनी लियोनी डॉट काम’ नाम से एक वेबसाइट भी है जिसको आप खोलना चाहें तो वह आपसे पहले पूछती है कि क्या ‘आप एडल्ट’ हैं और अगर आप ‘ओके’ कर उसे देखने की हिम्मत रखते हैं तो आपको कई झटके लगते हैं। इन्हीं सनी लियोनीजी के बारे में एक अंग्रेजी अखबार ने पिछले हफ्ते आधे से अधिक पेज की कहानी छापी है, जिसमें उनको एक कहानीकार के रूप में पेश किया गया है और जिस तरह से वे अपनी कहानियों के बारे में बात करती हैं, उससे साफ लगता है जिसे हम पोर्न कलाकार समझकर अपनी पाखंडी नैतिकताओं के चश्मे से उनको अश्लील नग्नता का निर्लज्ज प्रदर्शक और कामुकता और सेक्स का प्रचार करने वाली समझने के आदी रहे हैं वे मात्र वैसी नहीं हैं !
हिंदी के पाठक और लेखक ही नहीं उनके लेखन को देख अंग्रेजी के हिंदुस्तानी पाठक तक एक कल्चरल झटका खा सकते हैं, जो पाठक अब तक जिस तरह के तथाकथित ‘स्त्रीत्ववादी’ लेखन को पढ़ने के आदी रहे हैं, सनी लियोनी की कहानियों के बाद यह लेखन बेहद ‘मर्यादित’ और ‘पिछड़ा हुआ’ नजर आना है।
इन दिनों भारत में सबसे ज्यादा पोर्न दर्शक बताए जाते हैं। कहा जा रहा है कि जब से सनी पोर्न क्वीन बनीं है तब से भारत दुनिया का सबसे ज्यादा पोर्न देखने वाला देश बन गया है। इन कहानियों के जरिए पहली बार आप एक ऐसी लेखिका से रूबरू हो रहे हैं जो लेखिका के साथ पोर्न कलाकार भी है और जो अपने पोर्न कला को किसी भी कला से हेठा नहीं समझती और जो जानती है कि मर्द को औरत से क्या चाहिए होता है और कि औरतों को मर्द से क्या चाहिए होता है? और सेक्स और सेक्सुअलिटी के प्रति दोनों का नजरिया किस बिंदु पर अलग होता है। एक अंग्रेजी चैनल से बातचीत में
जब उनसे कहा गया कि भारत में औरतें उनको अपने लिए एक ‘थ्रेट’ समझती हैं तो उन्होंने कहा कि वे ऐसा नहीं सोचतीं। वे मानती हंै कि हर एक परिवार में पति-पत्नी सुख से रहें। ऐसे ही जब बताया गया कि एक नेता ने तो उनको युवाओं के बीच अनैतिकता को फैलाने वाला बताया तो उन्होंने कहा कि वे इससे सहमत नहीं हैं। वे एक कलाकार हैं और उसी के लिए काम करती हैं।
अंग्रेजी न्यूज चैनल के साक्षात्कर्ता के सवाल यों तो किसी ‘भारतीय मर्द’ की तरफ से किए गए सवाल की तरह थे लेकिन एक पल के लिए भी सनी लियोनी विचलित नहीं हुर्इं।
कहने की जरूरत नहीं कि ये सनी लियोनी के रूप में जो स्त्री सामने आई है वह एक नई ‘पावर वूमन’ है जिसे देख अपने नैतिक पाखंड के चलते आप हकला सकते हैं, विचलित हो सकते हैं लेकिन आपके तीखे से तीखे और और निजी किस्म के सवाल से वे विचलित नहीं होतीं। यौनता (सेक्सुअलिटी) के प्रति सजगता और उसकी अभिव्यक्ति स्त्री को इसी तरह से एक दमदार, ‘पावर वूमन’ बनाती है।
हिंदी में इस काट की एक भी लेखिका नजर नहीं आती। कहीं एकाध कहानी में एकाध स्त्री चरित्र अपनी यौनेच्छा को लेकर मुखर नजर आती है अन्यथा हिंदी में ‘इराटिक’ (कामुक-साहित्य) शून्य के बराबर है, जो होगा ‘पीले रैपर’ छाप किताबों में मिलेगा या फिर ‘सविता भाभी’ टाइप की सेक्सी साइटों में मिलेगा। एक जमाने में एक अंग्रेजी अखबार में दिल्ली की एक प्रख्यात सोशलाइट को ‘एगनी आंट’ बनकर किशोर किशोरियों की सेक्स जिज्ञासाओं का समाधन करते देखा गया है या लोग हिंदी फिल्मों में हेलेन के सेक्सी डांस या आज की आइटम गर्ल्स के सेक्सी डांसों को देखने के आदी रहे हैं या इराटिक तत्त्व को अतीत कभी ‘लोलिता’ की ‘अश्लीलता’ आदि पर उठे विवादों से जोड़कर देखा गया है। स्वतंत्र पोर्न या इरोटिका का सर्वथा अभाव ही रहा है।
