अगर राजनीतिक दल स्वच्छ पेयजल को चुनाव का मुद्दा बनाते हैं तो यह एक आदर्श स्थिति है, क्योंकि यह सभी लोगों की सेहत और जीवन से जुड़ा मामला है। लेकिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जिस तरह एक बार फिर यमुना के पानी के प्रदूषित होने और इससे लोगों के सामने पैदा खतरे का मुद्दा और उस पर विवाद उठा है, वह नई बात नहीं है। गौरतलब है कि यमुना दिल्ली में हरियाणा से होकर आती है और दिल्ली में पीने के पानी का एक बड़ा स्रोत है।
कुछ दिन पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा सरकार पर यमुना के पानी में जहर मिलाने का आरोप लगाया था। दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने भी इसी तरह के आरोप लगाए थे। हरियाणा में भाजपा की सरकार है। इसके अलावा, दिल्ली में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। ऐसे में स्वाभाविक ही यह आरोप एक विवाद का विषय बन गया और चुनाव आयोग ने भी इस मसले पर अरविंद केजरीवाल से जवाब मांगा। जाहिर है, दिल्ली के बाशिंदों के लिए जिन अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बात होनी थी, वहां अब फिलहाल बहस इस बात पर है कि इस मामले में कौन पक्ष सच बोल रहा है!
आए दिन पानी की कमी जैसी चिंता भी जाहिर की जाती रहती है
दिल्ली में फिलहाल आम आदमी पार्टी और केंद्र में भाजपा की सरकार है। देश की राजधानी होने के नाते उम्मीद की जाती है कि यहां कम से कम बुनियादी जरूरतों के मसले पर सरकारी तंत्र इतना सजग होगा कि स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता कोई समस्या नहीं बनेगी। मगर यह छिपा नहीं है कि अक्सर किसी न किसी इलाके से प्रदूषित पानी की आपूर्ति की शिकायतें आती रहती हैं।
जेपीसी में वक्फ पर विवाद, विपक्ष की सभी सिफारिश अस्वीकार
कई बार पानी की गुणवत्ता इस स्तर की पाई जाती है कि उसे पीना सेहत के लिए खतरनाक होता है। आए दिन पानी की कमी जैसी चिंता भी जाहिर की जाती रहती है। दूषित पेयजल की शिकायत सामने आने के बाद शायद ही कभी इस समस्या के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की जाती है। कोई तात्कालिक उपाय करने के बजाय इसका स्थायी समाधान निकालने की कोशिश नहीं होती। मगर चुनाव नजदीक आने के साथ ही सभी राजनीतिक दल यमुना के पानी के प्रदूषित होने, इसकी वजह से पेयजल की स्वच्छता प्रभावित होने और उसके जोखिम को मुद्दा बनाने लगते हैं।
यमुना का पानी दूषित होने के कारण जगजाहिर रहे हैं
विडंबना यह है कि जैसे ही चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाती है, सरकार बन जाती है, तब सब कुछ पहले की तरह चलने लगता है। यमुना का पानी दूषित होने के कारण जगजाहिर रहे हैं। जो पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान यमुना की सफाई और उसे एक स्वच्छ नदी बनाने के वादे करती हैं, बाद में उनके लिए यह सवाल गौण हो जाता है। सरकार इस नदी की सफाई के लिए आए दिन अपना सरोकार जताती है, उस पर धन खर्च किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बीते कई दशक से यमुना सिर्फ एक चुनावी मुद्दा बन कर रह जाती है और बाकी समय दिल्ली के लोग आमतौर पर पीने के साफ पानी को लेकर हर वक्त एक आशंका से गुजरते रहते हैं।
पिछले बड़े हादसों से नहीं लिया गया सबक, धार्मिक आयोजन में भीड़ को लेकर बरती गई लापरवाही
जिन राज्यों से यमुना गुजरती है, उनके अपने तर्क हैं। मगर किसी के लिए यह सवाल महत्त्वपूर्ण नहीं है कि इतने लंबे वक्त और अरबों खर्च किए जाने के बावजूद यमुना में अमोनिया का स्तर चिंताजनक क्यों हो जाता है, इसका पानी नहाने तक के लिए सुरक्षित क्यों नहीं बन सका। आज भी अगर यमुना सिर्फ एक चुनावी मुद्दा ही बनी हुई है तो इस मसले पर जताई जाने वाली चिंताओं के प्रति राजनीतिक पार्टियों की इच्छाशक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है।