पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक मेडिकल छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जहां इस अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई से लेकर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए था, वहां वे अपना पल्ला झाड़ने के लिए पीड़ित को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करती दिखती हैं। गौरतलब है कि दुर्गापुर में कालेज के प्रवेश द्वार के पास से अगवा करके कुछ लोगों ने छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया।
यह घटना पुलिस और कानून-व्यवस्था की लाचारगी का ही सबूत है कि आपराधिक तत्त्वों ने एक तरह से बेखौफ होकर इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। अफसोसनाक यह है कि कानून-व्यवस्था की इस स्तर की नाकामी के बाद राज्य की मुख्यमंत्री को जहां पहले जिम्मेदारी लेने और राज्य के पुलिस तंत्र को सवालों के कठघरे में खड़ा करना चाहिए था, वहां उन्होंने कहा कि छात्राओं को देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए।
अपराधियों के दुस्साहस को और मजबूत करता है मुख्यमंत्री का रवैया
सवाल है कि एक जघन्य अपराध के बाद ममता बनर्जी राज्य में कानून-व्यवस्था की हकीकत को स्वीकार करने के बजाय पीड़ित को ही जिम्मेदार बता कर क्या हासिल करना चाहती हैं। क्या एक राज्य की मुख्यमंत्री होने के बावजूद वे यह स्वीकार कर रही हैं कि उनके शासन में रात के समय बलात्कार और अन्य जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले लोगों पर पुलिस या कानून की कोई लगाम नहीं होती? दरअसल, महिलाओं को देर रात घर से निकलने पर अपराधियों से खतरा होने को लेकर ममता बनर्जी का बयान न केवल लापरवाही से भरा है, बल्कि अपराधियों के दुस्साहस को और मजबूत करता है।
पिछले कुछ समय में पश्चिम बंगाल में बलात्कार की लगातार कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनसे राज्य सरकार पर सवाल उठे हैं। मगर जिम्मेदारी लेने के बजाय सरकार आक्रामक होकर अपना बचाव करने की कोशिश करती है। इस क्रम में पीड़ित पर ही सवाल उठाने की प्रवृत्ति बेहद गैरजिम्मेदाराना है। किसी दुखद घटना का सबक यह होना चाहिए कि वैसी घटनाओं को रोकने के लिए हर स्तर पर पुख्ता इंतजाम किए जाएं। मगर ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में महिलाओं की सुरक्षा के सवाल से सरकार खुद ही पल्ला झाड़ने में लगी है।
मुख्यमंत्री के रूप में शासकीय गंभीरता और क्षमता को कठघरे में खड़ा करता है बयान
इतनी संवेदनशीलता किसी भी इंसान के भीतर होनी चाहिए कि वह बलात्कार और उसके बाद पीड़ित की मन:स्थिति की गंभीरता को समझे। ऐसे मामलों में व्यक्ति के भीतर मानवीयता के मूल्यों की समझ का भी अंदाजा लगता है। मगर न केवल एक महिला, बल्कि राज्य की मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता बनर्जी ने सामूहिक बलात्कार की पीड़ित की मनोदशा और पीड़ा को समझना जरूरी नहीं समझा।
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बयान का विरोध होने पर वे भले ही सफाई में अपनी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया बताएं, लेकिन हकीकत यही है कि उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री पद पर होने और अपनी कोई जवाबदेही का एहसास करने के बजाय कानून-व्यवस्था को लागू करने में नाकामी का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की कोशिश की। राजनीति में अपने विपक्षियों का सामना या उनसे टकराव एक राजनीतिक तकाजा हो सकता है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले जघन्य अपराधों के मामले में अगर इस तरह की लापरवाही से भरी प्रतिक्रिया दी जाती है, तो यह मुख्यमंत्री के रूप में उनकी शासकीय गंभीरता और क्षमता को भी कठघरे में खड़ा करता है।