लेकिन जिस तरह से सनी लियोनी ने पोर्न में जगह बनाई है या फिल्मों में जगह बनाई है या अब लेखन में बनाने जा रही हैं उससे हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी वाले भी कम नहीं चौंक रहे होंगे कि देखो इधर एक ऐसी स्त्री है जो अपने पोर्न के लिए किसी भी अपराधबोध से ग्रस्त नहीं है और न उसे वैसा लिखने से ही परेशान है। वे हर हाल में सहज नजर आती हैं।
यही सनी लियोनी का नया पावर डिस्कोर्स है, सत्तात्मक विमर्श है, जो स्त्री लेखन को उसकी समूची देह के साथ परिभाषित करता है और जो अपने वैसा होने पर गर्वित भी है। सनी का नाम जब भी आता है एक सेक्सी सरसराहट का अहसास कराता हुआ आता है। मर्दवादी समाज में उनका रिसेप्शन कुछ इसी तरह का होता आया है। जब उनने बिग बॉस में एंट्री ली तो पूरे देश ने उनको उसी तरह देखना चाहा जिस तरह से वे पोर्न को देखने के आदी रहे लेकिन बहुत बिग बॉस में सनी की उपस्थिति से दर्शकों को निराशा हुई क्योंकि उनको वे हॉट सीन देखने को नहीं मिले, जिनकी उनसे कल्पना की होगी।
सनी ने बॉलीवुड की दो फिल्में भी कीं जिनमें ‘एक पहेली लीला’ और ‘रागिनी एमएमएस’ कुछ खास हंगामा नहीं मचा पाई। अब उनकी तीसरी फिल्म आ रही है : ‘वन नाइट स्टेंड!’ लगता है कि उनकी नई कहानियां उसी की भूमिका बना रही हैं। उनके कहानी संकलन ‘स्वीट ड्रीम्स’ की एक कहानी का हिंदी में रूपांतरित अंश देखिए।
कहानी का शीर्षक है : ‘सीट नंबर सात ई’ और कहानी इस तरह से शुरू होती है :
‘एक लंबे और पतले आदमी को मैंने अपने सामने खड़ा पाया। वह अपने लगेज को ऊपर के केबिन में रख रहा था। जब वह अपने लगेज को अंदर ठेल रहा था तो मैं उसकी देह पर उभरी हुई मांसपेशियों को कसते हुए देख सकती थी। कुछ उसकी ताकत और कुछ उसके आत्मविश्वास को देख मेरा दिल धक-धक करने लगा।
वह मेरे बाजू में बैठ गया और हमारी आंखें चार हुर्इं। वे एक पल को मिलीं, लेकिन उनका असर गहरा रहा।
उसने अपना लैपटॉप निकाला और तुरंत काम करने लगा। उसके मजबूत हाथ और उंगलियां की-बोर्ड पर मजबूती से चलने लगीं…ज्यों- ज्यों वह दमदार तरीके से तेजी से टाइप करता जाता त्यों त्यों मेरी नब्ज तेज होती जाती और मैं उसमें खोती चली गई’।
उस आदमी ने ऐसा क्या कि मैं उस पर मरती चली गई…
( एक अंग्रेजी अखबार में 24अप्रैल, 2016 को छपे अंश का हिंदी रूपांतर। )
लेखिका ने एकदम सिडक्टिव सीन बनाया है। ऐसा लगता है ‘सीट नंबर सात ई’ न हो सेक्स की प्रतिमान हो, जिस पर किसी को बैठा देख नायिका स्वयं सेक्सोत्तेजित हो चली हो।
यह कहानी अंग्रेजी में देसी इरॉटिक कथा की शुरूआत करती कही जा सकती है यानी यह एक तरह की सेमी पोर्न कथा है! हम आप इस कथा को उसके इरॉटिक (कामुकता जगााने वाले) एंगिल को आसानी से पढ़ सकते हैं और लेखिका को बोल्ड लेखिका कह सकते हैं लेकिन लेखिका को यह सब लिखना एकदम सहज नजर आता है।
मुख्यधारा के अंग्रेजी लेखन और हिंदी लेखन में इरॉटिक तत्त्व बहुत महत्त्व नहीं रखता लेकिन अब कहा जा सकता है इन कहानियों के आने से एक किस्म के इरॉटिक लेखन की शुरुआत हो रही है भले अंग्रेजी इलीट सनी को लेखिका दरजा न दे। लेकिन हमें सनी को उनका वाजिब हक देना चाहिए। वे पोर्न कलाकार हैं तो हैं। ऐसा कलाकार होना भी एक पेशा है और वे उसकी अनूठी ब्रांड हैं और अपने वैसा होने के प्रति वे बेहद सजग भी हैं। ऐसी सजग लेखिका को आप आसानी से सकेर कर बाहर नहीं कर सकते।
