जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पिछले तीन हफ्ते से न केवल देश, बल्कि दुनिया भर में अचानक सुर्खियों में आ गया है। विवाद की शुरुआत संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुुरु के मृत्यु-दिवस को शहादत दिवस के तौर पर नौ फरवरी को आयोजित एक कार्यक्रम से हुई। इसका आयोजन डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से किया गया था। कश्मीर के आतंकी अफजल गुरु को संसद के ऊपर 2001 में हुए हमले में दोषी माना गया था और उसे 9 फरवरी 2013 को फांसी दे दी गई थी।

हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुमति देने के बाद कार्यक्रम शुरू होने के कुछ मिनट पहले ही इसे निरस्त कर दिया था। लेकिन, कुछ टीवी चैनलों ने दिखाया कि मौके पर मौजूद छात्रों ने वहां देश-विरोधी नारे लगाए गए थे। आरोप लगा कि इसमें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित कई छात्र भी शामिल थे। बाद में भाजपा सांसद महेशी गिरि की ओर से लिखाई गई रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह के आरोप में कन्हैया कुमार को परिसर के अंदर जाकर गिरफ्तार कर लिया था। कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के विरोध और समर्थन में सोशल साइटों से लेकर उपलब्ध दूसरे तमाम माध्यमों पर आवाजें उठाने की होड़ सी लग गई। फिलहाल, घटना की वास्तविकता की जांच चल रही है। और मामला अदालत में विचाराधीन है।

इस संदर्भ में कुछ और सवाल हैं, जो जानकारों की तरफ से उठाए जा रहे हैं। कहा यह जा रहा है कि जनेवि के साथ विवादों का नाता कोई नया नहीं है। इसलिए पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं, जब विश्वविद्यालय का परिसर विवादों का अखाड़ा बना है। लेकिन उसे लेकर उतनी व्यापक चर्चा नहीं हुई, जितनी इस बार हो रही है। एक आरोप यह भी है कि अफजल गुरु की याद में उसकी पहली और दूसरी बरसी पर भी कार्यक्रम आयोजित हुए थे। इस मामले की तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं गया ? हो सकता है कि परिसर के भीतर ही कुछ चर्चा वगैरह होकर यह खत्म हो गया हो। आज के संदर्भ में देखें तो इसकी भी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? दावा यह भी किया जा रहा है कि 2011 में छात्रों के एक समूह ने महिषासुर दिवस का आयोजन किया था, जिसमें हिंदुओं की आराध्या दुर्गा देवी के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया गया। इस आयोजन में भाजपा के सांसद उदितराज भी शामिल हुए थे। हालांकि, उनका कहना है कि वे तब भाजपा में नहीं थे।

भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का दावा है कि परिसर में कुछ वामपंथी छात्र संगठनों ने 6 अप्रैल, 2010 को नक्सली हमले में शहीद छिहत्तर सीआरपीएफ के जवानों के शहीद होने को विजय दिवस के तौर पर मनाया था। इस बारे में आइसा नेता और जनेवि छात्र संगठन की पूर्व अध्यक्ष सुचेता डे ऐसे किसी कार्यक्रम के आयोजन का खंडन कर चुकी हैं। जनेवि छात्र संघ के संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा का दावा है कि 2015 में छात्र संघ की बैठक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से यह प्रस्ताव लाया गया कि ‘जम्मू-कश्मीर’ भारत का अभिन्न अंग है। इस प्रस्ताव के समर्थन में 11 मत और विरोध में 17 मत पड़े। सभी विरोधी सत्रह मत वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े सदस्यों के थे। छात्र संघ के मौजूदा महासचिव रामा नागा का कहना था कि सौरभ शर्मा लगातर झूठ फैला रहे हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है। इनके पास कहीं-कोई सबूत नहीं है, बस दुष्प्रचार करना रह गया है।

सौरभ ने यह भी दावा किया कि 2004 में छात्रसंघ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई की तरफ से छात्र संघ में चीन द्वारा अरुणाचल को अपने नक्शे में दिखाए जाने के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने की मांग की गई थी। दोनों संगठनों ने यह प्रस्ताव रखा भी, लेकिन वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े सदस्यों ने इसे पारित नहीं होने दिया। आइसा नेता और जनेवि छात्रसंघ के निवर्तमान अध्यक्ष आशुतोष इस हकीकत को सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि यह एकदम बेबुनियाद बात है। उन्होंने कहा कि कोई दस्तावेज हो तो उन्हें पेश करना चाहिए।
अदूरदर्शिता और लापरवाही के और भी कई मामले हैं, जो विवि परिसर की छवि को दागदार करते रहैं। कई बार सार्वजनिक कारणों तो कई बार निजी झगड़ों की वजह से परिसर का अमन-चैन भंग हुआ है। अगस्त 2013 में ‘स्कूल आफ लैंग्वेज’ में एक छात्र ने साथी छात्रा पर एकतरफा प्यार में कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला किया। फिर उसने सल्फास खाकर चाकू से अपनी गर्दन काट ली थी। युवक की मौत हो गई थी। ०(रविवारी डेस्क)