जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद से दावा किया जाता रहा है कि घाटी में आतंकवादी गतिविधियां कम हो गई हैं। दहशतगर्द केवल कुछ इलाकों तक सिमट गए हैं। मगर थोड़े-थोड़े समय पर जिस तरह आतंकवादी अपनी रणनीति बदल कर कभी सामान्य नागरिकों, तो कभी सुरक्षाबलों के काफिले पर हमला करने में कामयाब हो जा रहे हैं, उसे देखते हुए सरकार के दावे पर यकीन करना मुश्किल होता है। शनिवार रात को भी दो जगहों पर आतंकी हमले हुए। शोपियां में एक स्थानीय भाजपा नेता की गोली मार कर हत्या कर दी गई।

महीने भर के भीतर हमले की कई घटनाएं हुईं

पहलगाम में राजस्थान से गए एक पर्यटक दंपति को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। इसी महीने वायुसेना के एक काफिले पर हमला कर एक सैनिक की हत्या कर दी गई। उसमें पांच अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। करीब महीने भर के भीतर बाहरी लोगों को निशाना बना कर और सैनिक काफिले पर घात लगा कर हमले की कई घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में स्वाभाविक ही पूछा जा रहा है कि आखिर घाटी में आतंकवाद को समाप्त करने के तमाम दावे खोखले क्यों साबित हो रहे हैं। इस तरह कब तक निर्दोष लोग और सैनिक दहशतगर्दों का शिकार बनते रहेंगे।

आतंकियों पर लगाम कसने के लिए कड़ी सख्ती बरती गई

पिछले नौ-दस वर्षों से कश्मीर घाटी में निरंतर सघन तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। दहशतगर्दों को मदद पहुंचाने वालों की पहचान कर उनके बैंक खाते बंद किए गए और उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया है। सीमा पार से घुसपैठ करने वालों पर चौकस नजर रखी जाती है। सड़क के जरिए पाकिस्तान से होने वाली तिजारत बंद है। नोटबंदी के बाद दावा किया गया था कि इससे आतंकवादी संगठनों तक वित्तीय मदद पहुंचनी बंद हो जाएगी। विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद लंबे समय तक घाटी में सैन्य सक्रियता बनी रही। खुफिया एजंसियां पहले से काफी चाक-चौबंद हुई हैं।

इन सबके बावजूद अगर आतंकी संगठन घाटी में न सिर्फ सक्रिय हैं, बल्कि अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब भी हो रहे हैं, तो सरकार की रणनीति और सुरक्षाबलों की तैयारियों पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। उन तक किस तरह वित्तीय मदद और गोली-बारूद, हथियार जैसे साजो-सामान पहुंच पा रहे हैं, कैसे वे सैन्य गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर ले रहे हैं, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

बीते कुछ वर्षों में चिंता पैदा करने वाले तथ्य भी उजागर होते रहे हैं कि स्थानीय युवाओं में आतंकवाद की तरफ रुझान बढ़ा है। कुछ शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी दफ्तरों में ऐसे लोगों की पहचान की गई, जो कश्मीरी युवाओं को हथियार उठाने के लिए उकसाते थे। दो वर्ष पहले खुद केंद्रीय गृहमंत्रालय ने माना था कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कश्मीरी युवाओं की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता बढ़ी है। दहशतगर्द ऐसे स्थानीय लोगों में बंदूक के बल पर दहशत भरने में कामयाब हो रहे हैं, जो सरकारी योजनाओं और रणनीतियों में किसी भी तरह से मदद करते हैं।

शोपियां में ऐजाज अहमद नाम के जिस भाजपा नेता की हत्या कर दी गई, वह पहले वहां का सरपंच रह चुका था। इसी तरह, कई कश्मीरी सैनिकों और पुलिस कर्मियों को भी निशाना बना कर मारा जा चुका है। फिर जिस राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार ही पर्यटन है, वहां पर्यटकों पर हमला बुरा असर ही डालेगा। इन घटनाओं से सबक लेते हुए आतंकवाद से निपटने के लिए नई रणनीति बनाने की जरूरत है।