हमें मानना होगा कि वे एक ऐसी नई स्त्री हंै जो अपने हर काम के प्रति बेहद चौकन्नी हैं यानी कि वे ‘बिलल्ली’ नहीं हैं। वे जानती हैं वे क्या कर रही हैं? वे जानती हैं कि वे एक ब्रांड हैं और हर ब्रांड को अपने आपको हर दिन नए सिरे से परिभाषित करना होता है वर्ना बाजार में पिट जाता है। वे जानती है कि वे किसी उद्यमी की तरह हैं जिसको बार बार अपने प्रोडक्ट को विविधिता के साथ और विविध पैकेजों में पेश करना होता है। वे जानती हैं कि हॉलीवुड से लेकर बालीवुड तक के विराट मनोरंजन उद्योग की प्रोडक्ट हैं और एक हद तक उसकी ड्राइवर भी हैं। वे जब कहानीकार बन रही हैं तो अपने उसी इरोटिका के ब्रांड को आगे कर रही हैं जिसमें वे माहिर हैं।
इन कहानियों का माध्यम भी नया है। उनकी ये कहानियों रात के दस बजे चुनिंदा मोबाइलों पर एक खास एप के जरिए पहुंचेगी। कहानियों के पहुचने की टाइमिंग भी ऐसी है कि आप आपने मोबाइल पर पढ़कर ‘स्वीट ड्रीम्स’ का मजा ले सकते हैं।
कहानियों का सीधे मोबाइल में देना भी एक नई तरकीब है जो एक दम पर्सनल पाठक बनाने की तरह है। सोचिए रात के दस बजे आपके मोबाइल पर एक इरॉटिक कहानी अपने आप आने लगे और सोने से ऐन पहले आप उनको पढें।
यह है कहानी का वह नया इलाका जिसका टाइम और मीडिया एक दम पर्सनल है यानी सीध्ी ‘बेड टाइम स्टोरीज’ है।
एक सचमुच की स्त्री एक सचमुच की पोर्न आर्टिस्ट अपनी कलम से ‘इरॉटिका’ विधा की कहानी लिख रही हैं। इसकी टाइमिंग सटीक है और मीडियम भी सटीक है। यह एकदम नया और एकदम पर्सनल है जिसे शायद आप साझा भी कर सकें। अंग्रेजी में इरॉटिका लेखन विधा काफी चलती है लेकिन हिंदी में अभी तक हर आदमी उपर से ब्रह्मचारी बना रहता है; (भले अंदर से भयानक कुंठाओं और ग्रंथियों का मारा हो)ऐसे इरॉटिक को देखकर वह पहले बकता है, चौंकता है और फिर अचानक नैतिक दारोगा बनकर इरॉटिक लेखन का विरोध करता है लेकिन मन ही मन वह उसे पसंद करता है।

हम याद कर सकते हैं कि कुछ बरस पहले किस तरह एक विधान सभा के विधायक अपने स्मार्ट मोबाइलों पर विधान सभा सत्र कै दौरान ही पोर्न देखते पकड़े गए थे और यह बात तो छिपने वाली है ही नहीं कि दुनिया में अगर सबसे ज्यादा पोर्न साइटें कहंीं देखी जाती हैं तो भारत में देखी जाती है और यहां भी पोर्न साइटों को देखने वालों में सबसे ज्यादा वे लोग हैं जो साठ की उम्र के पार के हैं। जो देश पोर्न का इस कदर भूखा हो उसमें किसी हार्डकोर पोर्न कलाकार का होना आपने आप में एक आफत है।
जो लोग हार्ड कोर पोर्न या इरॉटिका को अपनी मर्दवादी नैतिक सत्ता के लिए चुनौती मानते हैं वे शायद नहीं जानते कि सनी लियोनी की इस तरह की कहानियां उस साहित्य के आगे कुछ नहीं है जो अपने यहां हिंदी में रीतिकाल में लिखा गया। जिस तरह की सेक्सुअलिटी रीतिकाल में व्यक्त हुई उसके आगे सनी की इरॉटिका से युक्त कहानियों पानी भरती हैं। सनी जिस तरह से अपनी औरत को अपनी देह को अपने पोर्न में या कहानी में डिफाइन करती है, हिंदी की रीतिकालीन कविताओं में स्त्री देह और रचनात्मक इरॉटिका कहीं अधिक आकर्षक है।
