इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जब हादसे की पृष्ठभूमि बन रही होती है, तब सरकारी महकमे नींद में खोए रहते हैं या फिर किसी परोक्ष कारण से उसे नजरअंदाज करते रहते हैं और जब कोई बड़ी त्रासद घटना हो जाती है तब वे जरूरत से ज्यादा सक्रिय दिखते हैं। अफसोसनाक यह भी है कि जो इमारतें अपनी बुनियाद में ही हादसे की जमीन साथ लिए होती हैं, उनके निर्माण के समय या फिर बाद में उनमें नियम-कायदों को ताक पर रख कर संचालित गतिविधियों की इजाजत दी जाती है और जब वहां हुए हादसे में जानमाल के नुकसान का मामला तूल पकड़ लेता है तब आनन-फानन में दिशाहीन कार्रवाई करने का दिखावा किया जाता है।

हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की नीतियों की सख्त आलोचना की

यह एक तरह से गलत तरीके से या लेनदेन आधारित लाभ पहुंचाने की अघोषित व्यवस्था है, जिसके नतीजे में कोई त्रासदी सामने आती है! राजधानी दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में बरसात का पानी भर जाने की वजह से भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले तीन विद्यार्थियों की मौत की घटना इसी का उदाहरण है। इस मसले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की नीतियों की सख्त आलोचना की और कहा कि आप बहुमंजिला इमारतों की मंजूरी दे रहे हैं, लेकिन नाली की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि जब ‘रेवड़ी बांटने की संस्कृति’ के कारण कर संग्रह नहीं होता है तब ऐसी त्रासदियां होना स्वाभाविक है।

जाहिर है, अदालत ने एक तरह से समस्या के कुछ बुनियादी कारणों की बात की, जिन पर अगर समय रहते गौर किया गया होता तो शायद हादसे की नौबत नहीं आती और न विद्यार्थियों की जान जाती। यह छिपा नहीं है कि जब इमारतें बन रही होती हैं, तब उसमें नियम-कायदों को ताक पर रख कर भी अपनी सुविधा के मुताबिक निर्माण करा लिया जाता है। इस बात की फिक्र नहीं की जाती है कि यही लापरवाही भविष्य में किसी बड़ी त्रासदी की वजह बन सकती है। इसमें सरकार के संबंधित महकमों के अधिकारियों की भी मिलीभगत या अनदेखी होती है, जो ऐसे निर्माणों को रोकते नहीं या फिर कई बार नियमों के विरुद्ध इजाजत दे देते हैं।

हैरानी की बात यह है कि जब इन वजहों से कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है और उस पर जनआक्रोश उभर जाता है, तब पूरी तेजी से कार्रवाई होती देखी जाती है। इस क्रम में कई बार दिखावे की कार्रवाई करके असली जिम्मेदार लोगों को एक तरह से बचाने की कोशिश की जाती है। राजेंद्र नगर के बेसमेंट में हुए हादसे के बाद वहां सामने की सड़क से गुजरते एक वाहन चालक को बिना देरी किए गिरफ्तार किया गया, मगर उन अधिकारियों के खिलाफ इतनी ही तेज कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा गया, जिनकी अनदेखी, लापरवाही या फिर इजाजत से बेसमेंट में पुस्तकालय चल रहा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पहलू पर भी सवाल उठाया है।

अब दिल्ली सरकार की ओर से यह कहा गया है कि राजधानी में संचालित कोचिंग केंद्रों को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाएगा। उपराज्यपाल ने भी शहर में कोचिंग सेंटरों को विनियमित करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की। सवाल है कि अब तक कोचिंग सेंटरों की गतिविधियों को किस आधार पर सुरक्षा संबंधी जरूरी उपायों पर अमल करने की बाध्यता से बख्शा गया था और सरकारों की नींद किसी बड़ी त्रासदी के बाद ही क्यों खुलती है!