कोई ज्यादा समय नहीं हुआ जब उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए दावा किया था कि राज्य में अपराधियों पर अंकुश लगा दिया गया है। जघन्य अपराध के मामलों में काफी कमी आई है। मगर सरकार के दावों के बरक्स राज्य में अपराधी फिर बेखौफ हो गए हैं। इसका ताजा उदाहरण गाजियाबाद के नाहल गांव में दिखा, जहां एक वांछित अपराधी को पकड़ कर ले जा रहे नोएडा पुलिस के दल पर अपराधी के साथियों ने जानलेवा हमला किया। इस दौरान हुई गोलीबारी में जहां एक सिपाही की मौत हो गई, वहीं कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। पिछले दिनों गाजीपुर में भी बेलगाम बदमाशों ने युवक पर दिनदहाड़े गोलियां चलाईं।

कोई दोराय नहीं कि गाजियाबाद से लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक जिस तरह अपराध बढ़े हैं, उससे राज्य की कानून व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है। चौबीस घंटे में चौदह लोगों की हत्या से ऐसा प्रतीत होता है कि अपराधियों में कानून का डर खत्म हो गया है। यह कैसा कानून का राज है, जहां अपराधी पुलिस पर गोलियां चला रहे हैं? ऐसे में स्वाभाविक रूप से विपक्ष को भी सवाल उठाने का अवसर मिल गया है।

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किसी भी राज्य में आम नागरिक अगर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगें, तो यह शासन के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। उसका दायित्व है कि वह कानून व्यवस्था इस तरह लागू करे, जिससे अपराध करने से पहले कोई दस बार सोचे। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपराध बर्दाश्त न करने की सख्त नीति बनाने का दावा किया था। इस क्रम में भू-माफिया और आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कार्रवाइयां होती दिखीं।

सीसीटीवी से निगरानी और पुलिस की सक्रियता बढ़ा कर अपराधियों पर शिकंजा कसा गया। मगर राज्य में अपराधी फिर सिर उठाने लगे हैं। नतीजा, कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने और अपराधियों पर नकेल कस कर अपराध खत्म करने का दावा करने वाली सरकार सवालों के घेरे में है। ऐसे में राज्य सरकार अगर अपने दावे को लेकर ईमानदार है, तो उसे जमीनी स्तर पर भी ठोस नतीजे दिखाने पड़ेंगे।