हां, एक फर्क है। सनी के इरॉटिका में देह की लीला अधिक है, जबकि रीतिकाल की अनेक कविताओं में स्त्री की देह के अलावा मन भी एक्टिव दिखता है यानी वहां सिर्फ सेक्स नहीं है बल्कि रति और शृंगार का मुक्त उत्सव भी है।
स्त्री देह की बात करना अक्सर हिंदी समाज में अनेक भृकुटियों को तान देता है लेकिन रीतिकाल में स्त्री कभी कभी अपनी देह का जैसा स्पष्ट कथन अपने आप करती है वैसा तो सनी लियोनी तक नहीं करतीं।
स्त्री की यौनता का मुक्त बखान जो अंग्रेजी में इरॉटिका बन जाता है और हिंदी में नखशिखवर्णन कहलाने लगता है अरसे तक ‘विक्टोरियाई नैतिकता’ के दबाव में दबा- दबा रहा है। अंग्रेजों के आने से पहले अपने समाज में उस तरह की वर्जनाएं नहंीं थीं जिस तरह की अंग्रेजों के जमाने में लागू की गर्इं, जिनको लागू करने के लिए हमारे अपने देसी उच्च वर्ग ने अंग्रेजों को बढ़कर सहयोग दिया। स्त्री की देह सात परदों में बंद कर दी गई। ऐसे दमन के अवशेष अब तक चल आते हैं वह चाहे मुंबई की बार डांसरों को लेकर की जाती शासकों की नकली नैतिक चिंताओं में नजर आएं या जगह जगह स्कूलों कालेजों में लागू करने के लिए घोषित किए जाने वाले ड्रेस कोडों में नजर आएं।
अंग्रेजों की विक्टोरियाई नैतिकता के दबदबे से पहले के वक्त में सेक्स पब्लिक डिस्कोर्स का सहज हिस्सा था, उस पर बात करना वर्जित नहीं था। इसका यहां सिर्फ एक प्रमाण देना काफी होगा ताकि हम जान सकें कि जो सनी लियोनी जी कर रही हैं वह कोई अजूबा नहीं है बल्कि वैसा बहुत पहले से अपनी परंपरा में रहा है।
प्रसंग इस प्रकार है: आलम नाम के एक कवि,औरंगजेब के शासनकाल में उसके बेटे मुअज्जम के पास रहा करते थे। एक बार दोहे की पहली लाइन लिखकर उन्होंने अपनी पगड़ी में बांध ली कि आगे कभी दूसरी लाइन लिखेंगे। एक दिन उन्होंने वही पगड़ी एक रंगरेजिन शेख को रंगने के लिए भेज दी लेकिन उस कागज को निकालना भूल गए जिसमें दोहे की पहली लाइन लिखकर रख दी थी। पगड़ी धोते समय शेख को वह लाइन दिखी जो इस प्रकार थीं :
‘ कनक छरी सी कामिनी, काहे को कटि छीन!
शेख ने उसके नीचे यह लाइन लिखकर दोहा पूरा कर दिया :
‘कटि को कंचन काटि के, कुचन मध्य धरि दीन !’
जब आलम को पगड़ी मिली तो वे दोहे की दूसरी लाइन देख शेख की प्रतिभा पर मुग्ध हो गए। वे शेख के घर गए और उसे एक आना रंगाई और एक हजार दोहे की पूर्ति के लिए दिए!
किस्से को छोड़िए, जरा रंगरेजिन शेख की काव्यात्मक प्रतिभा को देखिए कि पहली लाइन के भाव के हिसाब से दूसरी लाइन से स्त्री देह यष्टि को एकदम निराले तरीके से परिभाषित कर दिया। ऐसी प्रतिभा देख स्वयं आलम अपना दिल उसे दे बैठे।
एक से एक ‘वासकसज्जाएं’ रीतिकाल में भरी पड़ी हैं, सनी लियोनी तो उनके आगे कुछ भी नहीं। सनी लियोनी को देख चकित होने वालों को पहले ‘रीतिकाल’ को पढ़ लेना चाहिए जो बिना किसी अपराधबोध के ‘सैक्सुअलिटी’ को सेलीब्रेट करता है। सनी लियोनी के पोर्न को या उनकी इरॉटिक कहानियों को हमें इसी परंपरा में देखना चाहिए। सनी की साइट में जिस तरह की पोर्न मुद्राएं हैं वे खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर उत्कीर्णित मैथुन मुद्राओं के आगे पानी मांगती हैं।
इन मुद्राओं को देख जुगुप्सा नहीं पैदा होती जबकि सनी लियोनी की कुछ मुद्राओं को देख जुगुप्सा ही महसूस होती है। इसलिए सनी लियोनी के इरॉटिक को देख चौंकने की जगह हमें उनको अपने इतिहास की यौन परंपरा में समझना चाहिए। ०