आतंकवादी अब कश्मीर के साथ-साथ फिर से जम्मू क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाने लगे हैं। पिछले करीब डेढ़ दशक के दौरान सुरक्षा बलों के आतंकवाद के खिलाफ विशेष अभियान के बाद जम्मू क्षेत्र अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा। आतंकी खतरे के लिहाज से जम्मू को काफी हद तक सुरक्षित माना जाने लगा था। मगर पिछले दो-तीन माह से इस क्षेत्र में आतंकवादी हमले बढ़ने लगे हैं। डोडा जिले में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के एक कैप्टन सहित चार जवानों की शहादत इसी का उदाहरण है। इस इलाके में पिछले तीन सप्ताह के भीतर सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की यह तीसरी बड़ी घटना है। आतंकी अब जम्मू में लक्षित हमलों को भी अंजाम दे रहे हैं। पिछले माह रियासी जिले में एक बस पर आतंकी हमले में नौ तीर्थयात्रियों के मारे जाने की घटना इनमें से एक है।
हाल में ज्यादातर घटनाएं सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान के दौरान हुई
जम्मू क्षेत्र में बढ़ती आतंकी घटनाएं सुरक्षा बलों और शासन-प्रशासन के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इस आतंकी सक्रियता के पीछे सीमा पार बैठे आतंकी सरगनाओं की सोची-समझी चाल है। वे किसी भी सूरत में जम्मू-कश्मीर में स्थायी तौर पर अमन-चैन बहाल नहीं होने देना चाहते। डोडा जिले में मुठभेड़ की यह ताजा घटना कठुआ जिले के दूरस्थ माचेड़ी वन क्षेत्र में सेना के गश्ती दल पर आतंकी हमले के कुछ ही दिन बाद हुई है, जिसमें पांच सैनिक शहीद हो गए थे। गौरतलब है कि हाल में ज्यादातर मुठभेड़ की घटनाएं सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान के दौरान हुई हैं। यानी सुरक्षा बलों को क्षेत्र में आतंकियों के छिपे होने की सूचना तो मिल जाती है, लेकिन वे किस तरह के हथियारों से लैस हैं और उनकी रणनीति क्या है, इसकी स्टीक जानकारी नहीं मिल पाती है।
खुफिया जानकारियों में यह बात सामने आई है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी खुद को सुरक्षा एजंसियों की नजर से बचाने के लिए अब ‘संरक्षण और समेकन’ की रणनीति अपना रहे हैं। यानी आतंकवादी सीमा पार से घुसपैठ करने के बाद शुरुआत में चुप रहते हैं और स्थानीय आबादी के साथ घुलमिल जाते हैं। जैसे ही उन्हें सीमा पार से निर्देश मिलता है, वे हमले को अंजाम देने में जुट जाते हैं। उत्तरी कश्मीर और जम्मू क्षेत्र में हाल में आतंकियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले इसका ताजा उदाहरण हैं। आम लोगों के बीच छिपे हुए आतंकवाद के इस खतरे से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को जल्द ठोस और कारगर रणनीति बनानी होगी। तकनीकी खुफिया जानकारी के साथ-साथ जमीनी स्तर पर ‘मानव खुफिया’ नेटवर्क भी मजबूत करने की जरूरत है।
खुफिया जानकारियों में यह बात भी सामने आई है कि आतंकवादी सीमा पार से संपर्क के लिए ‘अल्ट्रा सेट’ फोन जैसे एन्क्रिप्टेड संचार उपकरणों का उपयोग करने लगे हैं, जिससे उनके ठिकाने और रणनीति की सटीक जानकारी हासिल कर पाना मुश्किल हो जाता है। इस तरह की तकनीकी चुनौती से पार पाने के लिए भी सुरक्षा एजंसियों को गंभीरता से विचार करना होगा। वहीं, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक का कहना है कि आतंकवादी पंजाब से लगती पाकिस्तान की सीमा से भी घुसपैठ कर जम्मू पहुंच रहे हैं। इसलिए इस इलाके में फिर से आतंकी वारदात बढ़ने लगी हैं। अगर ऐसा है तो सुरक्षा बलों के साथ-साथ पंजाब और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए साझा रणनीति बनाने की जरूरत है, ताकि आतंकियों के तंत्र को नेस्तनाबूद किया जा सके।
